*अमंत्रं अक्षरं नास्ति, नास्ति मूलं अनौषधः।*
*अयोग्यः पुरूषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभः।।*
संसार में कोई ऐसा अक्षर नहीं है जिससे कोई मंत्र न शुरू होता हो। कोई ऐसा मूल (जड़) नहीं जो किसी रोग की औषधि नहीं है, तथा दुनिया में कोई भी व्यक्ति पूर्णतः अयोग्य नहीं है जो किसी काम न आ सके।
किन्तु उक्त तीनों का (मंत्र, औषधि और व्यक्ति का) समुचित प्रयोग करने वाले योजक कठिनता से मिलते हैं।
There is no letter in the world that starts no mantra. There is no such root which is not the medicine of any disease, and no one in the world is completely disqualified who can not do any work.
But the one who uses of the said three (mantra, medicine and person) is rare.
*जीवन अपना सभी बचाएँ,*
*घर पर ही कुछ दिन रह जाएँ*
*अपनी शक्ति और बढ़ाएँ,*
*कोरोना से क्यों घबराएँ।*
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