Sunday, May 31, 2020

गंगा दशहरा

*गंगा पापं, शशी तापं दैन्यं कल्पतरुस्तथा।*
*पापं तापं तथा दैन्यं हन्ति सज्जनसंगम।।*

सज्जनों की संगति की महिमा बताते हुए कहा गया है कि गंगास्नान से सब पाप, चन्द्रमा के दर्शन से ताप (गर्मी) एवं कल्पवृक्ष का दर्शन दरिद्रता को दूर कर देता है। परन्तु सज्जनों की संगति से पाप, ताप और दरिद्रता तीनों से दूर हो जाते हैं।

The value of noble person's good company is said by this. As all sins can be removed by taking dip in the holy water of Ganga, heat is vanished in Moon's cool light and paucity is cured by just seeing the _Kalpavriksha_, but the all three, paucity, heat and sins can be cured by only being with noble person.

*सर्व पाप हारी माँ गंगा एवं विवेक की अधिष्ठात्री देवी माँ गायत्री* के अवतरण दिवस ज्येष्ठ शुक्ल दशमी (गंगा दशमी, गायत्री जयन्ति) पर हम सभी पवित्र एवं विवेकवान बनें, ऐसी शुभकामनाएँ।

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Friday, May 29, 2020

दृढ़ निश्चय

*कारुण्येनात्मनो तृष्णा च  परितोषतः।*
*उत्थानेन जयेत्तन्द्रीं वितर्कः निश्चयाज्जयेत।।*

स्वयं पर करुणा (दया की भावना) से, तृष्णा (अत्यधिक लोभ) पर संतोष की भावना के द्वारा, तन्द्रा (आलस्य) पर जागृति के द्वारा, तथा संदेह (संशय) पर दृढ़ निश्चय से विजय प्राप्त करनी चाहिए।

One should conquer own self by practicing compassion, greed by being satisfied at whatever he possesses, drowsiness by always remaining alert, and indecision by being firm and decisive.

*करें नहीं अभिमान तनिक भी,*
*पालन कर लें दो ग़ज़ दूरी,*

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Thursday, May 28, 2020

फल

*सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति।*
*सहज कृपन सन सुंदर नीति॥*
*ममता रत सन ज्ञान कहानी।*
*अति लोभी सन बिरती बखानी॥*
*क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा।*
*ऊसर बीज बाएँ फल जथा॥*

मूर्ख से विनय, कुटिल के साथ प्रीति, स्वभाव से कंजूस व्यक्ति से उदारता की बात, मोहग्रस्त मनुष्य से ज्ञान की कथा, अत्यंत लोभी से वैराग्य का वर्णन, क्रोधी से शम (शांति) की बात और कामी से भगवान की कथा, इन सब का फल व्यर्थ होता है, जैसे ऊसर भूमि में बीज बोने से कोई फल नहीं मिलता है।

Supplication before an idiot, friendship with a rogue, inculcating liberality on a born miser, talking wisdom to one steeped in worldliness, glorifying dispassion before a man of excessive greed, a lecture on mindcontrol to an irascible man and a discourse on the exploits of Devine to a libidinous person are as futile as sowing seeds in a barren land.

*हम सब अपना भला विचारें,*
*संयमित रह ज़िन्दगी गुजारें,*

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Wednesday, May 27, 2020

अभिमान

*सुनहु राम कर सहज सुभाऊ।* 
*जन अभिमान न राखहिं काऊ॥*
*संसृत मूल सूलप्रद नाना।* 
*सकल सोक दायक अभिमाना॥*

ईश्वर परमसत्ता (श्री राम) का सहज स्वभाव है कि वे अपने भक्त में अभिमान कभी नहीं रहने देते, क्योंकि अभिमान जन्म-मरण रूपी संसार का मूल है और अनेक प्रकार के क्लेशों तथा समस्त दु:खों का देने वाला है॥

The arrogance is the root cause of all miseries and conflicts, so the Almighty first removes arrogance from his devotees.

*मुझे नहीं कोरोना होगा,*
*यह घमण्ड ही ले डूबेगा,*
*है बचाव ही श्रेष्ठ तरीका,*
*स्वच्छ हस्त, मुख मास्क लपेटा।*

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Tuesday, May 26, 2020

आवेश

*सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।*
*वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।*

आवेश में आ कर बिना सोचे समझे कोई कार्य नहीं करना चाहिए। 
विवेकशून्यता बड़ी विपत्तियों का द्वार है। 
जो व्यक्ति सोच समझकर कार्य करता है; गुणों से आकृष्ट होने वाली माँ लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है |

One should not indulge in action in a hurry.
Indiscretion becomes a step towards extreme troubles.
Glory (good results) always enticed by virtuosity prefer one who exercises discretion.

*विवेक साथ हो सदा,*
*निभाएँ हरेक कायदा,*
*सभी मिलें तो दूर से,*
*विनाश कौन कर सके।*

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Monday, May 25, 2020

आलस्य का त्याग

*श्रेयांसि च सकलान्यनलसानां हस्ते नित्यसान्निद्ध्यानि I*

इस संसार की सकल संपत्ति एवं श्रेय उन्हीं के हाथ में होता है जो सदैव आलस्य का त्याग कर कर्म में उद्यत रहते हैं।

The gross wealth and credit of this world is in the hands of those who always abandon laziness and remain engaged in _karma_ means action.

*स्व में स्थित घर में स्थित हो*
*इस शत्रु से जीत निश्चित हो।*

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Sunday, May 24, 2020

संगति

*संसारकटुवृक्षस्य द्वे फले   अमृतोपमे।*                                                                                                                         *सुभाषितरसास्वादःसङ्गतिः सुजने जने।।*                                           
 
संसार रुपी कड़ुवे पेड़ से अमृत तुल्य दो ही फल उपलब्ध हो सकते हैं, एक है मीठे बोलों का रसास्वादन और दूसरा है सज्जनों की संगति।

Only two fruits like nectar can be available from this bitter tree of the world, one is the taste of gentle words and other is the company of nobles.

*परिवर्तन जो भी होता है,*
*बीज सृजन के भी बोता है,*
*फिर अपनाएँ चलन पुराने,*
*नित्य प्रार्थना भजन सयाने।*

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Saturday, May 23, 2020

कीर्ति

*औचित्य प्रच्युताचारो युक्ता स्वार्थं न साधयेत्।*
*व्याजबालिवधेनैव  रामकीर्तिः कलङ्किता।।*

नैतिक रूप से अनुचित एवम् अशोभनीय कृत्य द्वारा अपने स्वार्थ की पूर्ति कभी नहीं की जाए।
वानरराज बालि (जिसने अपने अनुज की पत्नी हरण का अक्षम्य अपराध किया था) का वध छल से करने के कारण भगवान श्री राम की कीर्ति भी कलंकित हो गयी थी।

One should never take recourse to morally very low and unfair means to achieve his objectives.
By killing Baali, the King of Vanars (who had kidnapped his brother's wife), in a clandestine manner, even Lord Ram's name and fame was tarnished.

*हमने संयम सीखा है,*
*रहना घर में सीखा है,*
*स्वच्छ रहें अरु स्वस्थ रहें,*
*व्यस्त रहें अरु मस्त रहें।*

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Friday, May 22, 2020

साधना

*शिक्षा क्षयं गच्छति कालपर्ययात् सुबद्धमूला निपतन्ति पादपाः।*
*जलं जलस्थानगतं च शुष्यति हुतं च दत्तं च तथैव तिष्ठति।।*
             (कर्णभारम्-२२)

समय के साथ शिक्षा का क्षय हो जाता है, अच्छी तरह जड़ से जमा हुआ वृक्ष भी धराशाई हो जाता है। जलाशय में रहा पानी भी समय के साथ कालांतर मे सूख जाता है, परंतु यज्ञ की अग्नि में समर्पित आहूति और दिया गया दान कभी नष्ट नहीं होता, सदैव ही शाश्वत रहता है।

Over time, education disappears, a tree that is well-rooted also collapses. The water in the reservoir dries out over time, but the sacrificial offering in the fire of a _yajna_ and donation given are never destroyed, remain always in perpetuity.

*करी साधना घर रह कर,*
*स्वस्थ रखेगी जीवन भर,*
*निज स्वास्थ्य का ध्यान रखें,*
*घर पर रुक कर स्वस्थ रहें।*

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Thursday, May 21, 2020

उदारता

*पत्रपुष्पफलच्छायामूलवल्कलदारुभिः।*
*धन्यामहीरुहा येभ्यो निराशा यान्ति नाऽर्थिनः।।*
                                             
धन्य हैं वे वृक्ष जो अपने पत्तों, फूलों, फलों, जड़ों, छाल, लकड़ी और छाया से प्राणिमात्र की सहायता करते हैं और उनके पास से कोई भी याचक निराश नहीं लौटता है।

Blessed are the trees, who help all the living beings by providing their leaves, flowers, fruits, roots, bark and cool shade, and nobody  returns with empty hands.

*बड़ अमावस्या, वट सावित्री एवं शनि जयन्ति के इस विशेष पर्व पर सभी के सौभाग्य में वृद्धि हो ऐसी शुभकामनाएँ*

*हृदय उदारता भरें,*
*मनुष्यता मनुज धरें,*
*समस्त रोग से लड़ें,*
*निरोग हम सभी रहें।*

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