Monday, July 13, 2020

पथ

*अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।*
*नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मन:।।*
गीता : अध्याय ४, श्लोक ४०।

विवेकहीन और श्रद्धारहित संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से भटक जाता है। ऐसे संशययुक्त मनुष्य के लिये न इस लोक में न ही परलोक में सुख है ।

He who lacks discrimination, is devoid of faith, and is possessed by doubt, loses the spiritual path. For the doubting soul there is not any happiness either in this world or the world beyond.

*संशय मन में क्यों रखना है,*
*हम ईश्वर की ही रचना है,*
*योग नियम जप तप करना है,*
*क्रोध कुसंग से नित बचना है।*

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