Thursday, December 5, 2019

कपट

*कपटेन पुनर्नैव व्यापारो यदि वा कृतः।*
*पुनर्न परिपाकोर्हा हन्डिका काष्टनिर्मिता।।*

यदि कपट पूर्वक (धोखा दे कर) किसी व्यक्ति से कोई व्यापार करने के बाद वही व्यापार उस से पुनः किया जाता है तो वह उसी प्रकार संपन्न नहीं हो सकता है जिस प्रकार लकड़ी से बनी हुई हांडी चूल्हे पर दूसरी बार नहीं चढ़ सकती है।

(इसी भावना को कवि रहीम ने इस प्रकार व्यक्त किया है  - 
फेर न ह्वैहैं कपट सों, जो कीजै ब्यौपार।
रहिमन हांडी काठ की, चढै न दूजी बार॥)
       
Any business is done with someone with deceit or trickery, and if the same business is again done with him, it does not materialise next time, just like a pot made of wood can not be used again for the second time for cooking.

शुभ दिन हो।

🌸🌹💐🙏🏼