Tuesday, June 30, 2020

क्षमा एवं धैर्य

*ऐश्वर्येऽपि क्षमा यस्य दारिद्र्येऽपि हितैषिता।*
*आपत्तावपि  धीरत्वं  दधतो  मर्त्यता कथं।।*

जो व्यक्ति ऐश्वर्यवान होते हुए भी क्षमाशील होते हैं, दरिद्र होते हुए भी अन्य व्यक्तियों की सहायता को सदैव तत्पर रहते हैं, तथा विपत्ति आने पर भी अपना धैर्य नहीं खोते हैं तो वे भला मृत्यु से क्यों भयभीत होंगे?

Those persons who in spite of being powerful and prosperous are also forgiving in nature, in spite of being poor are always ready to help others, and remain courageous and firm even while facing a calamity, why will they be afraid of their mortality?

*क्षमा करें व धैर्य भी धरें,*
*सदा दूसरों की सहायता करें।*

*देवशयनी एकादशी से आज चातुर्मास प्रारम्भ हो रहा है, शुभ उत्सवों एवं त्यौहारों की अगुवानी करें।*
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Sunday, June 28, 2020

शुभ वाक्य

*प्रमादः सम्पदं हन्ति प्रश्रयं हन्ति विस्मयः।*
*व्यसनं हन्ति विनयं हन्ति शोकश्च धीरताम्।।*

असावधानी के कारण संपत्ति नष्ट हो जाती है तथा मृदु और सरल व्यवहार करने से अहंकार की भावना नष्ट हो जाती है। 
बुरी आदतों के कारण लोगों में नम्रता और सद्व्यवहार की भावना नष्ट हो जाती है तथा दुःख और शोक होने की स्थिति में धैर्य और विवेक नष्ट हो जाता है।

Wealth gets destroyed due to negligence. Courteous and modest behaviour destroys pride and arrogance. 
Bad habits result in destruction of the feeling of modesty and decency among men and grief among men tends to destroy their courage and wisdom.

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Friday, June 26, 2020

त्याग

*परोक्षे कार्यहन्तारं प्रतक्षे प्रियवादिनम् ।*
*वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥*

जो सामने होने पर मीठी मीठी बातें करता है, परंतु पीठ पीछे आपके कार्य बिगाड़ता है या नुकसान पहुंचाने का प्रयत्न करता है, उसका उसी प्रकार त्याग कर देना चाहिए, जैसे विष से भरे उस पात्र का किया जाता है, जिसमें ऊपर खीर भरी हो।

The person who is a sweet talker before us, but in back tries to sabotage our work or spoiled, should be abandoned like the vessel which is  full of venom, but upper layer is sweetened milk.

*संचित बल से हम जीतेंगें,*
*कोरोना को हम पीटेंगें।*

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Tuesday, June 23, 2020

आभूषण

*अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति* 
    *प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।*
*पराक्रमश्चबहुभाषिता च* 
    *दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥*

बाहरी आडम्बर, वस्त्र, आभूषण नहीं अपितु ये आठ गुण पुरुष (मनुष्य) को सुशोभित करते हैं - बुद्धि, सत्चरित्र, आत्म-नियंत्रण, शास्त्र-अध्ययन, साहस, मितभाषिता, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता।

External pomp, not clothing, ornaments, but these eight qualities beautify men (human) - intellect, good character, self-control, study, courage, reticency, virtuous charity and gratitude.

*राह कठिन माना है लेकिन, आगे बढ़ते जाना है,*
*हम जीतेंगें संशय कैसा, तनिक नहीं घबराना है।*

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Saturday, June 20, 2020

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस

आप सभी को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुभ कामनाएं।
योग जीवन का आधार है।
योग करिये निरोग रहिये।
जीवन से अवसाद दूर करने में योग सहायक है।

प्रणाम 
योगाचार्य राहुल।

Friday, June 19, 2020

ज्ञान

*पहिले यह मन काग था, करता जीवन घात।*
*अब तो मन हंसा हुआ, मोती चुनि-चुनि खात॥*

कबीर कहते हैं कि सामान्य मनुष्य का मन एक कौए की  तरह होता है, जो कुछ भी उठा कर खा लेता है और जीवन को कष्ट पूर्ण कर लेता है।
लेकिन एक ज्ञानी का मन उस हंस के समान होता है जो चुन चुन कर केवल मोती खाता है।

Kabir says that the common man's mind is like a crow, which eats anything and make it's life miserable. But the mind of a wise man is like a swan that choose only pearls.

*जीवन में हर दम सत्य चुनें,*
*मोती चुनता वह हंस बनें,*
*बाधा विघ्नों से नहीं डरें,*
*हम व्यस्त रहें, हम स्वस्थ रहें।*

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Thursday, June 18, 2020

परमात्मा

*इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः।*
*निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः।।*
गीता : अध्याय ५, श्लोक १९।

जिस मनुष्य का मन सम-भाव में स्थित रहता है, उसके द्वारा जन्म-मृत्यु के बन्धन रूपी संसार को जीत लिया जाता है क्योंकि वह ब्रह्म के समान निर्दोष एवं सम होता है और सदा परमात्मा में ही स्थित रहता है।

तुलसीदास जी ने भी इस तथ्य को सरल शब्दों में कहा है:
*समरथ कहुँ नहि दोष गुसाईं।*
*रवि पावक सुरसरि की नाईं।*
  
Those whose minds are established in sameness and equanimity have already conquered the conditions of birth and death. They are flawless like Almighty, and thus they are already situated in Almighty.

*सूर्य नमन नित नित करना है,*
*योग नियम से हर दुख हरना है,*

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Tuesday, June 16, 2020

मनुष्य जन्म

*नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही॥*
*नरक स्वर्ग अपबर्ग निसेनी। ग्यान बिराग भगति सुभ देनी॥*

रामचरित मानस : उत्तरकाण्ड।

तुलसीदास जी ने मनुष्य जन्म को श्रेष्ठ बताते हुए कहा है कि मनुष्य शरीर के समान कोई शरीर नहीं है। चर-अचर सभी जीव उसकी याचना करते हैं। यह मनुष्य शरीर ही नरक, स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है तथा कल्याणकारी ज्ञान, वैराग्य और भक्ति को देने वाला है॥

No creature is like human body. All creatures crave for him. This human body can take to hell, heaven or salvation, and gives wellness, knowledge, mortification and devotion.

*मिला मनुज तन स्वस्थ रहें हम,*
*समय कठिन है धैर्य धरें हम,*
*जीवन की कीमत पहचानें,*
*नित नित नव उत्साह गढ़ें हम।*

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Friday, June 12, 2020

आनंद

*अस्ति यद्यपि सर्वत्र नीरं नीरजमण्डितम्।*
*रमते नैव हंसस्य मानसं मानसं  विना।।*

यद्यपि बादलों द्वारा प्रदान किये गये निर्मल जल से पूरित जलाशय सर्वत्र इस पृथ्वी में हैं, परन्तु राजहंसों का मन मानसरोवर में जलविहार किये बिना आनन्दित नहीं होता है।              

Although there are many lakes in this world storing pure water bestowed by the clouds, Swans do not become happy unless they get the opportunity of swimming in the pristine waters of the famous lake 'Manasarovara'.

गुणवान और विशिष्ट व्यक्ति अपने समान व्यक्तियों के संपर्क में ही आनन्दित होते हैं।

*रक्षा स्वास्थ्य की बात अहम,*
*कुछ नहीं होगा, छोड़ें वहम,*
*रहें सुरक्षित घर में हम,*

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Thursday, June 11, 2020

समय

*रहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन का फेर।*
*जब नीकै दिन आईहैं, बनत न लगिहैं देर।।*

दिनों के फेर अर्थात् जब समय प्रतिकूल हो, तब शान्त चित्त हो कर प्रतीक्षा करें, व्यग्र-उग्र, क्षुब्ध-विक्षुब्ध न हों। जब समय अनुकूल होगा, तो बात बनने में देर नहीं लगेगी।

When our time is not in our favour we should wait quietly and not be anxious. As the time changes and become favourable, all will be alright.

*धैर्य हमारा सहचर हो,*
*मन में आशा भर भर हो,*
*विश्वास अटूट परम पर हो,*
*शुभ दिन सबके घर घर हो।*

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Monday, June 8, 2020

धर्म

*अनित्यानि शरीराणि विभवो  नैव शाश्वतः।*
*नित्यं संनिहितो मृत्युः कर्तव्यो  धर्मसङ्ग्रहः।।*

इस संसार में समस्त प्राणियों का जीवन नश्वर होता है तथा धन संपत्ति और समृद्धि भी शाश्वत (सदा बनी रहने वाली) नहीं होती है। मृत्यु हर समय प्राणहरण के लिये उद्यत रहती है। ऐसी स्थिति में मनुष्यों का कर्तव्य है कि धर्म के सिद्धान्तों को अपना कर उनका पालन करें।

All living beings in this World are perishable and their wealth, status and power is not eternal. Death is always present there to take away their life. So, it is the duty of every one to observe religious austerity.

*स्वस्थ रहें सब, यही कामना,*
*घर पर रह कर करें प्रार्थना।*

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Sunday, June 7, 2020

समय

*उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तमये तथा।*
*सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।।*

जिस प्रकार सूर्य उदय एवं अस्त दोनों ही समय एक जैसा अर्थात सौम्य रक्त वर्ण होता है, वैसे ही महापुरुष संपत्ति एवं विपत्ति दोनों में एक समान रहते हैं।

The sun looks red while rising and setting. Great men too remain alike in both the good and bad times.

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Saturday, June 6, 2020

संयम

*दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययालंकृतोपि सन्।*
*मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयंकरः।।"*

विद्या के अलंकार से अलंकृत होने पर भी दुर्जन से दूर ही रहना चाहिए, क्योंकि मणि से भूषित होने पर भी क्या सर्प भयंकर नहीं होता।

A malfeasant person should be avoided even he is intellect. Is the serpent not fierce if being apprehensive with gem?

*एक नयी जीवन शैली से,*
*जीतेंगें दो गज़ दूरी से।*

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Thursday, June 4, 2020

सक्षम

*बन्धनस्योऽपि मातङ्गः सहस्रभरणक्षमः।*
*अपि स्वच्छन्द्चारी श्वा स्वोदरेणाऽपि दुःखितः।।*
                                               
एक मर्यादित हाथी अंकुश में होने पर हजार लोगों का परोक्ष रूप से भरणपोषण करने में सक्षम होता है, परन्तु एक स्वच्छन्द विचरण करने वाला कुत्ता स्वयं अपना ही पेट न भर सकने के कारण दुःखी रहता है।

An elephant even under bondage provides indirectly sustenance to thousands of people, whereas an independent stray dog leads a miserable life by not being able even to sustain himself properly.

*मर्यादा है सदा जरूरी,*
*रखें सभी से दो गज़ दूरी।*

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Tuesday, June 2, 2020

मार्ग

*तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना*
*नैको ऋषिर्यस्य मतं प्रमाणम्।*
*धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम्*
*महाजनो येन गतः सः पन्थाः।।*

जीवन जीने के असली मार्ग के निर्धारण के लिए कोई सुस्थापित तर्क नहीं है, श्रुतियाँ (शास्त्रों तथा अन्य स्रोत) भी भाँति-भाँति की बातें करती हैं, ऐसा कोई ऋषि/ चिंतक/ विचारक नहीं है जिसके वचन प्रमाण कहे जा सकें। वास्तव में धर्म का मर्म तो बहुत गूढ़ है। इसलिए महापुरुष, समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति जिस मार्ग को अपनाते हैं, वही अनुकरणीय है।

Logic is devoid of conclusions and not foolproof, the scriptures have many derivative meanings, there is no one wise person whose philosophy can be termed as authentic or complete. In reality, the essence of Dharma is mysterious and hidden. Therefore, the path on which great realized souls have traversed, should be followed.

*स्वयं स्वयं का करें बचाव,*
*यही एक उत्तम उपचार।*

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