Sunday, May 31, 2020

गंगा दशहरा

*गंगा पापं, शशी तापं दैन्यं कल्पतरुस्तथा।*
*पापं तापं तथा दैन्यं हन्ति सज्जनसंगम।।*

सज्जनों की संगति की महिमा बताते हुए कहा गया है कि गंगास्नान से सब पाप, चन्द्रमा के दर्शन से ताप (गर्मी) एवं कल्पवृक्ष का दर्शन दरिद्रता को दूर कर देता है। परन्तु सज्जनों की संगति से पाप, ताप और दरिद्रता तीनों से दूर हो जाते हैं।

The value of noble person's good company is said by this. As all sins can be removed by taking dip in the holy water of Ganga, heat is vanished in Moon's cool light and paucity is cured by just seeing the _Kalpavriksha_, but the all three, paucity, heat and sins can be cured by only being with noble person.

*सर्व पाप हारी माँ गंगा एवं विवेक की अधिष्ठात्री देवी माँ गायत्री* के अवतरण दिवस ज्येष्ठ शुक्ल दशमी (गंगा दशमी, गायत्री जयन्ति) पर हम सभी पवित्र एवं विवेकवान बनें, ऐसी शुभकामनाएँ।

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Friday, May 29, 2020

दृढ़ निश्चय

*कारुण्येनात्मनो तृष्णा च  परितोषतः।*
*उत्थानेन जयेत्तन्द्रीं वितर्कः निश्चयाज्जयेत।।*

स्वयं पर करुणा (दया की भावना) से, तृष्णा (अत्यधिक लोभ) पर संतोष की भावना के द्वारा, तन्द्रा (आलस्य) पर जागृति के द्वारा, तथा संदेह (संशय) पर दृढ़ निश्चय से विजय प्राप्त करनी चाहिए।

One should conquer own self by practicing compassion, greed by being satisfied at whatever he possesses, drowsiness by always remaining alert, and indecision by being firm and decisive.

*करें नहीं अभिमान तनिक भी,*
*पालन कर लें दो ग़ज़ दूरी,*

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Thursday, May 28, 2020

फल

*सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति।*
*सहज कृपन सन सुंदर नीति॥*
*ममता रत सन ज्ञान कहानी।*
*अति लोभी सन बिरती बखानी॥*
*क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा।*
*ऊसर बीज बाएँ फल जथा॥*

मूर्ख से विनय, कुटिल के साथ प्रीति, स्वभाव से कंजूस व्यक्ति से उदारता की बात, मोहग्रस्त मनुष्य से ज्ञान की कथा, अत्यंत लोभी से वैराग्य का वर्णन, क्रोधी से शम (शांति) की बात और कामी से भगवान की कथा, इन सब का फल व्यर्थ होता है, जैसे ऊसर भूमि में बीज बोने से कोई फल नहीं मिलता है।

Supplication before an idiot, friendship with a rogue, inculcating liberality on a born miser, talking wisdom to one steeped in worldliness, glorifying dispassion before a man of excessive greed, a lecture on mindcontrol to an irascible man and a discourse on the exploits of Devine to a libidinous person are as futile as sowing seeds in a barren land.

*हम सब अपना भला विचारें,*
*संयमित रह ज़िन्दगी गुजारें,*

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Wednesday, May 27, 2020

अभिमान

*सुनहु राम कर सहज सुभाऊ।* 
*जन अभिमान न राखहिं काऊ॥*
*संसृत मूल सूलप्रद नाना।* 
*सकल सोक दायक अभिमाना॥*

ईश्वर परमसत्ता (श्री राम) का सहज स्वभाव है कि वे अपने भक्त में अभिमान कभी नहीं रहने देते, क्योंकि अभिमान जन्म-मरण रूपी संसार का मूल है और अनेक प्रकार के क्लेशों तथा समस्त दु:खों का देने वाला है॥

The arrogance is the root cause of all miseries and conflicts, so the Almighty first removes arrogance from his devotees.

*मुझे नहीं कोरोना होगा,*
*यह घमण्ड ही ले डूबेगा,*
*है बचाव ही श्रेष्ठ तरीका,*
*स्वच्छ हस्त, मुख मास्क लपेटा।*

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Tuesday, May 26, 2020

आवेश

*सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।*
*वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।*

आवेश में आ कर बिना सोचे समझे कोई कार्य नहीं करना चाहिए। 
विवेकशून्यता बड़ी विपत्तियों का द्वार है। 
जो व्यक्ति सोच समझकर कार्य करता है; गुणों से आकृष्ट होने वाली माँ लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है |

One should not indulge in action in a hurry.
Indiscretion becomes a step towards extreme troubles.
Glory (good results) always enticed by virtuosity prefer one who exercises discretion.

*विवेक साथ हो सदा,*
*निभाएँ हरेक कायदा,*
*सभी मिलें तो दूर से,*
*विनाश कौन कर सके।*

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Monday, May 25, 2020

आलस्य का त्याग

*श्रेयांसि च सकलान्यनलसानां हस्ते नित्यसान्निद्ध्यानि I*

इस संसार की सकल संपत्ति एवं श्रेय उन्हीं के हाथ में होता है जो सदैव आलस्य का त्याग कर कर्म में उद्यत रहते हैं।

The gross wealth and credit of this world is in the hands of those who always abandon laziness and remain engaged in _karma_ means action.

*स्व में स्थित घर में स्थित हो*
*इस शत्रु से जीत निश्चित हो।*

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Sunday, May 24, 2020

संगति

*संसारकटुवृक्षस्य द्वे फले   अमृतोपमे।*                                                                                                                         *सुभाषितरसास्वादःसङ्गतिः सुजने जने।।*                                           
 
संसार रुपी कड़ुवे पेड़ से अमृत तुल्य दो ही फल उपलब्ध हो सकते हैं, एक है मीठे बोलों का रसास्वादन और दूसरा है सज्जनों की संगति।

Only two fruits like nectar can be available from this bitter tree of the world, one is the taste of gentle words and other is the company of nobles.

*परिवर्तन जो भी होता है,*
*बीज सृजन के भी बोता है,*
*फिर अपनाएँ चलन पुराने,*
*नित्य प्रार्थना भजन सयाने।*

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Saturday, May 23, 2020

कीर्ति

*औचित्य प्रच्युताचारो युक्ता स्वार्थं न साधयेत्।*
*व्याजबालिवधेनैव  रामकीर्तिः कलङ्किता।।*

नैतिक रूप से अनुचित एवम् अशोभनीय कृत्य द्वारा अपने स्वार्थ की पूर्ति कभी नहीं की जाए।
वानरराज बालि (जिसने अपने अनुज की पत्नी हरण का अक्षम्य अपराध किया था) का वध छल से करने के कारण भगवान श्री राम की कीर्ति भी कलंकित हो गयी थी।

One should never take recourse to morally very low and unfair means to achieve his objectives.
By killing Baali, the King of Vanars (who had kidnapped his brother's wife), in a clandestine manner, even Lord Ram's name and fame was tarnished.

*हमने संयम सीखा है,*
*रहना घर में सीखा है,*
*स्वच्छ रहें अरु स्वस्थ रहें,*
*व्यस्त रहें अरु मस्त रहें।*

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Friday, May 22, 2020

साधना

*शिक्षा क्षयं गच्छति कालपर्ययात् सुबद्धमूला निपतन्ति पादपाः।*
*जलं जलस्थानगतं च शुष्यति हुतं च दत्तं च तथैव तिष्ठति।।*
             (कर्णभारम्-२२)

समय के साथ शिक्षा का क्षय हो जाता है, अच्छी तरह जड़ से जमा हुआ वृक्ष भी धराशाई हो जाता है। जलाशय में रहा पानी भी समय के साथ कालांतर मे सूख जाता है, परंतु यज्ञ की अग्नि में समर्पित आहूति और दिया गया दान कभी नष्ट नहीं होता, सदैव ही शाश्वत रहता है।

Over time, education disappears, a tree that is well-rooted also collapses. The water in the reservoir dries out over time, but the sacrificial offering in the fire of a _yajna_ and donation given are never destroyed, remain always in perpetuity.

*करी साधना घर रह कर,*
*स्वस्थ रखेगी जीवन भर,*
*निज स्वास्थ्य का ध्यान रखें,*
*घर पर रुक कर स्वस्थ रहें।*

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Thursday, May 21, 2020

उदारता

*पत्रपुष्पफलच्छायामूलवल्कलदारुभिः।*
*धन्यामहीरुहा येभ्यो निराशा यान्ति नाऽर्थिनः।।*
                                             
धन्य हैं वे वृक्ष जो अपने पत्तों, फूलों, फलों, जड़ों, छाल, लकड़ी और छाया से प्राणिमात्र की सहायता करते हैं और उनके पास से कोई भी याचक निराश नहीं लौटता है।

Blessed are the trees, who help all the living beings by providing their leaves, flowers, fruits, roots, bark and cool shade, and nobody  returns with empty hands.

*बड़ अमावस्या, वट सावित्री एवं शनि जयन्ति के इस विशेष पर्व पर सभी के सौभाग्य में वृद्धि हो ऐसी शुभकामनाएँ*

*हृदय उदारता भरें,*
*मनुष्यता मनुज धरें,*
*समस्त रोग से लड़ें,*
*निरोग हम सभी रहें।*

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Wednesday, May 20, 2020

प्रकार

*ऐश्वर्यमल्पमेत्य प्रायेण हि दुर्जनो भवति मानी।*
*सुमहत्प्राप्यैश्वर्यं प्रथमं प्रतिपद्यते  सुजनः।।*

दुर्जन, थोड़ा सा भी ऐश्वर्य पा कर प्रायः बहुत ही गर्वीले और चञ्चल (अधीर) हो जाते हैं, परन्तु सज्जन बहुत अधिक ऐश्वर्यवान हो कर भी शान्त और मृदुल स्वभाव के ही बने रहते हैं।

(तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में कहा है :
*छुद्र नदी भरि चली तोराई।* 
*जस थोरहु धन खल इतराई।।*)

A wicked person having acquired even a bit of prosperity and power becomes very capricious and proud, whereas a noble person even after acquiring abundant power and prosperity still remains very calm and quiet.

*अपना अपना ध्यान रखें,*
*एक नियम का मान रखें,*
*व्यर्थ नहीं बाहर विचरें,*
*भीड़ भाड़ से दूर रहें।*

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Tuesday, May 19, 2020

विचार

*मनस्यन्यद्वचस्यन्यत्कार्ये चाऽन्यदुरात्मनाम् ।*
*मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम् ।।*

दुष्ट और नीच व्यक्तियों के विचार कुछ और होते है पर वे कहते कुछ और ही हैं और करते भी कुछ और ही हैं। इसके विपरीत सज्जन और महान् व्यक्ति जो सोचते हैं वही कहते हैं और करते भी वही हैं।

The thoughts of wicked and mean persons are different than what they speak and ultimately do, whereas the thoughts, their expression and subsequent action by the noble and righteous persons are always the same.

*नियम सदा ही पालें हम,*
*अपना स्वास्थ्य सम्भालें हम,*
*मुँह पर मास्क लगालें हम,*
*घर से जाना टालें हम।*

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Monday, May 18, 2020

वाणी

*वाणी रसवती यस्य*
*यस्य श्रमवती क्रिया।*
*लक्ष्मी: दानवती यस्य* *सफलं तस्य जीवितम्॥*

जिस मनुष्य की वाणी मीठी है, जिसका कार्य परिश्रम से युक्त है, जिसका धन दान करने में प्रयुक्त होता है, उसका जीवन सफल है।

The person whose speech is sweet, whose work is full of hard work, whose money is used for noble causes, his life is successful.

*एक महामारी आयी है,*
*सारी दुनिया घबरायी है,*
*हमने खूब तपस्या की,*
*रीति बदल दी जीने की,*
*एक नया सोपान चढ़ें,*
*नया कीर्तिमान गढ़ें।*

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Sunday, May 17, 2020

कर्म

*आस्ते भग आसीनस्य, ऊर्ध्वंतिष्ठति तिष्ठतः ।*
*शेते निपद्यमानस्य, चरति चरतो भगः।*
*चरैवेति चरैवेति॥*

जो मनुष्य (कुछ काम किये बिना) बैठता है, उसका भाग्य भी बैठ जाता है। जो उठ खड़ा होता है, उसका भाग्य भी उठ जाता है। जो सोता है, उसका भाग्य भी सो जाता है एवम् जो चलने लगता है, उसका भाग्य भी चलने लगता है। 

अर्थात् कर्म से ही भाग्य है।

A person who sits (without doing anything), his fate also doesn't work. The one who is ready to work, his fate also starts working. 
The doers are helped with luck/ fate. The fate doesn't help undoer. 

*माना घर में ही रहना है,*
*किन्तु न कर्म कभी तजना है,*
*घर में रहकर काम करें,*
*निज स्वास्थ्य का ध्यान धरें।*

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Saturday, May 16, 2020

शपथ

*असद्भिः शपथेनोक्तं जले लिखितमक्षरम्।*
*सद्भिस्तु लीलया प्रोक्तं शिलालिखितमक्षरम्॥*

असभ्य ( दुष्ट स्वभाव के) व्यक्तियों द्वारा किसी कार्य को करने हेतु ली गयी शपथ जल में लिखे गये अक्षरों के समान (अस्थायी) होती है ,अर्थात वे उसका अनुपालन नहीं करते हैं। इस के विपरीत सभ्य (सज्जन और सत्यवादी) व्यक्तियों द्वारा हँसी मजाक में भी कही हुई कोई बात एक शिलालेख के समान (स्थायी) होती है,
अर्थात वे जो कहते हैं उसे अवश्य पूरा कर के दिखाते हैं।

The commitments made by persons of evil temperament even under oath are just like words written on the surface of water (which
disappear immediately) and are not honoured by them.  On the other
hand commitments made by upright and truthful persons even casually are like the words engraved on a slab of stone (permanent) and are duly honoured by them.

*हम भी अपना वचन निभाएँ,*
*कार्य बिना न बाहर जाएँ,*
*मुँह पर बाँधो मास्क सदा,*
*हाथ स्वच्छ हों सब सुखदा।*

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Friday, May 15, 2020

संयम

*यस्मै देवाः प्रयच्छन्ति पुरुषाय प्रराभवम्।*
*बुद्धिं तस्यापकर्षन्ति सोऽवाचीनानि पश्यति।।*

To make defeat one's fate, God snatches his wisdom first. Thus he does not see any good aspect of life, he can only see bad and bad.

जिसके भाग्य में पराजय हो, ईश्वर उसकी बुद्धि पहले ही छीन लेते हैं, इससे उस व्यक्ति को अच्छी बातें नहीं दिखायी देती, वह केवल बुरा-ही-बुरा देख पाता है।

*संयम का व्रत रखें सदा*
*अच्छा अच्छा लखें सदा*
*घर में रहना अभी जरूरी*
*भीड़ भाड़ से रखना दूरी*

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Thursday, May 14, 2020

मूर्खो से बचे

*मूर्खेण सह संयोगो विषादपि सुदुर्जरः।*
*विज्ञेन सह संयोगः सुधारससमः स्मृतः॥*

मूर्खों से सम्पर्क विष से भी अधिक अनिष्टकारी होता है और इसके विपरीत विद्वानों का सम्पर्क अमृत तुल्य माना गया है।

To befriend and deal with a fool will do greater damage than poison. But accompany with a wise man is similar to have nectar.

*खतरा अभी टला नहीं है,*
*ये मामूली बला नहीं है,*
*मूर्खों से भी बचें स्वयं हम*
*संयमित हो रहें स्वयं हम।*

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Wednesday, May 13, 2020

ध्यान

*दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम्।*
*मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरूषसंश्रय:॥*

यह तीन दुर्लभ हैं और देवताओं की कृपा से ही मिलते हैं : मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों का साथ।

These three are very difficult to get and can be achieved only by the grace of the God : birth as human, desire for salvation and company of the nobles.

*मिला मनुज तन इसे बचाएँ,*
*हम अपना आरोग्य बढ़ाएँ,*
*ध्यान, योग नियमित अपनाएँ*
*हर बीमारी दूर भगाएँ*

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Tuesday, May 12, 2020

सदगुण

*दानं प्रियवाक्य सहितं ज्ञानमगर्वं क्षमान्वितं शौर्यं।*
*वित्तं त्यागनियुक्तं दुर्लभमेतत् चतुष्टय लोके।।*

याचकों को दान देते समय प्रिय वचन कहने वाले, अपने ज्ञानी होने पर गर्व न करने वाले, शूरवीर होने पर भी क्षमाशील, तथा धनवान होते हुए भी दानशील, इन सद्गुणों से युक्त मनुष्य इस संसार में दुर्लभ होते हैं।

Persons endowed with four qualities, namely speaking politely while doing charity, not being proud of being knowledgeable, forgiving in nature in spite of being valorous, and wealthy but also very charitable and detached from their wealth, are very rare in this World.

*स्व पर यदि निर्भर हो जाएँ*
*सब सुख जीवन में भर जाएँ*
*विश्व पटल पर हम छा जाएँ*
*जन जन में विश्वास जगाएँ।*

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Monday, May 11, 2020

मूल

*अमंत्रं अक्षरं नास्ति, नास्ति मूलं अनौषधः।*
*अयोग्यः पुरूषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभः।।*

संसार में कोई ऐसा अक्षर नहीं है जिससे कोई मंत्र न शुरू होता हो। कोई ऐसा मूल (जड़) नहीं जो किसी रोग की औषधि नहीं है, तथा दुनिया में कोई भी व्यक्ति पूर्णतः अयोग्य नहीं है जो किसी काम न आ सके। 
किन्तु उक्त तीनों का (मंत्र, औषधि और व्यक्ति का) समुचित प्रयोग करने वाले योजक कठिनता से मिलते हैं।

There is no letter in the world that starts no mantra. There is no such root which is not the medicine of any disease, and no one in the world is completely disqualified who can not do any work.
But the one who uses of the said three (mantra, medicine and person) is rare.

*जीवन अपना सभी बचाएँ,*
*घर पर ही कुछ दिन रह जाएँ*
*अपनी शक्ति और बढ़ाएँ,*
*कोरोना से क्यों घबराएँ।*

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Sunday, May 10, 2020

प्रेम

*प्रेम हरि को रुप है, त्यौं हरि प्रेमस्वरुप।*
*एक होई है यों लसै, ज्यों सूरज औ धूप।*

प्रेम को हरि अर्थात परम तत्व के समान बताते हुए रसखान ने प्रेम एवं परम को एक दूजे का रूप कहा है। प्रेम और परम ऐसे सम्बद्ध हैं जैसे सूरज एवं धूप।

Love is God and God is Love. Both are so close as Sun and sunlight.

*सब पर मन में प्रेम रखें,*
*दूरभाष से सब बात करें,*
*चित्र नाद निज रूप भरें,*
*किन्तु न बाहर पैर धरें।*

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Saturday, May 9, 2020

एकल तपस्या

*एकाकिनो  तपो  द्वाभ्यां  पठनं  गायनं  त्रिभिः।*

तपस्या अकेले ही की जाती है, विद्याध्ययन के लिए दो व्यक्ति (गुरु और शिष्य) आवश्यक होते हैं। गायन के लिए तीन व्यक्तियों (गायक, संगति करने वाला और श्रोता) अवश्य होने चाहिए। 

Asceticism is to be practiced alone by a person, and for studying at least two persons (teacher and the student) are essential. For singing at least three persons (the singer, the accompanist and the listener) are required.

*रहें अकेले तप करने को*
*मन में शक्ति नयी भरने को*

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Friday, May 8, 2020

बुद्धिमत्ता

*प्रस्तावसदृशं वाक्यं प्रभावसदृशं प्रियम्।*
*आत्मशक्तिसमं कोपं यो जानाति स पंडित:॥*

The wise person talks according to the occasion, speaks in accordance with dignity, and becomes furious  according to his power.

अवसर के अनुकूल बात करने वाला अपनी सामर्थ्य गरिमा के अनुरूप भाषण करने वाला तथा अपनी शक्ति के अनुरूप क्रोध करनेवाला व्यक्ति ही बुध्दिमान कहलाता है।

*संकट समझें तनिक विचारें*
*घर में ही ये दिवस गुजारें*

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Thursday, May 7, 2020

प्रेम

*प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। *
*राजा परजा जेहि रुचै, सीस देइ ले जाय।।*

प्रेम न तो खेत में उगता है और न ही बाजार में बिकता है। प्रेम के लिए विनम्रता आवश्यक है, चाहे राजा हो या कोई सामान्य व्यक्ति। जिसे झुकना आता है उसे यह सहज उपलब्ध है।

Love does not grow in the fields nor be sold in the market. Humility is necessary for love, whether it be a king or an ordinary person. It is easily accessible to anyone who bows down.

*प्रेम रखें हम बहुत जरूरी,*
*पर उसमें भी दो ग़ज़ दूरी,*
*समय विकट है भजें परम को,*
*छोड़ें सारे वहम अहम को।*

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Wednesday, May 6, 2020

बुद्ध पूर्णिमा

*अप्प दीपो भव।*

स्वयं प्रकाशित हों, अर्थात स्वप्रेरित बनें।

Be self motivated.

भगवान बुद्ध के जन्मदिवस पर हम स्वप्रेरित होने का संकल्प लें।

तथागत भगवान बुद्ध के जन्मदिवस *बुद्ध पूर्णिमा* की शुभकामनाएँ।

*आज तथागत बुद्ध हुए थे*
*निज पर विजय सिद्ध हुए थे*
*आएँ हम भी निज को साधें*
*घर की मर्यादा न लांघें।*

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Tuesday, May 5, 2020

संगत

*असतां सङ्गदोषेण साधवो यान्ति विक्रियाम्।*
*दुर्योधन प्रसङ्गेन भीष्मो गोहरणे  गतः॥*

झूठे और नीच व्यक्तियों के संपर्क में रहने से सज्जन और महान व्यक्तियों की गरिमा और प्रतिष्ठा को भी बहुत अधिक हानि पहुंचती है।

By keeping the company of untrue and evil minded persons, the fame and status of even the most honourable and righteous persons is put to harm.

कुसंगति से बचें।

*मिलो नहीं अनजानों से,*
*कम मिलना पहचानों से,*
*यही अभी बस एक उपाय,*
*अपना जीवन स्वस्थ बनाय*

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Monday, May 4, 2020

अहम का त्याग

*अहं कर्तेत्यहंमानमहाकृष्णा हि दन्शितः।*
*नाहं कर्तेति विश्वासामृतं पीत्वा सुखी भव।।*
अष्टावक्र गीता : अध्याय १, श्लोक ८।

*मैं कर्ता हूँ* इस अहं रूपी सर्प के दंश से हम सभी पीड़ित हैं अतः *मैं कर्ता नहीं हूँ* इस अमृत का पान करें एवम् सुखी हो जाएँ।

*I am the doer*, we all have been suffering from this ego, so take the nectar of *I am not the doer* and be happy.

अहम् को त्यागें।

*मुझे नहीं होगा कोरोना,*
*इसी अहम का मन में होना,*
*घातक है यह इसको छोड़ें,*
*घर की सीमा अभी न तोड़ें।*

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Sunday, May 3, 2020

स्वयंभू

*मुक्ताभिमानी मुक्तो हि बद्धो बद्धाभिमान्यपि।*
*किवदन्तीह सत्येयं या मतिः सा गतिर्भवेत्॥१-११॥*
अष्टावक्र गीता

स्वयं को मुक्त मानने वाला मुक्त ही है और बद्ध मानने वाला बंधा हुआ ही है, यह कहावत सत्य है कि जैसी बुद्धि होती है वैसी ही गति होती है।

If you think you are free you are free. If you think you are bound you are bound. It is rightly said: You become what you think.

*आएँ मुक्त स्वयं को समझें,*
*किन्तु घर से अभी न निकलें।*

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Saturday, May 2, 2020

आनंद

*औषधेष्वपि सर्वेषु हास्यं श्रेष्ठ वदन्ति  ह।*
*स्वाधीनं सुलभं चापि आरोग्यानन्दवर्धनम्।।*

कहा गया है कि सभी औषधियों में निश्चय ही हंसना सबसे श्रेष्ठ औषधि है क्योंकि यह आसानी से बिना मूल्य के उपलब्ध हो जाती है तथा स्वास्थ्य और आनन्द की वृद्धि करती है।

It is truly said that among all the medicines laughter is the best medicine, because it is free and easy to obtain and it results in increase of happiness and health.

मुस्कुराते रहिये।

*हँसो स्वयं भी और हँसाओ*
*नीरसता को दूर भगाओ*

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Friday, May 1, 2020

आत्मतत्त्व

*न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।*
*अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥*
गीता : अध्याय २, श्लोक २०।

आत्मा (आत्मतत्व) किसी काल में भी न तो जन्म लेता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता॥

For the SOUL there is never birth nor death. Nor, having once been, does he ever cease to be. He is unborn, eternal, ever-existing, undying and primeval. He is not slain when the body is slain.

*अगला चरण युद्ध का आया*
*विजित क्षेत्र को हरा बताया*
*विजय मार्ग स्पष्ट हुआ है*
*घर में रहना ही अच्छा है*

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