Thursday, October 3, 2019

प्रणाम

*जिन्ह कै लहहिं न रिपु रन पीठी।*
*नहिं पावहिं परतिय मनु डीठी॥*
*मंगन लहहिं न जिन्ह कै नाहीं।*
*ते नरबर थोरे जग माहीं॥*
रामचरितमानस : बालकाण्ड।

रण में शत्रु जिनकी पीठ नहीं देख पाते अर्थात्‌ जो लड़ाई के मैदान से भागते नहीं, परायी स्त्रियाँ जिनके मन और दृष्टि को नहीं खींच पातीं और जो किसी की सहायता मांगने पर पीछे नहीं हटते, ऐसे श्रेष्ठ पुरुष संसार में थोड़े हैं।

Who do not run away from the battleground, the other women can not touch and attract their minds, and who do not retreat when seeking help from someone, such great persons are  very few in the world.

*छठे नवरात्र पर माँ के कात्यायनी स्वरूप को नमन*

शुभ दिन हो।

🌸🌺🌹🙏🏻