Wednesday, March 31, 2021

महामूर्ख सम्मेलन बनारस

वाराणसी में महामूर्ख सम्मेलन 2021
वक्त बदलता रहा निजाम भी बदले किंतु मूर्खों का अभिनंदन जारी
वाराणसी में महामूर्ख सम्मेलन 2021 वक्त बदलता रहा निजाम भी बदले किंतु कहीं घोटालेबाजी तो कहीं रंगबाजी के दम बूते सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में चतुर सयानों के वर्चस्व का ग्राफ चेतावनी बिंदुओं को पीछे छोड़ लगातार ऊंची छलांग लगाता रहा।
वाराणसी [कुमार अजय]। वक्त बदलता रहा निजाम भी बदले किंतु कहीं घोटालेबाजी तो कहीं रंगबाजी के दम बूते सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में चतुर सयानों के वर्चस्व का ग्राफ चेतावनी बिंदुओं को पीछे छोड़ लगातार ऊंची छलांग लगाता रहा। दूसरी तरफ नून-तेल-लकड़ी की चिंता में खपा जा रहा मूरख यानी आम आदमी, टीवी, बीवी और फोर जीबी के माया जाल में फंसा बकलोलई के प्रतिमान बनाता रहा। अब कोई पैसे और पावर के दमपर मलाई के साथ सारे संसाधनों का शक्कर फांकता रहे।
दूसरी ओर आश्वासनों का लोला (लकड़ी का लालीपाप) हाथ में थामें आम नागरिक टुकुर-टुकुर ताकता रहे। यह अंधेर गर्गी कम से कम विद्रोही मिजाज के शहर बनारस में तो चुप्पी के साथ पचाई नहीं जा सकती। कोई कितना भी चतुर सयाना क्यों ने हो। व्यंग्य की मार से उसकी चमड़ी बचाई नहीं जा सकती। ऐसे में यहां कि पिंगल पढ़ंत में विद्यावारिधि भी हैसियत रखने वाले दो व्यंग्यकारों ने इस अन्नाय के खिलाफ जबकर तबर्रा पढ़ा और समाज के पाचनतंत्र को दुरुस्त रखने की गरज से मूर्खों की उजबकई को सच्ची देशभक्ति का प्रमाण देते हुए उनके लिए खास तौर पर यह उत्सव गढ़ा। इस नीरीह जीव के मन की घुमड़ती खामोशी को जुबान दी। सन अस्सी के दशक में ठहाका के नाम से चौक की प्रसिद्ध भद्दोमल की कोठी की विशाल छत पर उत्सव रचाकर मूर्ख और मूर्खता को मान दिया। लेन-देन के दौर में भी ठन-ठन गुल्लक खड़का रहे मूर्ख मनई की इमानदारी के वंदन के लिए एक विशुद्ध पिंगली आयोजन ठान दिया।
रुद्धक गुरु यानी शेष स्मृति पं. धर्मशाली चतुर्वेदी व उनके हमसाया चकाचक बनारसी स्व. रेवती रमण श्रीवास्तव की अगुवाई में नगरवासियों को साथ लेकर पहली अप्रैल की तय तिथि पर चौक में पहला ठहाका उत्‍सव रचाया। आम्र गोष्ठी (आम के दिनों में), लाई-चूड़ा गोष्ठी (मकर संक्रांति), उलूक महोत्सव (दीपावली) तथा बुढवा मंगल (होली) जैसे खुद बनारसियों द्वारा गढ़े गए उत्सवों की सूची में एक और रंगीले उत्सव ने अपना नाम दर्ज कराया। यही उत्सव आज दशकों का कालखंड पीछे छोड़कर महामूर्ख सम्मेलन के नाम से दशाश्वमेध घाट तक पहुंच गया। आज यही आयोजन दशकों का सफर पीछे छोड़कर काशी के कलरफूल उत्सवों की सूची का नगीना है। अप्रैल के पहले दिन परंपरागत रूप से मनाए जा रहे। मस्ती के नाम समर्पित इस उत्सव का पोर-पोर भी उमंग उल्लास के रस में भीना-भीना है। जिक्र है 1982 का । भद्दोमल के छत पर ही आयोजित ठहाका में पहली बार एक युवा हास्य कवि के रूप में शामिल हुए ख्यात रचनाकार बदरी विशाल। उस उत्सव को याद करने मात्र से टनाटन हो गए। बदरी बताते हैं कि उस बार भी आयोजन की रीति नीति के तहत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पं. लोकपति त्रिपाठी को उन्हीं की धर्मपत्नी श्रीमती चंद्रा त्रिपाठी की भार्या घोषित कर अगड़म-बगड़म शास्त्र के मंत्रों से उनका पाणी ग्रहण कराया। जब मूल शास्त्र ही अंड-बंड हो तो यह संबंध भी कितना निभेगा। यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। सो शंखनाद की जगह गर्दभ ध्वनि की चिंघाड़ और उलटे कलश पर किरासिन तेल का दिया बारकर रचाया गया। यह विवाह पिंगली शाखोचारों के तुरंत बाद कुर्सी की टांग की तरह टूट गया। पांच गारी एहर से अ पांच गारी ओहर से मिली उपहार में और मामला मुठ्ठी के रेत की तरह हाथ से सरक गया। वरिष्ठ काशीकेय अमिताभ भट्टाचार्या कहते हैं गर्दभ ध्वनि धोबियाना नाच और बेमेल विवाह की रस्म तो अब भी जारी है। सबसे खटकती है पिंगलों की मार का वह प्रहार जो व्यवस्था को अवकात में लाती थी। तथा दर्शकों की तालियां इस खिलाफत को सराहते हुए पूरे शहर में माहौल बनाती थीं। कहते हैं  दादा  अमिताभ यह पिंगल ही कार्यक्रम की जान होते थे। अराजकता पर सीधा वार करते थे और निजाम की साख को बनाते बिगाड़ते थे। सब कुछ प्रायोजित होने के बाद अब उस उन्नमुक्तता की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। रही  ठहाकों  की  बात  तो धर्मशील जी के अनंत यात्रा पर ये उन्नमुक्त ठहाके भी न जाने कहीं खो गए। बच गई थी लाचार सी दंतनिपोरई। वह भी कोरोना काल के बाद से मास्क के अंदरही कैद हो गई।
अबहीं फुरसत केकरे लग्गे हव बनारसियों से पूछिए तो उनका कहना है कि होली की खुमारी अभी उतरी नहीं कि मूर्ख सम्मेलन का भोंपू बज जाता है। भांति-भांति के रंग भंग और विजया की तरंग की चंग से उतरा बनारसी महामूर्खों का पांव पूजने के लिए महामूर्ख सम्मेलन की ओर चल देता है। पूछिए तो जवाब मिलता है कि भईया अबहीं फुरसत केकरे लग्गे हव। अबहीं त इ अलसायल मस्ती बुढवा मंगल तक ले जाई दुइए चार दिन  के  बाद  वासंतिक नवरात्र ले के खुदै अइहें दुर्गा माई।
धुरंधर हास्य महोत्सव में अस्सी घाट पर गूंजेंगे ठहाके
रंग और उल्लास के पर्व होली के बाद मिलन समारोहों और कवि सम्मेलनों का  दौर जारी है। धर्म-संस्कृति और सर्व विद्या की राजधानी काशी में तो हर रोज कहीं न कहीं सांस्कृतिक और साहित्यिक आयोजन हो रहे हैं। इसी क्रम में बुधवार की शाम अस्सी घाट पर धुरंधर हास्य महोत्सव में कवियों की रचनाओं पर ठहाके गूंजेंगे।
'धुरंधर हास्य महोत्सव' का अस्सी घाट पर यह सोलहवां आयोजन है। हालांकि शाम 4.00 बजे से आरंभ होने वाले इस महोत्सव में हास्य व व्यंग्य के अतिरिक्त अन्य रसों व धाराओं के कविगण भी शामिल होंगे। भारतीय नववर्ष के स्वागत और होली मिलन के उपलक्ष्य में आयोजित इस कवि सम्मेलन में वृंदावन से ओज के कवि उमाशंकर राही, सतना मध्य प्रदेश से हास्य के कवि रवि चतुर्वेदी, संत कबीरनगर से कवयित्री अनन्या राय पराशर, गोरखपुर से गीतकार मनमोहन मिश्र, कैमूर बिहार के हास्य विधा के कवि लोकनाथ तिवारी 'अनगढ़', हास्य पैरोडीकार बाराबंकी के प्रमोद पंकज, मऊ से ओज के कवि पंकज प्रखर, वाराणसी के हास्य कवि डा.धर्मप्रकाश मिश्र अपनी रचनाएं प्रस्तुत करेंगे। हास्य-व्यंग्य के कवि डाॅ. नागेश शांडिल्य के संयोजन में होने वाले इस आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ गीतकार पं. हरिराम द्विवेदी करेंगे।

लेखन- बनारस समाचार