Thursday, November 24, 2022

हरी सुमिरन

*बारि मथें घृत होइ बरु सिकता ते बरु तेल।*
*बिनु हरि भजन न तव तरिअ यह सिद्धांत अपेल॥*
रामचरितमानस : उत्तर काण्ड।

जल को मथने से भले ही घी उत्पन्न हो जाए और भूसे से भले ही तेल निकल आए, परन्तु परमात्मा के सुमिरन के बिना संसार रूपी सागर से नहीं तरा जा सकता, यह सिद्धांत अटल है॥

Even butter can be produced by churning water and the oil can be abstracted from dry straws, But being not on the path of God, one can not distract from the attraction of this world. This theory is unattainable.

*एक परम को जान समझ लें,*
*और परम का सुमिरन कर लें,*
*भव सागर से हम तर जाएँ,*
*साथ परम के सब सुख पा लें।*

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Monday, November 7, 2022

कार्तिक पूर्णिमा

*जगत में झूठी देखी प्रीत।*
*अपने ही सुख सों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥*
*अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥*
*नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥*

कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली, प्रकाश परब एवं *गुरु नानक देव* की जयंती पर आएँ हम अपने कर्तव्यों (धर्म) के प्रति सजग होने का संकल्प लें एवं दैवीय शक्तियों को स्वयं में अनुभव करें।

आज चंद्र ग्रहण में हम अधिकाधिक साधना करें, उत्सव न मनाएँ।

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Thursday, November 3, 2022

देव दीपावली

*त्रिकाल बिनता पुत्र प्रयाश तुलसी यदि।*
*विशिष्यते कायशुद्धिश्चान्द्रायण शतं बिना।।*
*तुलसी गंधमादाय यत्र गच्छन्ति: मारुत:।*
*दिशो दशश्च पूतास्तु: भूत ग्रामश्चतुर्विध:।।*

यदि सुबह, दोपहर और शाम को तुलसी का सेवन किया जाए तो उससे शरीर इतना शुद्ध हो जाता है, जितना अनेक चांद्रायण व्रत के बाद भी नहीं होता। तुलसी की गंध जितनी दूर तक जाती है, वहाँ तक का वातारण और निवास करने वाले जीव निरोगी और पवित्र हो जाते हैं।

*तुलसी का एक पौधा अपने घर में अवश्य लगाएँ।*

If one consumes _Tulsi_ three times (morning, afternoon and evening) a day her/his body will become more clean than it can be done by doing _Chandrayan Vrat_ (a very difficult fasting). All the living beings living in the environment where the aroma (smell) of Tulsi reaches, become healthy and holy.

*Please plant a _Tulsi_ at home.*

*देव प्रबोधिनी एकादशी (तुलसी विवाह) पर हम अपने सोये देवत्व को जागृत करें।*

*तुलसी को अपनाएँ हम,*
*तन मन स्वस्थ बनाएँ हम,*
*मानवता उर में भर लें,*
*अब देवत्व जगाएँ हम।*

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