Monday, November 25, 2019

कर्तव्य

*योगस्थ: कुरु कर्माणि संग्ङंत्यक्त्वा धनंजय।*
*सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥*
गीता अध्याय २ श्लोक ४८

परमयोगीश्वर भगवान कृष्ण समझा रहे हैं कि
हे धनंजय। कर्म न करने का आग्रह त्यागकर, सफलता असफलता, यश-अपयश के विषय में समबुद्धि होकर योग युक्त होकर, कर्म कर, (क्योंकि) समत्व को ही योग कहते हैं।

We should perform
our duties established in Yoga, renouncing attachment, and eventempered in success and failure; Envenness of temper is called yoga.

अपने कर्तव्य का पालन करें।

शुभ दिन हो।

🌹🌸💐🙏🏼