Wednesday, April 21, 2021

भक्ति

*शक्नोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।*
*कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त: स सुखी नर:।।*
गीता : अध्याय ५, श्लोक २३।

जो साधक इस मनुष्य शरीर में, शरीर का नाश होने से पहले ही काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही पुरुष योगी है और वही सुखी है।

He who is able to stand, in his life before casting off this body, the urges of lust and anger is Yogi; and he is a happy man.

भक्ति शक्ति संचित की है,
मर्यादा हमने सीखी है,
स्व में स्थित स्वस्थ रहेंगें,
साथ हमारे ईश्वर भी है। 

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻