*संसारकटुवृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे।* *सुभाषितरसास्वादःसङ्गतिः सुजने जने।।*
संसार रुपी कड़ुवे पेड़ से अमृत तुल्य दो ही फल उपलब्ध हो सकते हैं, एक है मीठे बोलों का रसास्वादन और दूसरा है सज्जनों की संगति।
Only two fruits like nectar can be available from this bitter tree of the world, one is the taste of gentle words and other is the company of nobles.
*परिवर्तन जो भी होता है,*
*बीज सृजन के भी बोता है,*
*फिर अपनाएँ चलन पुराने,*
*नित्य प्रार्थना भजन सयाने।*
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