*सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति।*
*सहज कृपन सन सुंदर नीति॥*
*ममता रत सन ज्ञान कहानी।*
*अति लोभी सन बिरती बखानी॥*
*क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा।*
*ऊसर बीज बाएँ फल जथा॥*
मूर्ख से विनय, कुटिल के साथ प्रीति, स्वभाव से कंजूस व्यक्ति से उदारता की बात, मोहग्रस्त मनुष्य से ज्ञान की कथा, अत्यंत लोभी से वैराग्य का वर्णन, क्रोधी से शम (शांति) की बात और कामी से भगवान की कथा, इन सब का फल व्यर्थ होता है, जैसे ऊसर भूमि में बीज बोने से कोई फल नहीं मिलता है।
Supplication before an idiot, friendship with a rogue, inculcating liberality on a born miser, talking wisdom to one steeped in worldliness, glorifying dispassion before a man of excessive greed, a lecture on mindcontrol to an irascible man and a discourse on the exploits of Devine to a libidinous person are as futile as sowing seeds in a barren land.
*हम सब अपना भला विचारें,*
*संयमित रह ज़िन्दगी गुजारें,*
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