*शिक्षा क्षयं गच्छति कालपर्ययात् सुबद्धमूला निपतन्ति पादपाः।*
*जलं जलस्थानगतं च शुष्यति हुतं च दत्तं च तथैव तिष्ठति।।*
(कर्णभारम्-२२)
समय के साथ शिक्षा का क्षय हो जाता है, अच्छी तरह जड़ से जमा हुआ वृक्ष भी धराशाई हो जाता है। जलाशय में रहा पानी भी समय के साथ कालांतर मे सूख जाता है, परंतु यज्ञ की अग्नि में समर्पित आहूति और दिया गया दान कभी नष्ट नहीं होता, सदैव ही शाश्वत रहता है।
Over time, education disappears, a tree that is well-rooted also collapses. The water in the reservoir dries out over time, but the sacrificial offering in the fire of a _yajna_ and donation given are never destroyed, remain always in perpetuity.
*करी साधना घर रह कर,*
*स्वस्थ रखेगी जीवन भर,*
*निज स्वास्थ्य का ध्यान रखें,*
*घर पर रुक कर स्वस्थ रहें।*
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