Tuesday, March 30, 2010

क्या हो रहा है?

गुरु लोगो माफ़ी चाहते है की हम इतने दिन आपसे दूर रहे, गुरु बहुत काम करवाती है कंपनी अब तो हाल ये है की जाना तो तय है पर आना कब है ये तो वही जा के पता चलता है. इतने दिन आप लोगो ने क्या किया इतने दिन गुरु समोसा खा खा के मोटे हो गए पर क्या करे गुरु बनारसी है तो अंदाज़ भी बनारसी है न, अरे गुरु अपने बारे में भी तो बताओ यार मीठे में क्या अच्छा लगता है हमको तो गुरु सुबह के समय जलेबी और शाम को रबरी अच्छी लगती है. वैसे तो हम मस्तिया रहे है पर ऑफिस का काम भी करते है. सबसे कहते है की गुरु तुम मस्त रहो अपना काम करो वरना सर सर कहोगे और डाट दिए जाओगे. इसलिए तो हम अपना काम भी मस्ती में करते है और सबको मस्त रखते है.
तो अपना अंदाज़ सबसे निराला है मेरे गुरु ने कहा है की मेरा वक़्त बदलने वाला है.

आपका लल्लन.

Tuesday, March 23, 2010

बचपन की यादें

गुरु लोगो याद है अपना बचपन, खूब सारी मस्ती करते थे, बड़े हमें डाटते रहते थे पर हमें कुछ फरक नहीं पड़ता था. बस खेलते रहो धुप में दौड़ते रहो. गुरु उस ज़माने में कोई भी काम करते थे तो बस उसमे डीपली घुस जाते थे. डीपली तो मतलब डीपली . भाई लोगो यार पेड़ पे चढ़ जाते थे. गुरु न गिरने का डर न डाट खाने का डर पुरे दिन भर धामा-चौकड़ी करते रहते थे. स्कूल की किताब के बीच में चाचा चौधरी और साबू के किस्सों की किताब तो कभी सुपर कमांडो ध्रुव तो कभी नागराज की किताबे पढ़ते रहते थे, जब हम छोटे थे तब हम जोइंट फैमिली में रहते थे हम खुद ही एक टीम हो जाते थे. जिस दिन चाहो एक IPL खेल लेते थे . भाई वो दिन तो बहुत याद आते है गुरु खास कर जब ऑफिस में बैठ कर ढेर सारा काम करना पड़ता है. तब लगता है की बच्चे ही होते तो सही रहता गुरु. दोस्त यहाँ भी है पर दिन भर खेलने वाले वो दोस्त अब कहा रहे. भैया अब तो हम अपने बचपन के दिन को याद करके गर्मी बिता लेते है. क्या करे गुरु गुड्डू के साथ अपने बचपन के दिन को याद करते है और हस पड़ते है.

लल्लन

Wednesday, March 17, 2010

जय माता दी.

भक्तो क्या हो रहा है? गुरु यार बहुत busy हो गए है , सोच रहे है की अपना नाम ही बदल दे busy पाण्डेय रख ले. अरे गुरु आप लोग तो बात करते ही नहीं है पैर आप लोग परेशां न हो हम आप को अकेले नहीं रहने देंगे. भैया जी लोग आप लोग मस्ती कर रहे है रज्ज़ा आप लोग भी कुछ बताइए अपने बारे में बात करने में इतना मज़ा नहीं आता है अब हम सुब लोग आपस में बात करेंगे तो मज़ा बहुत आएगा. कोई बात नहीं मेरी तरफ से आप लोग निराश नहीं होंगे.

लल्लन

Friday, March 12, 2010

ग़ालिब की याद में

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले

डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले

निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले

मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले

हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले

हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले

मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले

जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले

खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले

कहाँ मयखाने का दरवाजा 'गालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले

लल्लन

Thursday, March 11, 2010

समय की कमी

गुरु क्या बताये यार समय की बहुत ज्यादा कमी हो गयी है. हम तो चाहते है की आप सभी से ज्यादा से ज्यादा बात हो सके पैर क्या बताये गुरु यहाँ तो बस पूछो नहीं क्या क्या करना पड़ता है. गुरु सोच रहे की जॉब change कर दी जाये पर जॉब है की कोई मिल ही नहीं पा रही है. बस पूछो नहीं क्या हाल है यहाँ हमारा. हम बस अपने ही बारे में बोलते रहते है गुरु आप लोग बताओ की आप लोगो की क्या क्या प्रॉब्लम है. सच मानो जब तक हम है प्रोब्लेम पास नहीं आएगी. गुरु हमारे परम मित्र का नाम है गुड्डू आज कल तो बस उसी का सहारा है बस हम और वो हमारी स्कूटर यही तो अकेलेपन का सहारा है.
गुरु आप लोग बस बातो का सिलसिला जरी रखो हम आप को मस्त रहने में हेल्प करते रहेंगे.

लल्लन

Tuesday, March 9, 2010

घर के खाने का स्वाद

जब भी मै सुबह सो उठता हु तो हमेशा घर की याद आती है पूछिए क्यों, अरे भाई सुबह सुबह जब खुद से चाय बनानी पड़ती है तो घर की याद आती है. माँ के हाथ का खाना दुनिया में सबसे अच्छा खाना होता है माँ कुछ भी बना दे सुब मस्त ही लगता है. आप बताइए आप को क्या क्या याद आता है अपने घर का अगर आप घर के बहार रहते है और घर में रहते है तो क्या क्या करने का मन होता है. अजी कुछ तो बताइए तभी तो हमारी आपकी बात बढेगी.
तो आप कुछ हमें आसन सी दिश बताइए जो हमें घर की याद दिला दे.

लल्लन.

Monday, March 8, 2010

होली का खुमार ..

होली की पिचकारी का रंग लेने के बाद कल जब पहली बार हम ऑफिस गए तो ऐसा लगा की गुरु किसी ने जिंदगी ही बदल दी हो. बड़ा मज़ा आ रहा था होली में गुजिया खाने में सभी दोस्तों के घर जाने में क्या बताये ये नौकरी भी न कभी कभी दुश्मन लगती है. अब हम ऐसी जगह से है जहा की होली में भंग का रंग है सभी लोग होली के रंग में सराबोर हो जाते है. मित्रो की टोली निकल जाती है कवी सम्मलेन होने लगते है. जिंदगी का मज़ा आने लगता है.
ऐसी ही होली हम खेल कर आये है.

मेरे विचार

जी हमने सोचा की हम कितनी इंग्लिश जानते है तो पाया की सिर्फ interview और अपने मेनेजर से बात करने जितनी ही जानते है. सो ये सोच के हमने हिंदी में आप सब से बात करना सही समझा. आपने आज का newsपेपर देखा की नहीं हमने तो नहीं देखा चलिए आप ही कुछ बात दीजिये हमें क्या क्या हुआ अपने देश में.