Friday, February 28, 2020

रंगभरी एकादशी

रामकृष्ण परमहंस की एक कहानी है । एक बार वे किसी नदी को पार कर रहे थे । " आह ! " एकाएक नाव के बीच बैठे बैठे वो कराहने लगे । दर्द से छटपटाने लगे । " मत मारो ! मत मारो ! " पीठ पर हाथ रखकर वो चीखते कराहते रहे। लोगो ने बाबा की पीठ उघाड़कर देखी तो लाल नीला चाबुक के निशान जैसा पड़ रहा था । साथ बैठे लोगों को कुछ समझ नही आया कि स्वामी जी को क्या हो रहा है । थोड़े समय बाद नाव उस पार पँहुची । सब क्या देखते है कि चुंगी वसूलने वाला गिरा कराह रहा है। सब दौड़कर पंहुचे तो उसने कराहते हुए बताया कि डकैत आए थे, सब पैसा लूट ले गए और खूब मारा भी । पीठ कमर पकड़कर वह रोने लगा । लोगो ने देखा कि उस चुंगी वाले बन्दे के पीठ कमर पर ठीक वन्ही निशान पड़ा है जन्हा स्वामी रामकृष्ण के पड़ रहे थे । 
प्रेम का एक शब्द है समानुभूति ' Empathy ' । लोक चलन में जो भौतिक प्रेम है उसका अधिकांश हिस्सा सहानुभूति ' Sympathy ' वाला है । सहानुभूति में प्रेम पनप ही नही सकता है । सहानुभूति हिंसा का ही एक आयाम है जिसमे ' I ' मैं तृप्त होता है । ' I ' तृप्त होकर ' You ' को ' Love ' का दान करता है । और एक कृत्रिम वाक्य बनता है I Love You और उसमें दो ' द्वैत ' सत्ता एक दूसरे पर अपने अपने मैं ' I ' को लेकर  ' You ' पर शाषन करने की , Posses करने की कोशिश में लगे रहते है । लेन देन के इस छिछले स्तर से लेकर द्वैत के सबीज समाधि तक । माने लेन-देन वाला ये जो प्रेम है .. ये वैलेंटाइन वाला घुमउवल- फिरौवल, माथा फोडउवल सिस्टम तक विस्तार पाता है । और द्वैत माने यँहा यह है कि सब जुड़ाव के बावजूद पुरुष स्त्री प्रेम के बाद भी अलग अलग ही रह जाते है । ठीक जैसे सबीज समाधि के स्तर पर पँहुचने पर भी योगी के अंदर उसके नाम लिंग आयु आदि का पहचान जुड़ाव स्मृति शेष रह ही जाता है । बाकी सिम्पैथी के पार प्रेम के आध्यात्म का शब्द है ' इम्पैथी ' समानुभूति । समानुभूति में दो का अस्तित्व नही रहता है । सब एक हो जाता है । पुरुष प्रकति एक । लड़का लड़की एक । पति पत्नी एक । शिव शक्ति एक। और इस अघोर आध्यात्मिक बात को कोई मिराबाई , कोई रूमी समझाते रहे है । कोई रामकृष्ण परमहंस 50 मीटर दूर चोट खा रहे आदमी की चोट को अपनी भी पीठ पर लेकर दिखाते रहे है । 
बाकी अपना बनारस ई सब अनायास अघोर अलख़ होकर करता रहा है । शिव पार्वती के परिवार में वो विलयता दर्शन करने योग्य बात है । अर्धनारीश्वर स्वरूप को देखिए और  शिवलिंग के विज्ञान का व्यावहारिक रूप व्यवहार में लाइये। इस तस्वीर में बाबा कँहा है ? भक्त कँहा हैं ? ई रँग ई तेवर ई आध्यात्म का विज्ञान फ्री फंड में कँहा बंटता होगा ? लाली तेरे लाल की जित देखूं तित लाल , लाल्ली देखन मैं गयी मैं भी हो गयी लाल ।।  ' सा !कासी केन मियते ?'  सब एकरँग एकरूप हो गए है । आज देवताओं की होली का दिन है । रंगभरी एकादशी की शुभकामनाए । हर हर महादेव! 

Wednesday, February 26, 2020

कर्तव्य का पालन

*यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्मा सनातनम्।*
*नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्य: कुरुसत्तम।।*
गीता : अध्याय ४, श्लोक ३१।

अपने अभीष्ट कर्तव्यों के पालन से प्राप्त अमृत का अनुभव करने वाले योगी जन सनातन परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं। 
और कर्तव्यों का निर्वहन न करने वाले पुरुष के लिये तो यह मनुष्य लोक भी सुखदायक नहीं हैं, फिर परलोक कैसे सुखदायक हो सकता है?

The person who enjoy the nectar of performing his due duties well attains the eternal Brahma.
But the man who does not do his duties well, how can he be happy even in this world or the other world.

शुभ दिन हो।

🌺🌸💐🙏🏻

Monday, February 24, 2020

धैर्यवान

*ऐश्वर्येऽपि क्षमा यस्य दारिद्र्येऽपि हितैषिता।*
*आपत्तावपि  धीरत्वं  दधतो  मर्त्यता कथं।।*

जो व्यक्ति ऐश्वर्यवान होते हुए भी क्षमाशील होते हैं, दरिद्र होते हुए भी अन्य व्यक्तियों की सहायता को सदैव तत्पर रहते हैं, तथा विपत्ति आने पर भी अपना धैर्य नहीं खोते हैं तो वे भला मृत्यु से क्यों भयभीत होंगे?

Those persons who in spite of being powerful and prosperous are also forgiving in nature, in spite of being poor are always ready to help others, and remain courageous and firm even while facing a calamity, why will they be afraid of their mortality?

क्षमाशील व धैर्यवान बनें और दूसरों की सहायता करें।

शुभ दिन हो।

🌹🌸💐🙏

Sunday, February 23, 2020

गुण

*न हि जन्मनि ज्येष्ठत्वं गुणैर्ज्येष्ठत्वमुच्यते।*
*गुणाद् गुरूत्वमायाति दुग्धं दधि घृतं यथा॥*

श्रेष्ठता जन्म से नहीं आती वरन गुणों के कारण होती है। दही, दूध, घी; ये सब एक ही कुल के हैं, तथापि सब के मूल्य अलग अलग होते है।

Superiority does not come from birth but because of the qualities. Curd, Milk, Ghee; these are all of the same lineage, however the value of each is different.

शुभ दिन हो।

🌺🌸💐🙏🏼

Saturday, February 22, 2020

प्रीती

*रहिमन प्रीति सराहिए, मिले होत रंग दून।*
*ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सपेदी चून।।*

हल्दी और चूना एक दूसरे से मिलते हैं तो हल्दी अपनी पीतिमा और चूना अपनी श्वेतमा एक दूसरे को अर्पित कर देते हैं और रोचना बन जाते हैं जो एक विशिष्ट रंग धर कर सुशोभित होता है।

अपना अपना अहम् छोड़ एक दूसरे में मिल जाएं, ऐसी प्रीति ही प्रशंसनीय है।

Turmeric and lime while meet with each other, leave their own colors and become a distinctive adorable color.

We should leave our own egos in one another, such love is commendable.

शुभ दिन हो।

🌹🌺💐🙏🏻

Thursday, February 20, 2020

हर हर महादेव

साकार व निराकार परमात्मा के द्वंद्व को ध्यान में रखते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अंतिम काण्ड उत्तरकाण्ड में (आठ श्लोक के रुद्राष्टकम् स्तोत्र में) परम शिव की स्तुति करते हुए ईश्वर का जो व्याख्यान किया है उससे साकार व निराकार के द्वंद्व को हम जैसे मूढ़ भी आसानी से समझ कर उस परम पिता परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

रुद्राष्टकम् का प्रथम श्लोक :

*नमामि ईशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌।*
*निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशम् आकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥*

हे मोक्ष स्वरुप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेद स्वरुप, ईशों के ईश्वर सब के स्वामी, मैं आपको नमन करता हूँ। 
हे निजस्वरूप में स्थित अर्थात माया से रहित, गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाश एवं आकाश को ही वस्त्र के रूप में धारण करने वाले दिगंबर अर्थात आकाश को भी आच्छादित करने वाले ईश्वर मैं आपको नमन करता हूँ।

महाशिवरात्रि के इस पावन पर्व पर आएँ हम उस निराकार परमात्मा के साकार शिव रूप का ध्यान एवं स्तुति करें।

*शिव एवं सती के महामिलन के पर्व महाशिवरात्रि की कोटि कोटि शुभकामनाएँ।*

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Wednesday, February 19, 2020

जीवन अमूल्य है

*पुनर्वित्तं   पुनर्मित्रं   पुनर्भार्या   पुनर्मही।*
*एतत्सर्वं पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुनः॥*

One can get wealth back, all his assets back, friends and wife back, and lost power back. But no one can get the life back once it is gone.

राज मित्र धन संपदा, परिजन अरु परिवार।
खोवे तो पुनि मिल सके, हमको बारम्बार।।

किन्तु तन से प्राण प्रभो, निकसे जो इक बार।
लौट सके न कबहु पुनि, पुनि पुनि करो विचार।।

जीवन अमूल्य है, जी भर जिएँ।

शुभ दिन हो।

🌹🌸💐🙏🏼

Tuesday, February 18, 2020

ईश्वर का स्मरण

*तुलसी मेरे राम को रीझ भजो या खीज।*
*भौम पड़ा जामे सभी उल्टा सीधा बीज॥*

भूमि में बोये बीज उल्टे पड़े हों या सीधे फिर भी कालांतर में फसल बन जाती है।
इसी प्रकार ईश्वर का स्मरण अथवा सुमिरन कैसे भी अर्थात् मन से अथवा बिना मन से किया जाये उसका फल अवश्य ही मिलता है।

ईश्वर का सदैव स्मरण करें।

The seeds sown in the field grow and become crop irrespective of their position. 
Similarly, if we pray God in any condition, it will create blessings for us.

Pray in all condition.

शुभ दिन हो।

🌸💐🌹🙏🏼

Monday, February 17, 2020

निर्भय

*तावत् भयस्य भेतव्यं*
      *यावत् भयं न आगतम्,*
*आगतं हि भयं वीक्ष्य*  
       *प्रहर्तव्यं अशंकया।।*

भय से तब तक ही डरना चाहिए जब तक भय निकट न आया हो। भय को निकट देखकर बिना शंका के उस पर प्रहार कर उसे नष्ट कर देना चाहिए।
अर्थात भय से सदा दूर रहें।

Fear should always be kept away, if it comes near, it should be wiped off undoubtedly.
Be fearless.

निर्भय बनें।

शुभ दिन हो।

🌸🌺💐🙏🏻

Sunday, February 16, 2020

परमशक्ति

*यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।*
*तस्याहं न प्रणश्यामि स च में न प्रणश्यति।।*
गीता : अध्याय ६, श्लोक ३०।

भगवान श्रीकृष्ण गीता में  कहते हैं कि जो सम्पूर्ण भूतों में अर्थात् सर्वत्र एवं सबके आत्म रूप मुझ वासुदेव को ही अर्थात परमात्मा को देखता है एवं परमात्मा के अन्तर्गत देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता। अर्थात स्वयं परमात्मा उनका ध्यान रखते हैं।

He who sees Me (the universal self) present in all beings, and all beings existing within Me, never loses sight of Me, and I never lose sight of him.

सर्वत्र परमशक्ति को अनुभव करें।

शुभ दिन हो।

🌺🌸💐🙏🏻

Saturday, February 15, 2020

कर्म

*ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।*
*भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥*
गीता : अध्याय १८, श्लोक ६१।

हमारे कर्मों के अनुरूप ईश्वर हमारे हृदय में अवस्थित हो कर हमारे शरीर रुपी यन्त्र को अपनी माया के माध्यम से चलाते रहते हैं।

The Omni dwells in our hearts and revolve our machine (body with the senses) according to our deeds by his allure.

शुभ दिन हो।

🌸🌹💐🙏🏼

Thursday, February 13, 2020

अभ्यास

*जलबिन्दुनिपातेन क्रमश: पूर्यते घट:।* 
*स हेतु: सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च॥*

पानी की एक एक बूंद भी निरंतर गिरने से घड़ा भर जाता है, उसी प्रकार धीरे धीरे अभ्यास करने से सब विद्याओं की प्राप्ति हो जाती है, एवम् थोड़ा थोड़ा करके ही धर्म और धन का संचय भी हो जाता है।

A pot is filled by tiny drops of water pouring regularly in it.
Similarly, regular little efforts make a person learned, wealthy and blissful.

निरंतर प्रयास करें।

शुभ दिन हो।

🌺🌹💐🙏🏼

Wednesday, February 12, 2020

गुणवान

*पात्रविशेषे न्यस्तं गुणान्तरं व्रजति  शिल्पमाधातुः।*
*जलमिव समुद्रशुक्तौ मुक्ताफलतां  पयोदस्य।।*

वर्षा की बूंदें जब समुद्र में उत्पन्न सीपियों के अन्दर विशेष परिस्थिति में प्रवेश करती हैं तो कालान्तर में वह मोती बन जाती हैं। इसी प्रकार गुण ग्रहण करने की विशेष क्षमता वाले सामान्य व्यक्ति जब गुणी व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं तो वे भी गुणवान हो जाते हैं।

When rain drops enter inside ordinary sea shells during a particular auspicious time, they become pearl bearing shells.
Similarly, a complete change in the merits can occur in only those persons who are endowed with special qualities of acquiring virtues by coming in contact with virtuous and knowledgeable persons.

गुणीजनों का सानिध्य करें।

शुभ दिन हो।

💐🌸🌹🙏🏼

Tuesday, February 11, 2020

मंत्रणा

*यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं  वा मन्त्रितं परे।*
*कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डित उच्यते।।*

जिस व्यक्ति द्वारा भविष्य में किये जाने वाले कार्यों के बारे में मन्त्रणा (विचार) करने, निश्चय करने तथा उसके पश्चात क्रियान्वयन होने तक अन्य व्यक्ति कुछ भी नहीं जानते हैं, वही एक पण्डित कहलाता है।

A person, whose actions about a project undertaken by him are not known to others  during  the stages of  consultations, finalization, and implementation, and it is known only when it is completed, is truly called a learned person.

शुभ दिन हो।

🌺🌸💐🙏🏻

Monday, February 10, 2020

उद्देश्य

*ओछो काम बड़े करैं, तौ न बड़ाई होय।*
*ज्‍यों रहीम हनुमंत को, गिरधर कहै न कोय॥*

लघु उद्देश्य हेतु अकारण ही कुछ बड़ा दिखायी देने वाला कार्य कर देने से शक्तिवान एवं गुणीजनों का बड़प्पन नहीं है, जिस प्रकार हनुमानजी द्वारा पर्वत उठा लेने पर भी यह जग कृष्ण के समान गिरधारी नहीं कहता।

Just doing something big by intellects for a little objective doesn't matter, likewise _Hanuman_ is not called _Girdhari_ (one who lift a hill) even though he brought the whole mountain instead of some plants. 

शुभ दिन हो।

🌹🌺💐🙏

Saturday, February 8, 2020

श्री राम

*बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।*
*अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ॥*
*संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।*
*बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु॥*

गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस में संत हृदय को नमन करते हुए उनकी विशेषताओं के बारे में कहते हैं, जिनके चित्त में समता है, जिनका न कोई मित्र है और न शत्रु! जैसे अंजलि में रखे हुए सुंदर फूल (जिस हाथ ने फूलों को तोड़ा और जिसने उनको रखा उन) दोनों ही हाथों को समान रूप से सुगंधित करते हैं, वैसे ही संत हृदय शत्रु और मित्र दोनों का ही समान रूप से कल्याण करते हैं।
संत सरल हृदय और जगत के हितकारी होते हैं, उनके ऐसे स्वभाव और स्नेह को जानते हुए  विनय करता हूँ, मेरी इस बाल-विनय को सुनकर कृपा करके श्री रामजी के चरणों में अर्थात परम् तत्व में प्रीति दें॥

The noble person keeps his heart unaltered, he has neither friends nor foes. Treats all in the same manner. The author _Goswami Tulsidas_ praises this characteristics and requests all these noble persons to bestow him the devotion to the Almighty.

शुभ दिन हो।

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Friday, February 7, 2020

सार

*भरत बिनय सादर सुनिअ, करिअ बिचारु बहोरि।*
*करब साधुमत लोकमत, नृपनय निगम निचोरि॥*
रामचरितमानस : अयोध्याकांड।

ऋषि वशिष्ठ श्री राम को प्रथम अनुज भरत की विनती को आदरपूर्वक सुन कर उस पर विचार करने को कहते हैं। साथ ही साधुमत, लोकमत, राजनीति और वेदों का सार भी ध्यान में रखकर निर्णय लेने का परामर्श देते हैं।

Sage Vasishth advised  to Ram to listen first to Bharat's request respectfully and then think over it.
He also advised to take in consideration the views of Sadhus, public, King's duties and then the Vedas, before take a decision.

देश की राजधानी में आज 70 विधान सभा क्षेत्रों में होने वाले चुनाव में भली प्रकार विचार कर मतदान करें।

*मतदान अवश्य करें।*

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Thursday, February 6, 2020

परमसत्ता

*सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा।* *गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा॥*
*अगुन अरूप अलख अज जोई।* *भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥*

रामचरितमानस में परम सत्ता के सगुण और निर्गुण (निराकार एवं साकार) रूप में कोई भेद नहीं बताया है।
परम सत्ता, जो निर्गुण, अरूप (निराकार), अलख (अव्यक्त) और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण रूप धारण करती है। 
अर्थात् भावना की प्रखरता सूक्ष्म चेतना को स्थूल स्वरूप में अवतरित कर देती है।

In the form of saguna and nirguna (formless and true) of supreme power, there is not described any distinction.

The supreme power, which is Nirguna, Arup (formless), Alakh (latent) and unborn, holds the Saguna form due to love for the devotees. 
*The intensity of the perception and belief transforms the subtle consciousness into a gross form.*

शुभ दिन हो।

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Wednesday, February 5, 2020

आत्म प्रवचन

*परैरुक्तगुणो यस्तु निर्गुणोऽपि गुणी भवेत्।*
*इन्द्रोऽपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणै:।।*
                                    
यदि अन्य जन किसी व्यक्ति को गुणवान कहते हैं तो वह व्यक्ति गुणहीन होते हुए भी गुणवान समझा जाता है। परन्तु यदि कोई व्यक्ति स्वयं ही अपने गुणों का वर्णन करता है तो चाहे स्वयं देवताओं के राजा इन्द्र ही हों, वह अपनी गरिमा खो देता है।

If people treat someone as virtuous, in spite of his being without any virtuous, he is treated as a virtuous person. But if someone declares himself as a virtuous person, he loses his dignity, even if he may be Indra, the king of Gods.

आत्म प्रवंचना से बचें।

शुभ दिन हो।

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Tuesday, February 4, 2020

विवेक

*सुख हरषहिं जड़ दु:ख बिलखाहीं।*
*दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं॥*
*धीरज धरहु बिबेकु बिचारी।*
 *छाड़िअ सोच सकल हितकारी॥*
रामचरित मानस : अयोध्या काण्ड।

सुख में हर्षित होना और दुःख में रोना, जड़मति अर्थात मूर्ख जन करते हैं, परन्तु धीर पुरुष अपने मन में दोनों को समान समझते हैं। 

विवेक पूर्ण विचार कर धीरज रख कर चिंता का त्याग सभी प्रकार से हितकारी होता है।

To be happy in joy and crying in sorrow, is foolish, but the men who are patient consider both joy and sorrow equal in their mind.

Considering with patience in all situations and avoiding anxiety is beneficial in all respects.

धीरज रखें।

शुभ दिन हो।

🌹🌺💐🙏🏼

Sunday, February 2, 2020

सज्जनता

*जग बहु नर सर सरि सम भाई।*
*जे निज बाढ़ि बढ़हि जल पाई॥*
*सज्जन सकृत सिंधु सम कोई।* 
*देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥*
रामचरित मानस : बालकाण्ड

In this world the most of the people are as of ponds and rivers which please while they get more. But very few are like the sea which high tides to see the full moon means become happy to see others prosperity.

इस जगत में तालाबों और नदियों के समान जल पाकर अपनी ही बाढ़ से बढ़ने वाले मनुष्यों की संख्या ही अधिक है, अर्थात्‌ अपनी ही उन्नति से प्रसन्न होने वाले अधिक हैं।
समुद्र के जैसा चन्द्रमा को पूर्ण देखकर, अर्थात दूसरों का उत्कर्ष देखकर उमड़ पड़ने वाला तो कोई एक बिरला ही सज्जन होता है।

ईर्ष्या से बचें, सज्जन बनें।

शुभ दिन हो।

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Saturday, February 1, 2020

संत असंत

*बंदउँ संत असज्जन चरना।* *दुःखप्रद उभय बीच कछु बरना॥*
*बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं।* *मिलत एक दु:ख दारुन देहीं॥*
*उपजहिं एक संग जग माहीं।* *जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं॥*
*सुधा सुरा सम साधु असाधू।* *जनक एक जग जलधि अगाधू॥*
रामचरित मानस : बालकाण्ड

संत और असंत दोनों के वन्दन की सीख देते हुए तुलसीदास जी कहते हैं, दोनों ही दुःख देने वाले हैं, परन्तु उनमें इतना अन्तर है कि एक (संत) बिछुड़ते समय प्राण हर लेते हैं और दूसरे (असंत) मिलते हैं, तब दारुण दुःख देते हैं। अर्थात्‌ संतों का बिछुड़ना मरने के समान दुःखदायी होता है और असंतों का मिलना।
दोनों (संत और असंत) जगत् में साथ पैदा होते हैं, पर कमल और जोंक की तरह उनके गुण अलग-अलग होते हैं। कमल दर्शन और स्पर्श से सुख देता है, किन्तु जोंक शरीर का स्पर्श पाते ही रक्त चूसने लगती है। साधु अमृत के समान और असाधु मदिरा के समान (मोह, प्रमाद और जड़ता उत्पन्न करने वाला) है, दोनों को उत्पन्न करने वाला जगत् रूपी अगाध समुद्र एक ही है।

The Good and Evil has similar origin that is this world but their basic characteristics are different like nector and wine. Both bless us with grief, Good while detached and Evil on meet.

अच्छे एवम् बुरे में भेद समझें।

शुभ दिन हो।

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