Saturday, February 1, 2020

संत असंत

*बंदउँ संत असज्जन चरना।* *दुःखप्रद उभय बीच कछु बरना॥*
*बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं।* *मिलत एक दु:ख दारुन देहीं॥*
*उपजहिं एक संग जग माहीं।* *जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं॥*
*सुधा सुरा सम साधु असाधू।* *जनक एक जग जलधि अगाधू॥*
रामचरित मानस : बालकाण्ड

संत और असंत दोनों के वन्दन की सीख देते हुए तुलसीदास जी कहते हैं, दोनों ही दुःख देने वाले हैं, परन्तु उनमें इतना अन्तर है कि एक (संत) बिछुड़ते समय प्राण हर लेते हैं और दूसरे (असंत) मिलते हैं, तब दारुण दुःख देते हैं। अर्थात्‌ संतों का बिछुड़ना मरने के समान दुःखदायी होता है और असंतों का मिलना।
दोनों (संत और असंत) जगत् में साथ पैदा होते हैं, पर कमल और जोंक की तरह उनके गुण अलग-अलग होते हैं। कमल दर्शन और स्पर्श से सुख देता है, किन्तु जोंक शरीर का स्पर्श पाते ही रक्त चूसने लगती है। साधु अमृत के समान और असाधु मदिरा के समान (मोह, प्रमाद और जड़ता उत्पन्न करने वाला) है, दोनों को उत्पन्न करने वाला जगत् रूपी अगाध समुद्र एक ही है।

The Good and Evil has similar origin that is this world but their basic characteristics are different like nector and wine. Both bless us with grief, Good while detached and Evil on meet.

अच्छे एवम् बुरे में भेद समझें।

शुभ दिन हो।

🌸🌺🌹🙏🏻