Sunday, May 30, 2021

कर्म

*न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।*
*इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते।।*

गीता : अध्याय 4, श्लोक 14।

कर्मों की दिव्यता महत्त्व बतलाते हुए भगवान श्री कृष्ण निष्काम भाव से कर्म करने के लिये अर्जुन को आज्ञा देते हैं-
कर्मों के फल में मेरी स्पृहा नहीं है, इसलिए मुझे कर्म लिप्त नहीं करते– इस प्रकार जो मुझे तत्त्व से जान लेता है, वह भी कर्मों से नहीं बँधता।

Since I have no craving for the fruit of acions; actions do not contaminate Me, Even he who thus knows Me in reality is not bound by actions.

हम कर्मों से डरें नहीं,
पर कर्मों से बँधे नहीं,
कर्म हमारे वश में हैं,
फल प्रभु के वश में हैं।

स्वस्थ रहें।

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