Sunday, October 18, 2020

सतर्क रहें

*अल्प: अपि ह्यरिरत्यन्तं वर्धमान पराक्रमः।*
*वल्मीको मूलज इव ग्रसते वृक्षमन्तिकात्।।*

एक शत्रु यद्यपि बहुत छोटा ही क्यों न हो, कुछ समय के बाद उसकी शक्ति में अत्यन्त वृद्धि हो जाती है और अन्ततः वह अस्तित्व का संकट उसी प्रकार उत्पन्न कर देता है जैसे एक वृक्ष की जड़ के पास स्थित एक दीमकों की छोटी सी बांबी धीरे धीरे सारे वृक्ष को ही चट कर जाती है।

An enemy, however may be small in the start, becomes very powerful with the passage of time and becomes a threat to life, just like a small termite hill at the root of a tree spreads and ultimately destroys the entire tree.

*आज तृतीय नौरात्रि पर माँ के चंद्रघंटा स्वरूप को नमन*

पुनः पुनः यह एक निवेदन,
रहें स्वच्छ, स्वस्थ रहे तन,
कर लें अधिकाधिक प्रभु सुमिरन,
धन्य बने हम सबका जीवन।

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