Wednesday, January 22, 2020

हरि विमुख

*तजौ मन, हरि बिमुखन कौ संग।*
*जिनकै संग कुमति उपजत है, परत भजन में भंग।*

सूरदास जी ने हरि विमुख अर्थात् जो अपने कर्तव्य, धर्म एवं स्वयं से विमुख हो का साथ छोड़ने की सलाह देते हुए लिखा है कि ऐसे व्यक्तियों के साथ से कुमति (दुर्बुद्धि) उत्पन्न होती है जो हमें अपने कर्तव्य एवं धर्म से विमुख करती है।

We should leave the company of such persons who are deviated from there duties, self and religion, as it makes us also deviated from our duties and religion.

शुभ दिन हो।

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