Tuesday, October 5, 2021

सदैव शुभ

*वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।*
*तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।*
गीता : अध्याय २, श्लोक २२।

जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर दूसरे नये शरीर को धारण करती है।

Just like people shed worn-out clothes and wear new ones, our soul casts off its worn-out body and enters a new one.

आज *सर्वपितृ अमावस्या* पर अपने पूर्वजों के स्वर्ग में अथवा इस पृथ्वी पर किसी और शरीर में होने के विश्वास को दृढ़ करते हुए, उनके आशीर्वाद को अनुभव करें। 

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

जय श्री राम

*समै समै सुंदर सबै, रूप कुरूप न कोय।*
*मन की रुचि जेत जितै, तित तेती रुचि होय।*
बिहारी सतसई

समय-समय पर सभी सुन्दर हैं, कोई सुन्दर और कोई कुरूप नहीं है। मन की प्रवृत्ति जिधर जितनी होती है, उधर उतनी ही आसक्ति होती है।

All are beautiful at times, nothing is beautiful ugly. Wherever there is tendency of the mind, there will be more attachment.

एक परम में ध्यान धरें,
व्यस्त रहें हम स्वस्थ रहें।

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼