Saturday, October 31, 2020

धर्म

*उच्छिद्यते धर्मवृतं अधर्मो विद्यते महान्।*
*भयमाहुर्दिवारात्रं यदा  पापो  न वार्यते।।*

समाज में जब पापकर्मों (बुरे और निषिद्ध कार्यों) पर किसी प्रकार का  नियन्त्रण  और प्रतिबन्ध नहीं होता है  तब लोगों के धार्मिक आचरण में न्यूनता (कमी) होने लगती है और अधर्म (बुरे और निषिद्ध कर्मों) में महान वृद्धि होने से रात दिन सर्वत्र भय व्याप्त हो जाता है।
 
In a society where there is no control over sinful and illegal deeds, there is a steep decline in the  religious austerity of the people, and  as a result  there is abnormal  increase in immorality, and an environment of fear is built up everywhere at all times.

धर्म अडिग हो धर्म अटल हो,
करुणा से पूरित हर पल हो,
आज अगर हम धर्म निभाएँ,
तभी सुरक्षित अपना कल हो।

स्वस्थ रहें।

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Friday, October 30, 2020

बाल्मीकि जयंती

*मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शास्वती समा।*
*यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्।।*

हे निषाद। तुझे कभी भी शान्ति न मिले, क्योंकि तूने इस काम से मोहित क्रौंच के जोड़े में से एक की बिना किसी अपराध के ही हत्या कर डाली।

आदि कवि वाल्मीकि जी ने करुणा से भरकर इस प्रथम श्लोक की रचना की एवं तत्पश्चात *रामायण* की रचना की।

एक दस्यु से महर्षि बने *वाल्मीकि* से आज उनकी जयंती पर हम सभी सदैव उत्कृष्टता की ओर बढ़ने का सङ्कल्प लें।

देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिवस पर आज हम सभी *राष्ट्रीय एकता दिवस* पर देश की एकता एवं अखण्डता हेतु संकल्पित हों।

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Thursday, October 29, 2020

शरद पूर्णिमा

*समप्रकास तम पाख दुहु, नाम भेद बिधि कीन्ह।*
*ससि सोषक पोषक समुझि, जग जस अपजस दीन्ह॥*
रामचरित मानस : बालकाण्ड।

एक माह के दो पक्षों (शुक्ल एवं कृष्ण) में प्रकाश एवं अंधकार समान होता है किंतु दोनों की प्रकृति भिन्न है। एक चन्द्रमा को क्रमशः बढ़ाता जाता है और दूसरा घटाता जाता है, इसी कारण एक को यह जग यश देता है जबकि दूसरे को अपयश देता है।

Two fortnights of a month _Shukla_ and _Krishna_ are having same brightness and darkness, but are separated by the nature of both. One increases the moon gradually and other decreases, that is why the world praises one but condemn other.

अमृत वर्षा एवं महारास का यह पर्व *शरद पूर्णिमा, रास पूर्णिमा एवं कोजागरी पूर्णिमा* के नाम से जाना जाता है, हम सभी पर अमृत बरसे एवं हम सभी स्वस्थ बनें।

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Monday, October 26, 2020

परोपकार

*उपकर्तुं यथा स्वल्पं समर्थो न तथा महान्।*
*प्रायः कूपस्तृषां हन्ति सततं न तु वारिधिः।।*

परोपकार करने में एक साधारण व्यक्ति, एक महान व्यक्ति से अधिक समर्थ हो सकता है। उदाहरण स्वरूप एक साधारण कुँआ निरन्तर सामान्य जनों की प्यास बुझाता है न कि विशाल समुद्र।

An ordinary person can be more capable of doing charity than a great person. For example, an ordinary well continuously quenches the thirst of ordinary people and not the vast sea.

*हम उपकार करें जीवन में,*
*पर अभिमान करें न मन में।*

आज पापांकुशा एकादशी पर स्वस्थ रहने का संकल्प लें।

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Saturday, October 24, 2020

जय माता दी

*सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।*
*शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥*

हे त्रिनेत्री, महासुंदरी, शरण में आये को अभय देने वाली, सभी मङ्गलकारकों की मङ्गलमयी माँ, आपकी स्तुति करते हैं। आप सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करें एवं सिद्धियां प्रदान करें।

Prayer to Goddess : 
Thy is the Giver of Refugee, With Three Eyes and a Shining beautiful face. Thy is the Auspiciousness in all the auspicious, Auspiciousness thyself, Complete with All the Auspicious Attributes, fulfill all the objectives of the Devotees.

*नवम नौरात्रि पर माँ सिद्धिदात्री हम सभी की संचित शक्तियों को पूर्णता प्रदान करे एवं वांछित फल दे।*

आज *विजय दशमी* का पर्व भी है, हम सभी अपनी संचित शक्तियों का उपयोग कर स्वयं पर विजय प्राप्त करें, यही शक्ति हमें इस महामारी से विजय दिलाए ऐसी शुभकामना।

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Friday, October 23, 2020

जय माता दी

*वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृत शेखराम्।*
*सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥*

सिंह पर सवार, चार भुजा वाली, शीष पर अर्धचंद्र धारण किये, समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाली यशस्विनी माँ महागौरी को नमन।

I bow to Yashaswini Maa Mahagauri, who Riding on a lion, having four arms, holding a crescent on her head, bestow all the wishes.

माँ दुर्गा का अष्टम स्वरूप महागौरी हम सभी को अपने अनुग्रह से पूरित करे।

दुर्गा महाष्टमी की अनन्त शुभकामनाओं के साथ माँ से समस्त विश्व को इस महामारी से मुक्त करने की प्रार्थना।

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Tuesday, October 20, 2020

मित्र

*अपि संपूर्णता युक्तैः कर्तृव्या सुहृदो बुधैः।*
*नदीशः परिपूर्णोऽपि चन्द्रोदयमपेक्षते।।*

जिस प्रकार समुद्र को अथाह जल राशि के होते हुए भी ज्वार उत्पन्न करने के लिए चन्द्रमा की आवश्यकता पड़ती है। 
उसी तरह सर्वगुण संपन्न विद्वान् व्यक्ति को भी किसी विशेष कार्य को संपन्न करने हेतु अपने मित्रों की सहायता की आवश्यकता पड़ती है।

The Ocean, which is full to the brim with water, needs the Moon to raise its water level in the sky and to create high tide.
Similarly learned persons, well versed in various disciplines of learning, need the assistance of their friends for accomplishing a particular task.

*पंचम नौरात्र पर माँ के स्कंदमाता स्वरूप को नमन*

जब तक दवाई नहीं,
तब तक ढिलाई नहीं,
मित्र रखें, दूरी रखें,
स्वस्थ रहें, स्वस्थ रखें।

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Monday, October 19, 2020

यश

*न धैर्येण विना लक्ष्मी: न शौर्येण विना जयः।*
*न ज्ञानेन विना मोक्षो न दानेन विना यशः॥*

धैर्य के बिना धन, वीरता के बिना विजय, ज्ञान के बिना मोक्ष और दान के बिना यश प्राप्त नहीं होता है।

One can't achieve Wealth without Patience, 
Triumph without Velour, 
Salvation without Wisdom and 
Fame without Charity.

*आज चतुर्थ नौरात्र पर माँ के कूष्मांडा स्वरूप को नमन।*

स्वस्थ रहें।

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Sunday, October 18, 2020

सतर्क रहें

*अल्प: अपि ह्यरिरत्यन्तं वर्धमान पराक्रमः।*
*वल्मीको मूलज इव ग्रसते वृक्षमन्तिकात्।।*

एक शत्रु यद्यपि बहुत छोटा ही क्यों न हो, कुछ समय के बाद उसकी शक्ति में अत्यन्त वृद्धि हो जाती है और अन्ततः वह अस्तित्व का संकट उसी प्रकार उत्पन्न कर देता है जैसे एक वृक्ष की जड़ के पास स्थित एक दीमकों की छोटी सी बांबी धीरे धीरे सारे वृक्ष को ही चट कर जाती है।

An enemy, however may be small in the start, becomes very powerful with the passage of time and becomes a threat to life, just like a small termite hill at the root of a tree spreads and ultimately destroys the entire tree.

*आज तृतीय नौरात्रि पर माँ के चंद्रघंटा स्वरूप को नमन*

पुनः पुनः यह एक निवेदन,
रहें स्वच्छ, स्वस्थ रहे तन,
कर लें अधिकाधिक प्रभु सुमिरन,
धन्य बने हम सबका जीवन।

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Saturday, October 17, 2020

परोपकार

*उपकारः परो धर्मः परोर्थः कर्मनैपुणं।*
*पात्रे दानं परः कामः परो मोक्षो वितृष्णता।।*

निस्वार्थ भाव से लोगों की सहायता करना सर्वोत्तम धार्मिक आचरण है, सर्वोत्तम संपत्ति किसी भी प्रकार के कार्य में निपुणता है, सुपात्र व्यक्तियों को दान देना सर्वोत्तम दान है। इसके पश्चात अत्यधिक लालच न करते हुए अपनी इच्छाओं की पूर्ति और अन्ततः मोक्ष की प्राप्ति ही जीवन का सर्वोत्तम ध्येय है।

Helping voluntarily the needy persons is the best form of religious austerity and the best form of wealth is expertise in any subject or work. Giving donations to most deserving persons is the best form of charity and fulfilling one's needs without being greedy and ultimately attaining emancipation (Moksha) is the best aim of one's life.

*नौरात्रि में माँ के द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी को नमन*

तप बल से हम सज्जित हों,
हो स्वस्थ स्वयं में स्थित हों,
माँ के चरणों में ध्यान सदा,
देश धर्म हेतु समर्पित हों।

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Thursday, October 15, 2020

स्वाध्याय

*पठतो नास्ति मूर्खत्वं जपतो नास्ति पातकम्।*
*मौनिनः कलहो नास्ति न भयं चास्ति जाग्रतः।।*

अध्ययन करने वाले को मूर्खता नहीं आती, परम तत्व को स्मरण करने वाला बुरे कर्मों से दूर रहता है, मौन रहने वाले का झगड़ा नहीं होता और जागृत अर्थात सतर्क रहने वाले को भय नहीं होता।

A knowledge seeker/learner doesn't have imbecility; a contemplating person won't have sin; a silent observer won't get in strife; there is no fear for the awakened/ alert person. 

स्वाध्याय करें, स्मरण करें,
हम सतर्क हो नहीं डरें,
निज स्वास्थ्य का ध्यान धरें,
परम् तत्व का ध्यान करें।

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Wednesday, October 14, 2020

कर्तव्य

*चला लक्ष्मीश्चला: प्राणाश्चलं जीवित-यौवनम्।*
*चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः॥*

धन सम्पदा आती है जाती है, जीवन, यौवन भी चले जाते हैं, इस चलाचल (आने जाने वाले) संसार में मात्र एक धर्म अर्थात कर्तव्य ही निश्चल है।

Wealth comes and goes, life and youth also don't remain, in this world of coming and going, the _Dharma_ only is eternal.

निज कर्तव्य का भान करें,
अटल यही है मान करें,
जीवन यौवन धन जाने हैं,
परम तत्व का ध्यान करें।

स्वस्थ रहें।

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Monday, October 12, 2020

मधुर वचन

*दातृत्वं प्रियवक्तृत्वं धीरत्वमुचितज्ञता।*
*अभ्यासेन न लभ्यन्ते चत्वार: सहजा गुणा:।।*

दान देने की इच्छा, मधुर वचन बोलना, सहनशीलता और उचित-अनुचित का ज्ञान- ये चार बातें मनुष्यों में सहज स्वभाव से ही होती है, इन्हें अभ्यास से प्राप्त नहीं किया जा सकता।

Willingness to donate, speak sweet words, tolerance and knowledge to distinguish proper and inappropriate - these four things happen in human by nature only, they cannot be achieved through practice.

यदि मिला है मानव का तन,
कर लें प्रभु का थोड़ा सुमिरन,
स्वस्थ रहें खुश रखें यह मन,
होगा सार्थक अपना जीवन।

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Thursday, October 8, 2020

गुण

*पात्रविशेषे न्यस्तं गुणान्तरं व्रजति  शिल्पमाधातुः।*
*जलमिव समुद्रशुक्तौ मुक्ताफलतां  पयोदस्य।।*

वर्षा की बूंदें जब समुद्र में उत्पन्न सीपियों के अन्दर विशेष परिस्थिति में प्रवेश करती हैं तो कालान्तर में वह मोती बन जाती हैं। इसी प्रकार गुण ग्रहण करने की विशेष क्षमता वाले सामान्य व्यक्ति जब गुणी व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं तो वे भी गुणवान हो जाते हैं।

When rain drops enter inside ordinary sea shells during a particular auspicious time, they become pearl bearing shells.
Similarly, a complete change in the merits can occur in only those persons who are endowed with special qualities of acquiring virtues by coming in contact with virtuous and knowledgeable persons.

गुणवानों का साथ रखें,
किन्तु दूरी अवश्य रखें।
मुख को ढककर सदा रखें,
स्वस्थ बनें, स्वस्थ रखें।

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Wednesday, October 7, 2020

संचय

*कबिरा सो धन संचिये, जो आगे को होय।*                      *सीस चढ़ाये पोटली, जात न देख्यो कोय।।*

कबीर कहते हैं कि उस धन का संचय करो जो भविष्य में अर्थात इहलोक में भी काम आए क्योंकि मृत्यु के पश्चात सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।

One should collect the wealth of good deeds which can be used after death also as no body can take this physical wealth with him to another world.

स्वस्थ रहें।

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Tuesday, October 6, 2020

जीवन

*पुनर्वित्तं पुनर्मित्रं पुनर्भार्या पुनर्मही।*
*एतत्सर्वं पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुनः॥*

One can get wealth back, all his assets back, friends and wife back, and all the power back. But no one can get his life back once it is gone.

राज मित्र धन संपदा, परिजन अरु परिवार।
खोवे तो पुनि मिल सके, हमको बारम्बार।।

किन्तु तन से प्राण प्रभो, निकसे जो इक बार।
लौट सके न कबहु पुनि, पुनि पुनि करो विचार।।

जीवन है अनमोल जान लें,
स्वस्थ रहें हम नित्य ठान लें।

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Monday, October 5, 2020

सार तत्त्व

*अणुभ्यश्च महद्भ्यश्च शास्त्रेभ्यः कुशलो नरः।*
*सर्वतः सारमादद्यात्पुष्पेभ्य इव षट्पदः।।*

जिस तरह से मधुमक्खी विभिन्न प्रकार के पुष्पों का सार (पराग और मधु) ग्रहण कर लेती है, 
उसी प्रकार विद्वान एवम्  कुशल जन एक अणु समान छोटी अथवा बहुत बड़ी वस्तु से, सर्वत्र इधर उधर विचरण कर उसका सार तत्व ग्रहण कर लेते हैं।

Learned persons, expert in various Scriptures, collect the essence of various disciplines of learning by roaming everywhere just like the honey bees, who collect the nectar from all types of flowers.

सीख बड़ा भी उतनी देता,
छोटा जितना सिखला देता,
हम भी सबसे अच्छा सीखें,
स्वस्थ रहें, समृद्ध बनें।

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Saturday, October 3, 2020

स्नेह

*आवत ही हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।*
*तुलसी तहां न जाइये, कंचन बरसे मेह॥*

तुलसी दास जी कहते हैं कि जिस स्थान पर लोग आपके जाने से प्रसन्न न होवें और जहाँ लोगों की आँखों में आपके लिए प्रेम अथवा स्नेह ना हो ऐसे स्थान पर भले ही धन की कितनी भी वर्षा हो रही हो, नहीं जाना चाहिए।

At the place where people are not happy to see you and where there is no love or affection for you in their eyes, no matter how profitable to visit there, you should not go.

*समय अभी ऐसा ही जानो,*
*मिलो दूर से कहना मानो।*

स्वस्थ रहें।

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