Wednesday, August 12, 2020

शुभ मंगल

*परोऽपि हितवान् बन्धुः बन्धुरप्यहितः परः।*
*अहितो देहजो व्याधिः हितमारण्यमौषधम्॥*

बीमारियाँ हमारे शरीर के भीतर रहते हुए भी हमारा बुरा करती हैं और औषधियाँ हमसे दूर वनों में रहकर भी हमारा भला करती हैं (अर्थात् व्याधियाँ हमारी शत्रु हैं और औषधियाँ मित्र)। इसी प्रकार रिश्तेदार न होते हुए भी जो हमारा हित करे वही वास्तव में अपना होता है और रिश्तेदार होते हुए भी हमारा अहित करे तो वह पराया ही होता है।

Illness stays within us and damages while medicines stay far from us and make us well. Similarly, not the one who stays near to us is our well-wisher, but who wishes well for us is our near and dear.

*नहीं दूर का शत्रु जरूरी,*
*नहीं पास का मित्र जरूरी,*
*हितकर हो जो वह अपना है,*
*चाहे हो कितनी भी दूरी।*

शुभ दिन हो।

🌹🌸💐🙏🏻