Tuesday, March 23, 2021

हल्दी की रस्म

वाराणसी में मंगल गीतों के बीच माता गौरा को लगाई हल्दी, रंगभरी एकादशी पर निकलेगी गौना बरात
बाबा के गौना की रस्म के दूसरे दिन सोमवार को महंत आवास पर तेल-हल्दी की रस्म निभाई गई। गौरा के विग्रह को सुहागिनों ने हल्दी लगाई। नजर उतारने के लिए साठी क चाऊर चूमिय चूमिय... गीत गाकर माता गौरा की रजत मूर्ति को चावल से चूमा।
वाराणसी, जेएनएन। बाबा के गौना की रस्म के दूसरे दिन सोमवार को महंत आवास पर तेल-हल्दी की रस्म निभाई गई। गौरा के विग्रह को सुहागिनों ने हल्दी लगाई। नजर उतारने के लिए साठी क चाऊर चूमिय चूमिय... गीत गाकर माता  गौरा की रजत मूर्ति को चावल से चूमा। महंत डा. कुलपति तिवारी व पं. सुशील त्रिपाठी के आचार्यत्व में पं. वाचस्पति तिवारी व संजीव रत्न मिश्र ने माता गौरा का श्रृंगार किया। शाम को मंगलगीतों से अंगनाई गूंज उठी। ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच महिलाओं ने गीत गाया। कलाकारों ने गौरा के हरदी लगावा, गोरी के सुंदर बनावा..., सुकुमार गौरा कइसे कैलाश चढि़हें..., गौरा गोदी में लेके गणेश विदा होइ हैं ससुरारी... आदि गीतों में गौने के दौरान दिखने वाली ²श्यावली निखर कर सामने आई। साथ ही इस दौरान बाबा के गौना की तैयारियों पर चर्चा की गई।
बाबा की पगड़ी की हुई विशेष पूजा
रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ के मस्तक पर लगने वाली राजशाही पगड़ी की विशेष पूजा हुई। भक्तों को गौरा की विदाई से पहले बाबा के राजसी स्वरूप के दर्शन होंगे।
वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच हुआ षोडशोपचार पूजन व आरती
बनली भवानी दुलहिनिया के बिदा होके जइहैं ससुरार..., शिव दुलहा बन अइहैं, गौरा के लिया जइहैं..., मंगल बेला में आए महादेव बन दुलहा... और जा के ससुरे सखी न भुलइहा... आदि पारंपरिक मंगल गीतों से विश्वनाथ मंदिर के महंत का आवास गूंज उठा। अवसर था मां गौरा के गौना से पूर्व किए जाने वाले लोकाचार का, दिन था रविवार और बेला शाम की। इसी के साथ चार दिनों का रंगभरी का काशी का यह महामहोत्सव विशिष्ट धार्मिक व लोकाचार के आयोजनों के साथ उल्लासपूर्ण वातावरण में शुरू हो गया और इसी के साथ काशी में होली का आगाज भी। टेढ़ीनीम स्थित नवीन महंत आवास पर रविवार की शाम को पं. सुशील त्रिपाठी के आचार्यत्व में अंकशास्त्री पं. वाचस्पति तिवारी ने माता गौरा की प्रतिमा का विशेष  षोडशोपचार पूजन किया। संजीव रत्न मिश्र ने श्रृंगार - आरती की। भोग अर्पण के बाद गवनहरियों और परिवार की महिलाओं ने मिलकर मंगल गीत गाए। माता गौरा की रजत प्रतिमा के समक्ष दीप जला कर ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच महिलाओं ने चुमावन की रस्म भी अदा की। साठी क चाउर चुमीय चुमीय..,मनै मन गौरा जलाए जब चाउर चुमाए...,गौरा के लागे ना नजरिया कजरवा लगाय द ना... जैसे पारंपरिक गीतों के गायन का क्रम रात नौ बजे तक चलता रहा। इसके बाद सुहागिनों की अंचरा भराई की गई। महंत परिवार की महिलाओं ने गवनहरियों के आंचल में अक्षत, गुड़, हल्दी, खड़ी सुपाड़ी और दक्षिणा डाल कर उनकी विदाई की।