*नाम्भोधिरर्थितामेति सदाम्भोभिश्च पूर्यते।*
*आत्मा तु पात्रतां नेयः पात्रमायान्ति संपदः।।*
यद्यपि समुद्र ने जल की कभी कामना नहीं की और न ही किसी से इस हेतु संपर्क किया परन्तु फिर भी वह सदा जल से भरा ही रहता है। इसी तरह यदि कोई व्यक्ति धर्म का पालन कर अपने को सुयोग्य बना ले तो उसे सुपात्र जान कर धन संपत्ति स्वयं ही उसके पास आ जाती है।
{इसी भावना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने 'रामचरितमानस' में भी व्यक्त किया है:
जिमि सरिता सागर मंहुं जाहीं।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं।
तिमि सुख संपति बिनहिं बुलाये। धर्मशील पहिं जाहिं सुभाये।। (बालकाण्ड पद २९४ ) }
The ocean neither desires nor approaches any one for water, but still it always remains full with water. Similarly, if a person makes himself worthy through performing his duties well with religious austerity, then considering him as a proper recipient, wealth itself favours him, although he may not desire it.
*हम अपना कर्तव्य निभाएँ,*
*जीवन सुख से भरा बनाएँ।*
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