Sunday, May 10, 2020

प्रेम

*प्रेम हरि को रुप है, त्यौं हरि प्रेमस्वरुप।*
*एक होई है यों लसै, ज्यों सूरज औ धूप।*

प्रेम को हरि अर्थात परम तत्व के समान बताते हुए रसखान ने प्रेम एवं परम को एक दूजे का रूप कहा है। प्रेम और परम ऐसे सम्बद्ध हैं जैसे सूरज एवं धूप।

Love is God and God is Love. Both are so close as Sun and sunlight.

*सब पर मन में प्रेम रखें,*
*दूरभाष से सब बात करें,*
*चित्र नाद निज रूप भरें,*
*किन्तु न बाहर पैर धरें।*

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