Monday, June 27, 2022

सदैव शुभ

*एहि तन कर फल बिषय न भाई।*
*स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥*
*नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं।*
*पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥*

रामचरित मानस : उत्तरकांड।

मानव शरीर मिलने का उद्देश्य विषयभोग नहीं है, स्वर्ग का भोग भी थोड़ा लगता है और अंत में दुःख देने लगता है। अतः यदि मनुष्य शरीर पाकर भी विषयों में मन लगाने वाले, किसी मूर्ख के समान अमृत के बदले विष लेने के समान है।

The cause to the human birth is not to be indulged in material things/ pleasures, even pleasure of heaven may seem insufficient and later caused sufferings only. Hence if a human indulge in material things/ pleasures is like a fool who takes venom against nector.

*मिला मनुज तन गर्व करें हम,*
*विषय भोग में क्यों उलझें हम,*
*सत्कर्मों में व्यस्त रहें हम,*
*यह उद्देश्य पूर्ण करें हम।*

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