Wednesday, July 29, 2020

सुख

*बैर न बिग्रह आस न त्रासा।*
*सुखमय ताहि सदा सब आसा॥*
रामचरितमानस : उत्तरकाण्ड

जो मनुष्य न किसी से वैर करे, न लड़ाई-झगड़ा करे, न आशा रखे, न भय ही करे। उसके लिए सभी दिशाएँ सदा सुखमयी हैं। अर्थात् वह सदैव सुखी रहता है।

The man who does not hate anyone, fight or quarrel, does not expect and does not have fear. All directions for him are always pleasant. That is, he is always happy.

*अपनी सुरक्षा हाथ हमारे,*
*हम खुद समझें रिपु कैसे हारे,*
*घर में अपने स्वच्छ रहें हम,*
*अपनी शक्ति से स्वस्थ रहें हम।*
 
शुभ दिन हो।

🌺🌸💐🙏🏼

Monday, July 27, 2020

सुख

*परोपकरणं येषां जागर्ति हृद्ये  सताम्।*
*नश्यन्ति विपदस्तेषां संपदः स्यु पदे पदे॥*

जिन सज्जन व्यक्तियों के हृदय में परोपकार की भावना जागृत है और जो अपना जीवन निर्बल लोगों की सहायता हेतु समर्पित कर देते हैं, उनके ऊपर आयी हुई सभी विपदाएँ नष्ट हो जाती हैं तथा उन्हें कदम कदम पर प्रसन्नता और संपत्ति की प्राप्ति होती है।

Those noble and righteous persons who have committed themselves to serve the meek and needy persons, the misfortune
and calamities befalling upon them disappear and they enjoy prosperity and happiness at every step.


*निर्बल निर्धन या निरूपाय,*
*हम ग़र उनके बनें सहाय,*
*ईश साथ हो जाते पल में,*
*धन वैभव भी सहज सुहाय।*

शुभ दिन हो।

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Sunday, July 26, 2020

राम भक्ति

*अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति,*
*नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।*

तुलसीदास को गोस्वामी तुलसीदास बनाने में उनकी पत्नी रत्नावली का इस दोहे का अर्थ
”मेरे इस हाड़ माँस के शरीर के प्रति जितनी तुम्हारी आसक्ति है, उसकी तुलना में तनिक भी अगर प्रभु से होती तो तुम्हारा जीवन सँवर गया होता।"

गोस्वामी तुलसीदास जयंती पर आएँ हम सब प्रभु भक्ति की लौ लगाएँ।

*राम भगति सब सुख कर जाना,*
*गोस्वामी भए तुलसी माना,*
*जिसने राम मरम पहचाना,*
*पड़ा नहीं उसको पछताना।*

शुभ दिन हो।

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Saturday, July 25, 2020

गुण अवगुण

*प्रावृषेन्यस्य मालिन्यं, दोषः कोऽभीष्टवर्षिण:।*
*शरदाऽभ्रस्य शुभ्रत्वं, वद  कुत्रोपयुज्यते।।*

कौन कहता है कि वर्षा ऋतु में बादलों का कालापन उनका एक दोष है? उनसे ही तो जलवृष्टि की कामना की जाती है। भला शरद ऋतु के शुभ्र (सफ़ेद) बादलों की क्या उपयोगिता है?

Who says that the dark blackness of the rain clouds is their defect? Every one expects rain from them only. On the other hand what is the usefulness of pure white clouds of the autumn season?

*क्यों रूप रंग का ध्यान करें,*
*गुण अवगुण का भान करें,*
*सत्य असत्य पहचान करें,*
*जाँचें परखें, सम्मान करें,*

शुभ दिन हो।

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Thursday, July 23, 2020

राम बिमुख

*मित्र करइ सत रिपु कै करनी।* 
*ता कहँ बिबुधनदी बैतरनी॥*
*सब जगु ताहि अनलहु ते ताता।* 
*जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता॥*
रामचरितमानस : अरण्य काण्ड।

तुलसीदास जी ने राम विमुख अर्थात अपने कर्तव्य, धर्म एवं स्वयं से विमुख हो, के लिए लिखा है कि उसके मित्र भी सैकड़ों शत्रुओं के समान हो जाते हैं, देवनदी गंगा भी उसके लिए वैतरणी (यमपुरी की नदी) हो जाती है और ये समस्त संसार उनके लिए अग्नि से भी अधिक गरम (जलाने वाला) हो जाता है।

The one who deviates his duties, religion and self, his friends also become like hundreds of enemies, _Devanadi_ Ganga also becomes a _Vaitarni_ (river of Yampuri) for him and this whole world becomes even hotter (burning) for him.

*मित्र बनें अरु मित्र बनाएँ,*
*रिपु हो कोई क्यों घबराएँ,*
*साथ सुसंग सदा रखना है,*
*जीवन सुख से भरा बिताएँ।*

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Wednesday, July 22, 2020

फल

*अचोद्यमानापि यथा पुष्पाणि  च फलानि च।*
*स्वं कालं नाsतिवर्तन्ते तथा कर्म पुराकृतम्।*

बिना किसी आदेश या प्रेरणा के जिस प्रकार पुष्प और फल अपने निर्धारित समय पर वृक्षों में उत्पन्न हो जाते हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा बहुत समय पूर्व किये हुए सत्कर्मों या दुष्कर्मों का फल भी समय आने पर स्वतः प्राप्त हो जाता है।

As flowers and fruits are grown on trees on their scheduled time without any order or inspiration, similarly, results of our deeds (good or bad) done even very long ago, automatically come to us when the time comes.

*कर्म करें हम जैसे जैसे,*
*फल पायेंगें वैसे वैसे,*
*अगर उछालें पत्थर नभ पर,*
*बरसें फूल कहो तब कैसे।*

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Tuesday, July 21, 2020

स्वार्थ

*कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति।*
*उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्॥*

जब तक कार्य सिद्ध (स्वार्थ) नहीं होते हैं, तब तक लोग दूसरों की प्रशंसा (गुणगान) करते हैं। कार्य सिद्ध होने के बाद लोग दूसरे व्यक्ति को भूल जाते हैं। जिस प्रकार नदी पार करने के बाद नाव का कोई उपयोग नहीं रह जाता है।

As long as work is not done, people praise others. After the work is done, people forget the other person. Just as there is no use of boat after crossing the river.

*हम कृतज्ञता व्यक्त करें।,*
*नहीं कृतघ्नता वरण करें,*
*समय कठिन में बने सहायक,*
*उन्हें नहीं विस्मरण करें।*

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Monday, July 20, 2020

आचरण

*कन्दुको भित्तिनिक्षिप्त इव प्रतिफलन्मुहुः।*
*आपतत्यात्मनि प्रायो दोषोऽन्यस्य चिकीर्षतः॥*

जैसे दीवार पर फेंकी हुई गेंद झट से पलट कर फेंकने वाले की ओर आ जाती है, उसी प्रकार दूसरे के प्रति किया गया आचरण भी हमारे ही पास वापस आ जाता है।

Just as the ball thrown on the wall quickly turns to the thrower, similarly the behavior towards others also comes back to us.

*व्यवहार हमारा ऐसा हो,*
*स्वयं हमें पसंद जैसा हो,*
*भाव भरे हृदय में जैसे,*
*व्यवहार सदा ही वैसा हो।*

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Saturday, July 18, 2020

हर हर महादेव

साकार व निराकार परमात्मा के द्वंद्व को ध्यान में रखते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अंतिम काण्ड उत्तरकाण्ड में (आठ श्लोक के रुद्राष्टकम् स्तोत्र में) परम शिव की स्तुति करते हुए ईश्वर का जो व्याख्यान किया है उससे साकार व निराकार के द्वंद्व को हम जैसे मूढ़ भी आसानी से समझ कर उस परम पिता परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

रुद्राष्टकम् का आठवाँ श्लोक :

*न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।*
*जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो।।*

मैं न जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा। हे प्रभो! मैं सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। 
हे प्रभो! जरावस्था व जन्म मृत्यु के दु:खों से संतप्त मुझ दु:खी की रक्षा करें। 
हे ईश्वर! मैं आपको नमन करता हूँ।

I don’t know Yoga, Japa (chanting of names), or Prayers. Still, I am bowing continuously and always to You. O Shambhu! O Prabhu! Save me from the sufferings of old age, rebirth, grief, sins, and troubles. I bow to You.

आज श्रावणी शिवरात्रि पर आएँ हम उस निराकार परमात्मा के साकार शिव रूप का ध्यान एवं स्तुति करें।

*शिव को भज लें, जानें हम,*
*शक्तिवान हैं शिव मानें हम,*
*हम संचित अपनी शक्ति करें,*
*रिपु प्रत्येक पहचानें हम।* 

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Friday, July 17, 2020

कामना

*अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदाः।*
*मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवताः॥*

निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और चौपाये अर्थात पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं। मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करता है और स्वर्ग में रहने वाले देवता मोक्ष-प्राप्ति की इच्छा करते हैं। इस प्रकार जो प्राप्त है, सभी उससे आगे की कामना करते हैं।

A poor wishes for wealth, an animal wishes if it could speak. Man desires heaven while the deities living in heaven desire salvation. Thus everyone wishes beyond what he has.

*सदा आगे बढेंगें हम,*
*यही बस लक्ष्य लेंगें हम,*
*सहायक दूसरों के हित,*
*नयी आशा बनेंगें हम।*

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Thursday, July 16, 2020

प्रवृत्तियां

*ईर्ष्या लोभो मदः प्रीतिः क्रोधो भीतिश्च साहसं।*
*प्रवृत्तिच्छिद्रहेतूनि कार्ये सप्त बुधा जगुः।।*

ईर्ष्या, लोभ, अभिमान, मोह, क्रोध, भय, दुस्साहस, ये सात प्रवृत्तियां इस संसार में किसी भी कार्य के संपादन में बाधा और हानि पहुँचाती हैं, ऐसा चतुर और विद्वान् व्यक्तियों का कहना है।

Wise and learned men have proclaimed that in this World, Envy, Greed, Arrogance, Fascination, Anger, Fear and Over-confidence, all these seven traits are the main reason of causing impediments and defects in any work undertaken.

*ईर्ष्या त्यागें, मत लोभ करें,*
*न ही क्रोध, भय, अभिमान करें,*
*न मोह न अति विश्वास करें,*
*जग में पूरण सब काम करें।*

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Wednesday, July 15, 2020

अभाव

*कारुण्यं पुण्यानां कृतज्ञता पुरुष  चिह्नानां।*
*मायामोहमतीनां कृतघ्नता  नरकपातहेतूनां॥*

प्राणीमात्र के प्रति दया और कृतज्ञता की भावना तथा  धार्मिक प्रवृत्ति का होना, सज्जन व्यक्तियों की निशानी है। इसके विपरीत माया और मोह में लिप्त रहना और कृतघ्नता (परोपकार की भावना का अभाव) निश्चय ही लोगों के नरक में जाने का कारण होता है।

Compassion towards all living being and virtuous way of living, are the characteristics of a religious person. On the other hand inclination towards fraudulent behaviour, perplexity, and ingratitude are the reasons of people falling into the Hell.

*आएँ तनिक विचारें हम,*
*करुणा नहीं बिसारें हम,*
*है देवत्व हमारा गुण,*
*जीवन दीप सँवारें हम।*

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Tuesday, July 14, 2020

उत्तम जीवन

*आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन्*
      *को न जीवति मानवः,*
*परं परोपकारार्थं*
      *यो जीवति स जीवति।।*

इस जीवलोक में स्वयं के लिए कौन नहीं जीता? परन्तु जो परोपकार अर्थात दूसरों के लिए निःस्वार्थ जीता है, वही श्रेष्ठ व उत्तम जीवन है।

Who in this world does not live for self? But he who lives benevolently means selfless for others, that life is the best life.

*कठिन समय है, रिपु है भारी,*
*करें मदद जो सम्भव सारी,*
*हम सब निज कर्तव्य निभाएँ,*
*भाव जगाएँ, पर उपकारी।*

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Monday, July 13, 2020

पथ

*अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।*
*नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मन:।।*
गीता : अध्याय ४, श्लोक ४०।

विवेकहीन और श्रद्धारहित संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से भटक जाता है। ऐसे संशययुक्त मनुष्य के लिये न इस लोक में न ही परलोक में सुख है ।

He who lacks discrimination, is devoid of faith, and is possessed by doubt, loses the spiritual path. For the doubting soul there is not any happiness either in this world or the world beyond.

*संशय मन में क्यों रखना है,*
*हम ईश्वर की ही रचना है,*
*योग नियम जप तप करना है,*
*क्रोध कुसंग से नित बचना है।*

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Sunday, July 12, 2020

पुण्य पाप

*परहित सरिस धर्म नहिं भाई ,*
*पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।*
रामचरित मानस : उत्तर काण्ड।

दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को दुःख पहुँचाने के समान कोई नीचता (पाप) नहीं है।

There is no religion like to do good for others and there is no degeneracy (sin) like hurting others.

*रहें स्वस्थ सारे, यही प्रार्थना हो,*
*हृदय में दया की भरी भावना हो,*

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Friday, July 10, 2020

दुर्वचन

*आवत गारी एक है, उलटन होय अनेक।*
*कह कबीर नहिं उलटिये, वही एक की एक॥*

अगर गाली अथवा दुर्वचन के प्रतिउत्तर में गाली ही दी जाए, तो गालियों की संख्या एक से बढ़कर अनेक हो जाती है। संत कबीर दास कहते हैं कि यदि गाली को पलटा न जाए अर्थात गाली का प्रतिउत्तर गाली से न दिया जाए, तो वह गाली एक ही रहेगी।

If we abuse to answer the abuse, then only abusive language increases. But if abuse is not to be reversed or answered by abusing then it will not multiply.

*कहें नहीं कुछ भला नहीं जो,*
*कहें नहीं जो ठीक लगे तो।*

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उद्धार

*पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।*
*न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति।।*
गीता : अध्याय ६, श्लोक ४०।

हे पार्थ! स्वयं के उद्धार एवं उत्थान हेतु अर्थात् परम की प्राप्ति हेतु कर्म करने वाला मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।
उस पुरुष का न तो इस लोक में नाश होता है और न परलोक में ही। 

Dear Arjuna, who strives for self-redemption (i.e., God-realization, there is no fall for him either here or hereafter, never meets with evil destiny. 

*हम अपना उत्थान करें,*
*औरों का भी ध्यान करें,*
*स्वहित जाँचें परहित देखें,*
*स्व का सब का मान करें।*

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Wednesday, July 8, 2020

विचार

*आयुषः खण्डमादाय रविरस्तमयं गतः,*
*अहन्यहनि बोध्दव्यं किमेतेत् सुकृतं कृतम्।*

सूरज के अस्त होने पर हमारी आयु का एक दिन कम हो जाता है, यह जानते हुए हमें दिनभर के अपने किये हुए कार्य सद्कार्य पर विचार करना चाहिए।

Knowing that one day of age is reduced when the sun sets, we should consider the deeds good deeds done throughout the day.

*नित नित अच्छा करते जाएँ,*
*जीवन अपना सफल बनाएँ,*
*बाधाएँ आती हैं आएँ,*
*तनिक नहीं इनसे घबराएँ।*

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Tuesday, July 7, 2020

परमसत्ता

*यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर:,*
*तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।*

गीता : अध्याय 18 श्लोक 78 

गीता का अंतिम श्लोक सम्पूर्ण सार बताता है:
जहाँ योगेश्वर भगवान् श्री कृष्ण (परम सत्ता) हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी अर्जुन (पूर्ण समर्पित कर्ता) हैं, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है- ऐसा मेरा मत है।

The last verse of _GEETA_ tells the essence : Wherever there is Shree Krishna, the Lord of all Yog (Almighty) and wherever there is Arjun (a dedicated doer), the supreme archer, there will also certainly be unending opulence, victory, prosperity, and righteousness.

*हों अर्जुन सम पूर्ण समर्पित,*
*कृष्ण मिलेंगें है यह निश्चित।*

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Sunday, July 5, 2020

हर हर महादेव

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥  आप सभी को पवित्र श्रावण मास के प्रथम सोमवार की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

Saturday, July 4, 2020

Wednesday, July 1, 2020

भाव

*यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।*
*तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित:।।*
गीता अध्याय ८, श्लोक ६।

हे कुंती पुत्र अर्जुन! यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह उस भाव को ही प्राप्त होता है; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है।

Arjuna,thinking of whatever entity one leaves the body at the time of death, that and that alone one attains, being over absorbed in its thought.

*करुणा साहस मन में भर लें,*
*हर विपदा से हम टक्कर लें,*
*जीत हमारी निश्चित होगी,*
*यही भाव हम मन में भर लें।*

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