Sunday, May 9, 2021

ॐ नमः शिवायः

*संतोषाऽमृततृप्तानां यत्सुखं शान्ताचेतसाम्।*
*कुतस्तद्धनलुब्धानाम् इतश्च उतश्च धावताम्।।*
                                       
शांत स्वभाव वाले तथा संतोष रूपी अमृत को पी कर तृप्त हुए व्यक्तियों को जो सुख प्राप्त होता है, वैसा सुख भला धन के लोभी और उसकी प्राप्ति के लिए इधर उधर भटकने वाले व्यक्तियों को कब प्राप्त होता है?

How can the pleasure, which persons of serene mindset derive by remaining contended as if they have drunk the nectar of satisfaction, be achieved by persons greedy of wealth, who run hither and thither to acquire it by any means?

समय कठिन हैं समझें हम,
बन संतोषी सुखी बनें हम,
इत-उत व्यर्थ नहीं भटकें हम,
स्व में स्थित स्वस्थ रहें हम।

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