Sunday, October 31, 2021

प्रभु भक्ति

*ऊँ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव।*
*यद् भद्रं तन्न आ सुव।।*

ऋग्वेद : मण्डल ५, सूक्त ८२/५.

हे सब सुखों के दाता ज्ञान के प्रकाशक सकल जगत के उत्पत्तिकर्ता एवं समग्र ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वर! आप हमारे सम्पूर्ण दुर्गुणों, दुर्व्यसनों और दु:खों को दूर कीजिये, और जो कल्याणकारक गुण, कर्म, स्वभाव, सुख और पदार्थ हैं, हमें प्रदान कीजिये।

O the giver of all pleasures, the illuminator of knowledge, the creator of the whole world and the God of all opulence! Kindly take away all our vices, addictions and sorrows, and bestow upon us the beneficial qualities, deeds, nature, pleasures and substances.

आज *रमा एकादशी* से प्रारम्भ होने वाले दीपों के महोत्सव में माँ लक्ष्मी हम सभी को स्वस्थ और समृद्ध बनाए।

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Thursday, October 28, 2021

जय माँ

*अपवक्ता हृदयाविजश्चित्।* (ऋग्वेद 1/24/8)

उन सभी कुत्सित विचारों को त्याग दीजिये जो आत्मा को कष्ट दे अथवा नष्ट कर दे।

Abandon all sorrowful thoughts which may trouble or destroy the soul.

*हम ईश्वर की संतानें,*
*नित्य स्वयं को पहचानें।*

स्वस्थ रहें।

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Wednesday, October 27, 2021

स्वयं

*मुक्ताभिमानी मुक्तो हि बद्धो बद्धाभिमान्यपि।*
*किवदन्तीह सत्येयं या मतिः सा गतिर्भवेत्॥१-११॥*
अष्टावक्र गीता

स्वयं को मुक्त मानने वाला मुक्त ही है और बद्ध मानने वाला बंधा हुआ ही है, यह कहावत सत्य है कि जैसी बुद्धि होती है वैसी ही गति होती है।

If you think you are free you are free. If you think you are bound you are bound. It is rightly said: You become what you think.

*ईश पुत्र हम मानें हम,*
*निज मन को पहचानें हम,*
*मुक्त स्वयं को समझें हम,*
*स्वयं स्वयं को जानें हम।*

आज *अहोई अष्टमी* पर सभी संतानों के स्वास्थ्य की रक्षा हो एवं व्रतधारिणी माताओं के अभीष्ट पूर्ण हों।

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Tuesday, October 26, 2021

आचरण

*आचाराल्लभते आयु: आचारादीप्सिता: प्राजा:,*
*आचाराद्धनमक्षय्यम् आचारो हन्त्यलक्षणम्।।*

अच्छे आचरण अर्थात सदव्यवहार से दीर्घ आयु, श्रेष्ठ सन्तति, चिर समृद्धि प्राप्त होती है, तथा अपने दोषों का भी नाश होता है। प्रत्येक परिस्थिति हमारे हाथ में नहीं किन्तु हमारा आचरण हमारे वश में है।

Good conduct means good behavior, gives longevity, great progeny, everlasting prosperity, and also destroys one's own faults. Every situation is not in our hands but our conduct is under our control.

*व्यवहार हमारा अच्छा हो,*
*व्यवहार हमारा सच्चा हो,*
*हम स्वच्छ रहें हम स्वस्थ रहें,*
*हम व्यस्त रहें हम मस्त रहें।*

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Monday, October 25, 2021

अहम से बचे

*प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश:।*
*अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते।।*
गीता : अध्याय ३, श्लोक २७।

वास्तव में सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते हैं तथापि जिसका अन्त:करण अहंकार से मोहित हो रहा है, ऐसा अज्ञानी 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मानता है।

All actions are being performed by the modes of nature (Primordial matter). The foolish, whose mind is deluded by egoism, thinks: “I am the doer".

अहम से बचें, परम को समझें,
मैं करता हूँ, यह न समझें,
स्व में स्थित स्वस्थ रहें।

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Saturday, October 23, 2021

करवा चौथ

रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने शक्ति स्वरूपा नारी को नमन करते हुए कहा है:

*उद्भवस्थितिसंहारकारिणी क्लेशहरिणीम्।*
*सर्वश्रेयस्कारीं सीता नतोऽहं रामवल्लभाम्।।*

उत्पत्ति, स्थिति (पालन) और संहार करने वाली, क्लेशों को हरने वाली तथा समस्त कल्याणों को करने वाली स्वयम् भगवन को प्रिय नारी शक्ति को मैं नमन करता हूँ।

I salute the woman, symbol of power of creation, adherence and destruction, defeating afflictions and doing all the welfare. At last GOD's love, o woman! I bow myself to you.

अपने जीवनसाथी की स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन हेतु एक नारी निर्जल कठोर तप करती है, आज *करवा चौथ* व्रतधारी सभी नारियों की मनोकामना माँ भवानी पूर्ण करे एवं उन्हें भी स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन प्रदान करें।

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Friday, October 22, 2021

परम सत्ता

*सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा।* *गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा॥*
*अगुन अरूप अलख अज जोई।* *भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥*

रामचरितमानस में परम सत्ता के सगुण और निर्गुण (निराकार एवं साकार) रूप में कोई भेद नहीं बताया है।
परम सत्ता, जो निर्गुण, अरूप (निराकार), अलख (अव्यक्त) और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण रूप धारण करती है। 
अर्थात् भावना की प्रखरता सूक्ष्म चेतना को स्थूल स्वरूप में अवतरित कर देती है।

In the form of saguna and nirguna (formless and true) of supreme power, there is not described any distinction.

The supreme power, which is Nirguna, Arup (formless), Alakh (latent) and unborn, holds the Saguna form due to love for the devotees. 
*The intensity of the perception and belief transforms the subtle consciousness into a gross form.*

स्वस्थ रहें।

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Thursday, October 21, 2021

माँ तुलसी की महिमा

🔸कार्तिक मास में तुलसी की महिमा🔸

          ब्रह्मा जी कहे हैं कि कार्तिक मास में जो भक्त प्रातः काल स्नान करके पवित्र हो कोमल तुलसी दल से भगवान् दामोदर की पूजा करते हैं, वह निश्चय ही मोक्ष पाते हैं। पूर्वकाल में भक्त विष्णुदास भक्तिपूर्वक तुलसी पूजन से शीघ्र ही भगवान् के धाम को चला गया और राजा चोल उसकी तुलना में गौण हो गए। तुलसी से भगवान् की पूजा, पाप का नाश और पुण्य की वृद्धि करने वाली है। अपनी लगाई हुई तुलसी जितना ही अपने मूल का विस्तार करती है, उतने ही सहस्रयुगों तक मनुष्य ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित रहता है। यदि कोई तुलसी संयुत जल में स्नान करता है तो वह पापमुक्त हो आनन्द का अनुभव करता है। जिसके घर में तुलसी का पौधा विद्यमान है, उसका घर तीर्थ के समान है, वहाँ यमराज के दूत नहीं जाते। जो मनुष्य तुलसी काष्ठ संयुक्त गंध धारण करता है, क्रियामाण पाप उसके शरीर का स्पर्श नहीं करते। जहाँ तुलसी वन की छाया हो वहीं पर पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिसके कान में, मुख में और मस्तक पर तुलसी का पत्ता दिखाई देता है, उसके ऊपर यमराज दृष्टि नहीं डाल सकते।
          प्राचीन काल में हरिमेधा और सुमेधा नामक दो ब्राह्मण थे। वह जाते-जाते किसी दुर्गम वन में परिश्रम से व्याकुल हो गए, वहाँ उन्होंने एक स्थान पर तुलसी दल देखा। सुमेधा ने तुलसी का महान् वन देखकर उसकी परिक्रमा की और भक्ति पूर्वक प्रणाम किया। यह देख हरिमेधा ने पूछा कि 'तुमने अन्य सभी देवताओं व तीर्थ-व्रतों के रहते तुलसी वन को प्रणाम क्यों किया ?' तो सुमेधा ने बताया कि 'प्राचीन काल में जब दुर्वासा के शाप से इन्द्र का ऐश्वर्य छिन गया तब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मन्थन किया तो धनवंतरि रूप भगवान् श्री हरि और दिव्य औषधियाँ प्रकट हुईं। उन दिव्य औषधियों में मण्डलाकार तुलसी उत्पन्न हुई, जिसे ब्रह्मा आदि देवताओं ने श्री हरि को समर्पित किया और भगवान् ने उसे ग्रहण कर लिया। भगवान् नारायण संसार के रक्षक और तुलसी उनकी प्रियतमा है। इसलिए मैंने उन्हें प्रणाम किया है।'
          सुमेधा इस प्रकार कह ही रहे थे कि सूर्य के समान अत्यंत तेजस्वी विशाल विमान उनके निकट उतरा। उन दोनों के समक्ष वहाँ एक बरगद का वृक्ष गिर पड़ा और उसमें से दो दिव्य पुरुष प्रकट हुए। उन दोनों ने हरिमेधा और सुमेधा को प्रणाम किया। दोनों ब्राह्मणों ने उनसे पूछा कि आप कौन हैं ? तब उनमें से जो बड़ा था वह बोला, मेरा नाम आस्तिक है। एक दिन मैं नन्दन वन में पर्वत पर क्रीड़ा करने गया था तो देवांगनाओं ने मेरे साथ इच्छानुसार विहार किया। उस समय उन युवतियों के हार के मोती टूटकर तपस्या करते हुए लोमश ऋषि पर गिर पड़े। यह देखकर मुनि को क्रोध आया। उन्होंने सोचा कि स्त्रियाँ तो परतंत्र होती हैं। अत: यह उनका अपराध नहीं, दुराचारी आस्तिक ही शाप के योग्य है। ऐसा सोचकर उन्होंने मुझे शापित किया - "अरे तू ब्रह्म राक्षस होकर बरगद के पेड़ पर निवास कर।" जब मैंने विनती से उन्हें प्रसन्न किया तो उन्होंने शाप से मुक्ति की विधि सुनिश्चित कर दी कि जब तू किसी ब्राह्मण के मुख से तुलसी दल की महिमा सुनेगा तो तत्काल तुझे उत्तम मोक्ष प्राप्त होगा। इस प्रकार मुक्ति का शाप पाकर मैं चिरकाल से इस वट वृक्ष पर निवास कर रहा था। आज दैववश आपके दर्शन से मेरा छुटकारा हुआ है।
          तत्पश्चात् वे दोनों श्रेष्ठ ब्राह्मण परस्पर पुण्यमयी तुलसी की प्रशंसा करते हुए तीर्थ यात्रा को चल दिए। इसलिए भगवान् विष्णु को प्रसन्नता देने वाले इस कार्तिक मास में तुलसी की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
                ०   ०   ०

   "जय  श्री कृष्णा राधे राधे 🙏

परिणाम

*एकवापीभवं  तोयं   पात्रापात्र  विशेषतः।*
*आम्रे मधुरतामेति  निम्बे कटुकतामपि।।*

एक ही तालाब का जल, विशेषतः योग्य तथा अयोग्य प्राप्तकर्ताओं  के द्वारा प्रयुक्त हो कर ,अलग अलग परिणाम देता है। उदाहरण स्वरूप आम के वृक्ष को सिंचित करने  से उसके फलों में मिठास उत्पन्न होती है  परन्तु नीम के वृक्ष में कटुकता ही उत्पन्न होती है।

एक ही साधन का सज्जन व्यक्ति सदुपयोग करते हैं और दुर्जन दुरुपयोग करते हैं और उसके परिणाम भी तदनुसार अच्छे और बुरे होते हैं।

Water from the same pond used for irrigation purposes produces different results depending upon the  competence
or incompetence of the recipients, e.g while the Mango tree produces sweet fruits, all the products of Neem tree  are bitter in taste."

The competent persons put to good use the resources available to them and the same resources are misused by incompetent persons producing bad results.

स्वस्थ रहें।

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Tuesday, October 19, 2021

बाल्मीकि जयंती

*मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शास्वती समा।*
*यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्।।*

हे निषाद। तुझे कभी भी शान्ति न मिले, क्योंकि तूने इस काम से मोहित क्रौंच के जोड़े में से एक की बिना किसी अपराध के ही हत्या कर डाली।

आदि कवि वाल्मीकि जी ने करुणा से भरकर इस प्रथम श्लोक की रचना की एवं तत्पश्चात *रामायण* की रचना की।

एक दस्यु से महर्षि बने *वाल्मीकि* की जयंती पर हम सदैव उत्कृष्टता की ओर बढ़ने का संकल्प लें।

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Monday, October 18, 2021

जय श्री राम

*फूलइ फरइ न बेत, जदपि सुधा बरषहिं जलद।*
*मूरुख हृदयँ न चेत, जौं गुर मिलहिं बिरंचि सम॥*

रामचरितमानस : लंका काण्ड।

मंदोदरी के समझाने पर भी मदान्ध रावण के न समझने पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने बेंत (बाँस) का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि
यद्यपि बादल अमृत-सा जल बरसाते हैं तथापि बेत फूलता-फलता नहीं। इसी प्रकार ब्रह्मा के समान ज्ञानी गुरु मिलने पर भी मूर्ख के हृदय में चेत (ज्ञान) नहीं होता॥

Despite good rain like nectar, the bamboo does not flourish. Similarly, even after getting a knowledgeable mentor like Brahma, the fool hearted can't attain perception (intellect).

*व्यर्थ नहीं अभिमान करें,*
*सोचें तनिक विचार करें,*
व्यस्त रहें हम स्वस्थ रहें।

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Sunday, October 17, 2021

सत्कर्म

*नाम्भोधिरर्थितामेति सदाम्भोभिश्च पूर्यते।*
*आत्मा तु पात्रतां नेयः पात्रमायान्ति संपदः।।*
       
यद्यपि समुद्र ने जल की कभी कामना नहीं की और न ही किसी से इस हेतु संपर्क किया परन्तु फिर भी वह सदा जल से भरा ही रहता है। इसी तरह यदि कोई व्यक्ति धर्म का पालन कर अपने को सुयोग्य बना ले तो उसे सुपात्र जान कर धन संपत्ति स्वयं ही उसके पास आ जाती है।

{इसी भावना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने 'रामचरितमानस' में भी व्यक्त किया है: 
जिमि सरिता सागर मंहुं जाहीं।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं। 
तिमि सुख संपति बिनहिं बुलाये। धर्मशील पहिं जाहिं सुभाये।। (बालकाण्ड पद २९४ ) }

The ocean neither desires nor approaches any one for water, but still it always remains full with water. Similarly, if a person makes himself worthy through performing his duties well with religious austerity, then considering him as a proper recipient, wealth itself favours him, although he may not desire it.

*हम अपना कर्तव्य निभाएँ,*
*जीवन सुख से भरा बनाएँ।*

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Saturday, October 16, 2021

शुभ रविवार

*अधर्मेणैधते  तावत्ततो  भद्राणि  पश्यति।*
*ततः सपत्नाञ्जयति समूलस्तु विनश्यति।।*
                                          
कभी कभी पापकर्म में लिप्त रहने पर भी थोड़े समय के लिए लोग समृद्ध और सुखी हो जाते हैं और उनके शत्रु भी पराजित हो जाते हैं। परन्तु अन्ततः वह पापकर्म करने वाला भी समूल नष्ट हो जाता है।

Sometimes persons engaged in sinful deeds also become prosperous and happy for a short period, are able to conquer their enemies. But ultimately such persons are annihilated.

सदा पाप से हम बचें,
कर्तव्य मार्ग से नहीं टरें,
व्यस्त रहें हम मस्त रहें।

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पापांकुशा एकादशी

*उपकर्तुं यथा स्वल्पं समर्थो न तथा महान्।*
*प्रायः कूपस्तृषां हन्ति सततं न तु वारिधिः।।*

परोपकार करने में एक साधारण व्यक्ति, एक महान व्यक्ति से अधिक समर्थ हो सकता है। उदाहरण स्वरूप एक साधारण कुँआ निरन्तर सामान्य जनों की प्यास बुझाता है न कि विशाल समुद्र।

An ordinary person can be more capable of doing charity than a great person. For example, an ordinary well continuously quenches the thirst of ordinary people and not the vast sea.

*यदि उपकार करें जीवन में,*
*हो अभिमान भला क्यों मन में।*

आज पापांकुशा एकादशी पर स्वस्थ रहने का संकल्प लें।

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Wednesday, October 13, 2021

महानवमी

*सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।*
*सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।*

हे समस्त सिद्धियों को देने वाली माँ सिद्धिदात्री, आपको सिद्धगण, गंधर्व, यक्ष, सुर, असुर, इत्यादि पूजते हैं, आप हमारा पूजन भी स्वीकार करो एवं सभी सिद्धि प्रदान करो।

Goddess Siddhidatri who is worshipped by Siddha, Gandharva, Yaksh, Gods, Demons etc., holds Conch, Chakra, Gada and Lotus in her hands, giver of all siddhis and victory all over, be propitious to all.

On This Auspicious Occasion of Durga MahaNavami, May all  blessed with Prosperity, Happiness, Health, Wealth And Success.

आज महानवमी के इस अवसर पर माँ दुर्गा हम सभी की समस्त सदिच्छाओं को पूर्णता प्रदान करे।

*शक्ति भक्ति संचित की है,*
*माँ को पूजा अर्पित की है,*
*माँ पूजन सब स्वीकार करो,*
*माँ हम सबका उद्धार करो।*

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Tuesday, October 12, 2021

जय माँ महागौरी

*श्वेते वृषे समारूढा, श्वेताम्बरधरा शुचि:।*
*महागौरी शुभं दद्यात्, महादेव प्रमोददा।।*

श्वेत बैल पर सवार, श्वेत वस्त्र धारण करने वाली, अत्यन्त पवित्र और महादेव को अपनी भक्ति से प्रसन्न करने वाली हे माँ महागौरी! हम सबका कल्याण करो।

O Maa Mahagauri, riding on a white bull, wearing white clothes, very pious and pleasing _Mahadev_ with thy devotion! Bless us all.

आज माँ आदि शक्ति के अष्टम स्वरूप महागौरी का पूजन।

*वृषारूढ़ हो आओ माँ, हम सबका कल्याण करो,*
*शक्ति भक्ति भर दो माँ, यह पूजन स्वीकार करो।*

शक्ति पूजन करें।

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Monday, October 11, 2021

जय माँ कालरात्रि

*जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।*
*जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तु ते।*
(अर्गला स्तोत्र)

हे देवि चामुण्डे! (चण्ड मुण्ड विनाशिनी) आपकी जय हो। समस्त प्राणियों की पीड़ा हरनेवाली देवि! आपकी जय हो। हे सबमें व्याप्त रहने वाली देवि! आपकी जय हो। हे कालरात्रि ! आपको नमन करते हैं।


O Goddess Chamunde! (Chand Mund destroyer) Hail thee. O Goddess who removes the pain of all beings! Hail thee.
O Goddess who pervades all! Hail thee. 
O Kalratri! bows to you.

आज माँ आदिशक्ति के सप्तम स्वरूप कालरात्रि का पूजन अर्चन।

*रूप भयंकर धर आओ माँ,*
*सब कल्मष हर जाओ माँ।*

शक्ति संचय करें।

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Sunday, October 10, 2021

जय माँ कात्यायनी

*जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।*
*दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।*
(अर्गला स्रोत्र)

हे विजय देने वाली, मंगल करने वाली, भय हरने वाली, दुष्टों का संहार करने वाली, कल्याण करने वाली, करूणा रखने वाली, क्षमा देने वाली, सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करने वाली माँ दुर्गा आपको नमन करते हैं।

O giver of victory, bestower of auspiciousness, remover of fear, destroyer of wicked, doer of welfare, having compassion, giving forgiveness, bestowing all kinds of opulences, Maa Durga bows to you.

आज माँ आदिशक्ति के छठे स्वरूप कात्यायनी का पूजन वंदन।

*माँ आओ कर सिंह सवारी,*
*दूर करो माँ विपदा सारी।*

शक्ति संचय करें।

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Saturday, October 9, 2021

जय माँ स्कन्दमाता

*सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।*
*भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवी नमोऽस्तु ते।*

हे सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवी! सब प्रकार के भय से हमारी रक्षा कीजिये। आपसे यही प्रार्थना है।

O Omnipresence, Sarveshwari and Divya Roopa Durga Devi, endowed with all kinds of powers! Protect us from all kinds of fear. We pray to you.

आज माँ आदिशक्ति के स्कंदमाता स्वरूप का पूजन वंदन।

*हर भय से माँ अब दूर करो,*
*हर विपद हमारी दूर करो।*

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Friday, October 8, 2021

जय माँ

*रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।*
*त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥*

हे माँ! आप प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो आपकी शरण में हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। आपकी शरण में मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।

O mother! When you are happy, you destroy all diseases and when you are angry, you destroy all desires. Those who are in your shelter, there is no calamity on them. Even they become givers of shelter to others.

आज माँ आदिशक्ति के चंद्रघंटा एवं कूष्मांडा स्वरूप का पूजन नमन।

*शक्ति संचय करें।*

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Thursday, October 7, 2021

ब्रह्मचारिणी स्वरूप

*दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।*
*दारिद्र्य दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥*

हे माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। 
दु:ख, दरिद्रता और भय हरने वाला आपके अतिरिक्त  दूसरा कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही आर्द्र रहता हो।

He Maa Durga! On remembering you, you take away the fear of all beings, and on contemplation by healthy men, you bestow them with supremely beneficial intelligence.
Who is the one who removes sorrow, poverty and fear other than you, whose heart is always moist to do everyone's favour.

आज शारदीय नवरात्रि पर्व के द्वितीय दिवस पर माँ आदि शक्ति के ब्रह्मचारिणी स्वरूप से प्रार्थना।

*शक्ति संचय करें।*

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Wednesday, October 6, 2021

आदि शक्ति

*रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।*

माँ आदि शक्ति से प्रार्थना:
हमें आध्यात्मिक रूप प्रदान कीजिये,
आध्यात्मिक विजय प्रदान कीजिये,
आध्यात्मिक यश प्रदान कीजिये एवं हमारे अंतस की बुराइयों को मिटा दीजिये।

Grant us Spiritual Beauty, 
Grant us Spiritual Victory, Grant us Spiritual Glory and Please Destroy our Inner Enemies.

*शक्ति संचयन के महापर्व शारदीय नौरात्रि में माँ आदिशक्ति के नौ स्वरूपों का पूजन अर्चन कर हम अपनी शक्तियों को संचित करें। माँ हम सभी को स्वास्थ्य, शक्ति एवं समृद्धि प्रदान करे।*

*माँ आदिशक्ति के शैलपुत्री स्वरूप को नमन।*

*आदर्श समाजवाद के प्रणेता अग्रसेन महाराज की 5145वीं जयन्ती पर समाज को संगठित एवं सामर्थ्यवान बनाने का संकल्प लें।*

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Tuesday, October 5, 2021

सदैव शुभ

*वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।*
*तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।*
गीता : अध्याय २, श्लोक २२।

जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर दूसरे नये शरीर को धारण करती है।

Just like people shed worn-out clothes and wear new ones, our soul casts off its worn-out body and enters a new one.

आज *सर्वपितृ अमावस्या* पर अपने पूर्वजों के स्वर्ग में अथवा इस पृथ्वी पर किसी और शरीर में होने के विश्वास को दृढ़ करते हुए, उनके आशीर्वाद को अनुभव करें। 

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जय श्री राम

*समै समै सुंदर सबै, रूप कुरूप न कोय।*
*मन की रुचि जेत जितै, तित तेती रुचि होय।*
बिहारी सतसई

समय-समय पर सभी सुन्दर हैं, कोई सुन्दर और कोई कुरूप नहीं है। मन की प्रवृत्ति जिधर जितनी होती है, उधर उतनी ही आसक्ति होती है।

All are beautiful at times, nothing is beautiful ugly. Wherever there is tendency of the mind, there will be more attachment.

एक परम में ध्यान धरें,
व्यस्त रहें हम स्वस्थ रहें।

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Saturday, October 2, 2021

गुण अवगुण

*भलेउ पोच सब बिधि उपजाये।*
*गनि गुन दोष बेद बिलगाये॥*
*कहहिं बेद इतिहास पुराना।*
*बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना॥*
रामचरित मानस : बालकाण्ड।

भला अथवा बुरा, सभी प्रकृति जनित हैं, किन्तु गुण और दोषों को विचार कर वेदों ने उनको अलग-अलग कर दिया है। वेद, इतिहास और पुराण कहते हैं कि यह सृष्टि गुण एवं अवगुण दोनों से भरी हुई है॥

All the Good and Evil is created by spreme power Nature and can be distinguished by their characteristics. It is well known truth that this world is full of Good and Bad both.

तुलसीदास जी ने आगे की चौपाइयों में अच्छे एवं बुरे के कई उदाहरण देते हुए इस कथन की पुष्टि की है।

दुख सुख पाप पुन्य दिन राती।
साधु असाधु सुजाति कुजाती।।
दानव देव ऊँच अरु नीचू। 
अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू।।
माया ब्रह्म जीव जगदीसा।
लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा।।
कासी मग सुरसरि क्रमनासा।
मरु मारव महिदेव गवासा।।
सरग नरक अनुराग बिरागा।
निगमागम गुन दोष बिभागा।।

*ज्यों काँटों की चुभन मिली, फूलों की मुस्कान को,*
*भला बुरा दोनों है जग में, मानें परम विधान को,*
*भेद करें हम, भले बुरे में, समझें निज कल्याण को,*
*है आवश्यक सामंजस्य, जीवन में उत्थान को।*

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Friday, October 1, 2021

आत्म सन्तोष

*असन्तोषः परं दुःखं सतोषः परमं सुखं।*
*सुखार्थी पुरुषस्तस्यात्सन्तुष्टः सततं भवेत् ।।*

जो व्यक्ति संतोषी नहीं होता है वह सदैव ही अत्यन्त दुःखी रहता है और जो व्यक्ति संतोषी होता है वह परम सुख का अनुभव करता है। अतएव सुख की कामना करने वाले व्यक्ति को सदैव संतुष्ट रहना चाहिए।

The person who is not satisfied is always very unhappy and the person who is content feels the ultimate happiness. Therefore a person who desires happiness should always be satisfied.

*आज महात्मा गाँधी एवं लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिन पर हम सभी अपने राष्ट्र हेतु समर्पित होने का संकल्प लें।*

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