Sunday, May 30, 2021

कर्म

*न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।*
*इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते।।*

गीता : अध्याय 4, श्लोक 14।

कर्मों की दिव्यता महत्त्व बतलाते हुए भगवान श्री कृष्ण निष्काम भाव से कर्म करने के लिये अर्जुन को आज्ञा देते हैं-
कर्मों के फल में मेरी स्पृहा नहीं है, इसलिए मुझे कर्म लिप्त नहीं करते– इस प्रकार जो मुझे तत्त्व से जान लेता है, वह भी कर्मों से नहीं बँधता।

Since I have no craving for the fruit of acions; actions do not contaminate Me, Even he who thus knows Me in reality is not bound by actions.

हम कर्मों से डरें नहीं,
पर कर्मों से बँधे नहीं,
कर्म हमारे वश में हैं,
फल प्रभु के वश में हैं।

स्वस्थ रहें।

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Thursday, May 27, 2021

जय माँ

*उच्छिद्यते धर्मवृतं अधर्मो विद्यते महान्।*
*भयमाहुर्दिवारात्रं यदा  पापो  न वार्यते।।*

समाज में जब पापकर्मों (बुरे और निषिद्ध कार्यों) पर किसी प्रकार का नियन्त्रण  और प्रतिबन्ध नहीं होता है  तब लोगों के धार्मिक आचरण में न्यूनता (कमी) होने लगती है और अधर्म (बुरे और निषिद्ध कर्मों) में वृद्धि होने से रात दिन सर्वत्र भय व्याप्त हो जाता है।
 
In a society where there is no control over sinful and illegal deeds, there is a steep decline in the  religious austerity of the people, and  as a result  there is abnormal  increase in immorality, and an environment of fear is built up everywhere at all times.

धर्म अडिग हो धर्म अटल हो,
करुणा से पूरित हर पल हो,
आज अगर हम धर्म निभाएँ,
तभी सुरक्षित अपना कल हो।

स्वस्थ रहें।

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Monday, May 24, 2021

जय श्री हरि

*ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।*
*नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्॥*

 हे उग्र एवं शूर-वीर महाविष्णु, आपका तेज एवं ताप चतुर्दिक फैला हुआ है। हे नरसिंह भगवान, आप सर्वव्यापी भद्र हैं, आप मृत्यु के भी यम हैं। मैं आपको नमन करता हूँ।

आज *भगवान नृसिंह प्राकट्य दिवस* (नरसिंह चतुर्दशी) पर भगवान के इस उग्र रूप से पृथ्वी पर आये महामारी रूपी संकट को मिटाने की प्रार्थना करते हैं।

व्याधियाँ इतनी बढ़ी है,
हर किसी के सर चढ़ी है,
दीप करता प्रार्थना है,
धैर्य रखने की घड़ी है।

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Sunday, May 23, 2021

प्रभु स्मरण

*ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।*
*मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।*

गीता : अध्याय ४, श्लोक ११।

श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं अर्थात् स्मरण करते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ। हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का ही अनुगमन करता है।

As all surrender or pray unto the Krishna, Krishna reward them accordingly. Everyone follows his path in all respects.

आएँ भज लें नित्य परम् को,
त्याग झूठ के भरम अहम को,
मार्ग सभी उस तक ही जाते,
ऐसा स्वयं कृष्ण बतलाते।

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Wednesday, May 19, 2021

स्वयं का आकलन

*मणिर्लुटति पादेन काच शिरसि धार्यते।*
*यथैवास्तु तथैवास्तु काचः काचो मणिर्मणि:॥*

मणि चाहे पैरों में पहनी हो और काँच के टुकड़े को सिर पर धारण किया हो तब भी मणि मणि रहती है एवम् काँच काँच।

A gem is trodden under foot and a glass is worn on the head. Even in that state a glass is glass and a gem is a gem. 


मूल्य स्वयं का जानें हम,
स्वयं स्वयं पहचानें हम,
परम् तत्व है अपने भीतर,
सत्य यही है मानें हम।


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Tuesday, May 18, 2021

इच्छा

*अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदाः।*
*मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवताः॥*

निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और चौपाये अर्थात पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं। मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करता है और स्वर्ग में रहने वाले देवता मोक्ष-प्राप्ति की इच्छा करते हैं। इस प्रकार जो प्राप्त है, सभी उससे आगे की कामना करते हैं।

A poor wishes for wealth, an animal wishes if it could speak. Man desires heaven while the deities living in heaven desire salvation. Thus everyone wishes beyond what he has.

*सदा आगे बढेंगें हम,*
*यही बस लक्ष्य लेंगें हम,*
*सहायक दूसरों के हित,*
*नयी आशा बनेंगें हम।*

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Monday, May 17, 2021

अधिकार एवम कर्म

*कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।*
*मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।*
गीता : अध्याय 2 श्लोक 47

*निज कर क्रिया रहीम कहि, सिधि भावी के हाथ। *
*पांसे अपने हाथ में, दांव न अपने हाथ॥*

मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में ही है, उसके परिणामों में कभी नहीं। 
अतः हम कर्मों के परिणाम का हेतु न बनें तथा हमारी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो।

A MAN has right to work only, but never to the result thereof. 
So be not instrumental in making our actions bear results, nor let our attachment be to inaction.

स्वस्थ रहें।

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Saturday, May 15, 2021

यश व अपयश

*समप्रकास तम पाख दुहु, नाम भेद बिधि कीन्ह।*
*ससि सोषक पोषक समुझि, जग जस अपजस दीन्ह॥*
रामचरित मानस : बालकाण्ड।

एक माह के दो पक्षों (शुक्ल एवं कृष्ण) में प्रकाश एवं अंधकार समान होता है किंतु दोनों की प्रकृति भिन्न है। एक चन्द्रमा को क्रमशः बढ़ाता जाता है और दूसरा घटाता जाता है, इसी कारण एक को यह जग यश देता है जबकि दूसरे को अपयश देता है।

Two fortnights of a month _Shukla_ and _Krishna_ are having same brightness and darkness, but are separated by the nature of both. One increases the moon gradually and other decreases, that is why the world praises one but condemn other.

*स्वस्थ रहें।*

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Thursday, May 13, 2021

हरि शरण

*बलवान् अपि अशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः।*
*श्रुतवान् अपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः॥*

जो व्यक्ति अपने धर्म (कर्तव्य) से विमुख होता है, वह बलवान हो कर भी असमर्थ, धनवान हो कर भी निर्धन तथा ज्ञानी हो कर भी मूर्ख होता है।

The person who deviates from his duties, his abilities, wealth and intellect are of no use.

*वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया "अक्षय तृतीया" (आखा तीज) भगवान परशुराम के अवतरण दिवस पर आएँ  अपने कर्तव्य निर्वहन हेतु उनके आदर्शों एवं तपस्या को अपने जीवन में उतारें एवं समस्त विघ्नों के विरुद्ध संकल्पित हों। हम सभी अक्षय स्वास्थ्य प्राप्त करें।*

आज प्रेम और सौहार्द्र के त्यौहार *ईद उल फितर* पर हम सभी के जीवन में परमात्मा मिठास बनाये रखे, यही दुआ करते हैं।

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Wednesday, May 12, 2021

कर्म

*आपत्सु किं विषादेन सम्पतौ विस्मयेन किं।*
*भवितव्यं भवत्येव कर्मणामेष निश्चयः।।*

आपदा (दुर्भाग्य) के आने पर विषाद करने से और धन संपत्ति प्राप्त होने पर हर्ष एवं आश्चर्य करने से कुछ नहीं होगा क्योंकि जैसे कर्म (अच्छे या बुरे) किये गये होंगे, उनके अनुसार ही जो होना होता है, वह अवश्य ही घटित होगा।

It is futile to grieve while facing adversity or misfortune and also marveling at acquisition of wealth, because whatever is destined will definitely happen according to the deeds (good or bad).

*स्वयं संयमित हो सबको बोलें,*
*नियम एक बाहर मत डोलें।*
*नहीं काम आवश्यक जब तक,*
*व्यर्थ न अपनी शक्ति टटोलें।*

स्वस्थ रहें।

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Tuesday, May 11, 2021

मौन

*भद्रंभद्रं कृतं मौनं  कोकिलैर्जलद आगमे।*
*वक्तारो दर्दुरा यत्र, तत्र मौनं  समाचरेत् ।।*

अरी कोयल! तुमने अच्छा किया कि वर्षा ऋतु के आगमन पर मौन धारण कर लिया है। जिस स्थान पर मेंढक टर्रा रहे हों वहाँ मौन धारण करना ही उचित है।

रहीम ने भी इस तथ्य को कहा है:
*पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन,*
*अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।*

मूर्खों के शोर में गुणीजनों का मौन रहना ही श्रेयस्कर है।

O cuckoo bird!  you have taken a correct decision by keeping mum on the onset of rainy season. In a place where frogs are croaking, it is always better to observe  silence. 
Figuratively it means that noble persons should better dissociate from the activities of lowly persons.

*भ्रामक तथ्यों से सदा बचें,*
*योग प्रार्थना से स्वस्थ रहें,*

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Monday, May 10, 2021

जय श्री राम

*कबिरा सो धन संचिये, जो आगे को होय।*                                                                    *सीस चढ़ाये पोटली, जात न देख्यो कोय।।*

कबीर कहते हैं कि उस धन का संचय करो जो इहलोक में भी काम आए क्योंकि मृत्यु के पश्चात सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।

One should collect the wealth of good deeds which can be used after death also as no body can take this physical wealth with him to another world.

माया तो माया है समझें,
क्यों हम नित माया में उलझें,
प्रथम जरूरी स्वस्थ रहें हम,
कर्तव्य मार्ग में व्यस्त रहें हम।

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Sunday, May 9, 2021

ॐ नमः शिवायः

*संतोषाऽमृततृप्तानां यत्सुखं शान्ताचेतसाम्।*
*कुतस्तद्धनलुब्धानाम् इतश्च उतश्च धावताम्।।*
                                       
शांत स्वभाव वाले तथा संतोष रूपी अमृत को पी कर तृप्त हुए व्यक्तियों को जो सुख प्राप्त होता है, वैसा सुख भला धन के लोभी और उसकी प्राप्ति के लिए इधर उधर भटकने वाले व्यक्तियों को कब प्राप्त होता है?

How can the pleasure, which persons of serene mindset derive by remaining contended as if they have drunk the nectar of satisfaction, be achieved by persons greedy of wealth, who run hither and thither to acquire it by any means?

समय कठिन हैं समझें हम,
बन संतोषी सुखी बनें हम,
इत-उत व्यर्थ नहीं भटकें हम,
स्व में स्थित स्वस्थ रहें हम।

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Friday, May 7, 2021

माँ

*उपाध्यायात् दश आचार्यः आचार्याणां शतं पिता।*
*सहस्रं तु पित्रन् माता गौरवेण अतिरिच्यते।।*

शिक्षा और ज्ञान प्रदान करने में आचार्य, सामान्य शिक्षकों से दस गुणा श्रेष्ठ होता है और एक सौ आचार्यों से भी श्रेष्ठ एक पिता होता है। परन्तु एक माता श्रेष्ठता और सम्मान में पिता से भी हजार गुणा श्रेष्ठ होती है।

समस्त प्राणिमात्र में जन्मदात्री माता द्वारा अपनी संतान को शिक्षित करने और पालने पोसने में किया गया योगदान, अन्य व्यक्तियों के योगदान से हजारों गुणा महत्त्वपूर्ण है।

In respect of training and providing education professor is ten times superior than a primary level teacher, and the father is hundred times superior than the Professor, But the Mother is thousand times superior and respectable than the father.

The role of a mother in upbringing the child and in educating him, is thousand times better than other means.

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रबिन्द्रनाथ टैगोर

हम यह प्रार्थना न करें कि समस्या न आएँ वरन् यह प्रार्थना करें कि हम उनका सामना निडरता से करें।
- रबीन्द्रनाथ टैगोर।

Let us not pray that there will be no  problem but ought to pray that we face them fearlessly and bravely.
- Rabindra Nath Tagore.

आएँ आज रबीन्द्रनाथ जी की जयंती पर उनके इसी विचार को समझते हुए इस कोरोना नामक समस्या से पूरे मनोयोग से लड़ने हेतु सङ्कल्प लें।

*क्यों हम चाहें सुख का जीवन,*
*बिन अवरोध समस्या जीवन,*
*मन में ये सङ्कल्प सदा हो,*
*निर्भय हों, हो जैसा जीवन।*

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