Wednesday, January 27, 2021

भक्ति

*कबिरा यह तन जात है, सके तो ठौर लगा,*
*या सेवा कर साधु की, या गोविन्द गुण गा।*

इस निश्चित मृत्यु वाले शरीर के सदुपयोग करने की सीख देते हुए कबीर जी कहते हैं कि अपने जीवन को उचित एवं लाभकारी कार्यों यथा साधु सज्जनों की सेवा अथवा भगवत् भक्ति में लगाना चाहिए।

The great saint _Kabir_ told us to use wisely this mortal life by doing righteous deeds like serving good people or praying the God.

*जन्म मनुज जो पाएँ हम,*
*प्रभु गुण गाते जाएँ हम,*
*सज्जन सेवा कर्म हमारा,*
*जीवन लक्ष्य बनाएँ हम।*

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अनुकूल

*संपत्सु महतां चित्तं  भवत्युत्पलकोमलं।*
*आपत्सु च महाशैलं शिलासंघात कर्कशम्।।*

महान व्यक्तियों का स्वभाव उनके सुखी और समृद्ध होने पर भी एक पुष्प के समान कोमल होता है एवं विपत्ति की स्थिति में पर्वत की शिलाओं के समान कठोर हो जाता है।

During prosperity the heart of a noble man is kind and soft like a flower. But in adverse times it becomes as hard as rock of a mountain.

*समय अनुकूल पुष्प रहें हम,*
*शान्त सौम्य उदार रहें हम,*
*समय विपरीत चट्टान बनें हम,*
*विचलित क्यों, क्यों टूटें हम।*

स्वस्थ रहें।

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