Friday, May 1, 2020

आत्मतत्त्व

*न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।*
*अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥*
गीता : अध्याय २, श्लोक २०।

आत्मा (आत्मतत्व) किसी काल में भी न तो जन्म लेता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता॥

For the SOUL there is never birth nor death. Nor, having once been, does he ever cease to be. He is unborn, eternal, ever-existing, undying and primeval. He is not slain when the body is slain.

*अगला चरण युद्ध का आया*
*विजित क्षेत्र को हरा बताया*
*विजय मार्ग स्पष्ट हुआ है*
*घर में रहना ही अच्छा है*

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