*आस्ते भग आसीनस्य, ऊर्ध्वंतिष्ठति तिष्ठतः ।*
*शेते निपद्यमानस्य, चरति चरतो भगः।*
*चरैवेति चरैवेति॥*
जो मनुष्य (कुछ काम किये बिना) बैठता है, उसका भाग्य भी बैठ जाता है। जो उठ खड़ा होता है, उसका भाग्य भी उठ जाता है। जो सोता है, उसका भाग्य भी सो जाता है एवम् जो चलने लगता है, उसका भाग्य भी चलने लगता है।
अर्थात् कर्म से ही भाग्य है।
A person who sits (without doing anything), his fate also doesn't work. The one who is ready to work, his fate also starts working.
The doers are helped with luck/ fate. The fate doesn't help undoer.
*माना घर में ही रहना है,*
*किन्तु न कर्म कभी तजना है,*
*घर में रहकर काम करें,*
*निज स्वास्थ्य का ध्यान धरें।*
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