Wednesday, November 6, 2019

भाव

*इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः।*
*निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः।।*
गीता : अध्याय ५, श्लोक १९।

जिस मनुष्य का मन सम-भाव में स्थित रहता है, उसके द्वारा जन्म-मृत्यु के बन्धन रूपी संसार को जीत लिया जाता है क्योंकि वह ब्रह्म के समान निर्दोष एवं सम होता है और सदा परमात्मा में ही स्थित रहता है।

तुलसीदास जी ने भी इस तथ्य को सरल शब्दों में कहा है:
*समरथ कहुँ नहि दोष गुसाईं।*
*रवि पावक सुरसरि की नाईं।*
  
Those whose minds are established in sameness and equanimity have already conquered the conditions of birth and death. They are flawless like Almighty, and thus they are already situated in Almighty.

शुभ दिन हो।

🌹🌺💐🙏🏻

स्वस्थ रहें

*मात्रा समं नास्ति शरीर पोषणं*
*चिन्ता समं नास्ति शरीर शोषणं।*
*मित्रं विना नास्ति शरीर तोषणं*
*विद्या विना नास्ति शरीर भूषणं।।*

मनुष्य के शरीर के सही पोषण हेतु सही मात्रा में पौष्टिक भोजन के समान अन्य कोई वस्तु नहीं होती है और न सदैव चिन्तित रहने के समान शरीर को नष्ट करने वाली कोई और वस्तु होती है। बिना किसी अच्छे मित्र के कोई व्यक्ति आनन्दित और संतुष्ट नहीं हो सकता है तथा विद्या के बिना शरीर को सुशोभित करने वाले आभूषण व्यर्थ हैं।

Nothing is comparable to taking right quantity of nourishing food for proper upkeep of human body, and nothing is more harmful than worries for withering or destroying the health. Without having a noble friend there is no pleasure and satisfaction in life, and there is no better adornment of one's personality than being a learned person.

स्वस्थ रहें। व्यस्त रहें। मस्त रहें।

शुभ दिन हो।

🌸🌹💐🙏🏼