Sunday, April 19, 2020

कर्म

*जनम मरन सब दुख सुख भोगा।*
*हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा॥*
*काल करम बस होहिं गोसाईं।* 
*बरबस राति दिवस की नाईं॥*
रामचरितमानस : अयोध्या काण्ड।

जन्म-मरण, सुख-दुःख के भोग, हानि-लाभ, प्रियजनों का मिलना-बिछुड़ना, ये सब कर्म एवं समय के अधीन हैं एवं रात और दिन की तरह नियमित बरबस होते रहते हैं।

Birth & Death, Joy & Sorrow, Profit & Loss and Meeting & Separating of Dears; these all events necessarily take place depending on time & karma like days and nights.

*रहें दिवस कुछ निज गृह हम सब,*
*मिटें शूल संकट निश्चित तब।*

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Saturday, April 18, 2020

प्रभाव

*जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं,*
*गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।*

जिस प्रकार श्री कृष्ण जिन्होनें पर्वत को अपनी कनिष्ठा पर उठा लिया था एवं गिरधर कहाये थे, को मुरलीधर कह देने से कोई दुःख नहीं अर्थात कोई बुरा मानने की बात नहीं है, उसी प्रकार किसी सम्मानित एवं बड़े व्यक्ति को छोटा कह देने से उसकी कोई हानि नहीं होती है।

As _Krishna_ who picked a hill on his little finger and called _Girdhar_ won't be affected by calling him _Murlidhar_, a noble and saint person won't be affected by calling him lowly.

निंदा से प्रभावित न हों।

*हम समझें बात प्रधान की,*
*घर में रहना रक्षा प्राण की।*

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Friday, April 17, 2020

विवेक

*यस्य नास्ति स्वयंप्रज्ञा, शास्त्रंतस्य करोति किम्।*
*लोचनाभ्यांविहीनस्य, दर्पणः किं करिष्यति।।*

जिस प्रकार एक दृष्टिहीन व्यक्ति के लिए दर्पण कुछ नहीं कर सकता, उसी प्रकार जिसके पास प्रज्ञा (स्वविवेक) नहीं है, समस्त वेद और शास्त्र मिलकर भी उस व्यक्ति को सन्मार्ग की ओर नहीं ले जा सकते।

A mirror can not be useful for a blind person, similarly, where there is no prudence, all the Vedas and the scriptures can not even lead that person towards the right path.

*घर में रहें, दायित्व यही है,*
*स्वस्थ रहें, महत्व यही है।*

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Thursday, April 16, 2020

गुण

*गुणाः गुणज्ञेषु गुणा: भवन्ति ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।*
*आस्व्याद्य  तोयाः प्रवहन्ति नद्यः समुद्रमासाद्य भवत्यपेयाः।।*

गुण विद्वान और गुणी व्यक्तियों के पास गुण के ही रूप में सुरक्षित रहते हैं परन्तु वे ही गुण गुणहीन और नीच व्यक्तियों के संसर्ग से दूषित हो कर दोषों में परिणित हो जाते हैं। उदाहरणार्थ नदियों में अच्छे स्वाद वाला पीने योग्य जल प्रवाहित होता है परन्तु वही जल समुद्र के जल से मिल कर अशुद्ध हो कर खारा हो जाता है और  पीने के योग्य नहीं रहता है।

Virtues and qualities are reserved with the scholars and virtuous persons as well as in the form of virtues, but those qualities become contaminated while with lowly persons and result in defects. Just like, potable water with good taste flows in the rivers, but the same water becomes saline after being mixed with sea and  is not able to drink.

गुणवानों के साथ रहें।

*संजीवन है घर में रहना,*
*बाहर घूमे नित कोरोना।*

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Wednesday, April 15, 2020

आचरण

*कृते प्रतिकृतं कुर्याद्धिंसिते प्रतिहिंसितम्।*
*तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत्।।*

विदुर नीति कहती है, किसी भी क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। हिंसा के बाद प्रति हिंसा होती है। उसमें कोई दोष भी नहीं है क्योंकि दुष्ट के साथ दुष्टता का आचरण उचित है।

There is a reaction to any action. Violence occurs after violence. There is no wrong in it, because evil conduct is right with the wicked.

*सेवा करते जो हम सबकी,*
*उनकी रक्षा बहुत जरूरी।*
*हम अपना कर्तव्य निभाएँ*
*घर से बाहर अभी न जाएँ।*

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Tuesday, April 14, 2020

योग एवं चिंतन

*अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते।*
*तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।।*
गीता : अध्याय ९, श्लोक २२।

परमात्मा इस श्लोक के माध्यम से अपने सभी अनन्य भक्तों को, जो निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से भजते हैं, निश्चिन्त करते हुए कहते हैं कि नित्य-निरन्तर मेरा चिन्तन करने वालों का योग क्षेम _(अप्राप्य उपलब्ध कराना (योग) एवं प्राप्य की रक्षा (क्षेम))_ मैं स्वयं वहन करता हूँ।

The Almighty assure those who are loving no one else constantly and worship thou in a disinterested spirit, to those ever united in thought with thy, the Almighty bring full security and personally attend to their needs.

ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखें।

*21 दिवस के साधना काल को बढ़ा कर 40 दिवस का कर दिया गया है, शक्ति संचय करें।*

*घर पर रह कर साधना, प्रभु सुमिरन इक काम,*
 *जीत हमारी निश्चित है, कोरोना संग्राम।*

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Monday, April 13, 2020

विचार

*दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते।*
*यदन्नं भक्ष्यते नित्यं जायते तादृशी प्रजा॥*

जिस प्रकार दीपक अंधकार का भक्षण कर काला धुँआ/ काजल उत्पन्न करता है,
वैसे ही हम जिस प्रकार से उपार्जित अन्न ग्रहण करते हैं, हमारे विचार भी क्रमशः वैसे ही बन जाते हैं।

A lamp removes (eats) darkness and produces smoke side by side. Similarly money earned through deceptive/ sinful/ corrupt/unlawful means by an individual makes his mentality alike. 

जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन। 


*बीस दिवस पूरे हुए, नहीं हुआ रिपु मंद,*
*अब प्रहार भीषण करें, रहें चाक चौबंद।*

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Sunday, April 12, 2020

भक्ति एवं योग

*कहहु भगति पथ कवन प्रयासा।* 
*जोग न मख जप तप उपवासा।*
*सरल सुभाव न मन कुटिलाई।*
*जथा लाभ संतोष सदाई॥*
रामचरितमानस : उत्तरकाण्ड।

भक्ति के मार्ग में परिश्रम नहीं है, इसमें न योग की आवश्यकता है, न यज्ञ, जप, तप और उपवास की। भक्ति के मार्ग में केवल सरल स्वभाव हो, मन में कुटिलता न हो और जो कुछ मिले उसी में सदा संतोष रखें।

There is no need of hard work in the path of devotion, no need for Yoga, neither Yagna, Chanting, Tapa and Fasting. Only simple nature, mind with no evil and satisfaction in whatever gets are the only requirements in this path.

*लड़ना है बस घर में रहकर,*
*हम सब के हित है यह हितकर*

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Saturday, April 11, 2020

प्रभु सुमिरन

*जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई।*
*धन बल परिजन गुन चतुराई॥*
*भगति हीन नर सोहइ कैसा।*
*बिनु जल बारिद देखिअ जैसा॥*

भक्ति की महिमा बताते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा चाहे मनुष्य जाति, पाँति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुम्ब, गुण और चतुरता आदि से सज्जित हो किन्तु भक्ति से रहित है, तो वह एक जलहीन बादल अर्थात  शोभाहीन दिखाई पड़ता है।

A person who is having a good race, power, religion, magnificence, wealth, strength, family, virtues and cleverness, but is devoid of devotion, then he is like a meager cloud.

*प्रभु सुमिरन का समय मिला है,*
*घर में रहने में ही भला है।*

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Friday, April 10, 2020

कठिन समय

*रहिमन विपदा हो भली, जो थोरे दिन होय।*
*हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥*

जीवन में कठिन समय अर्थात्  विपदा का होना अच्छा बताते हुए रहीम जी कहते हैं कि इसी दौरान यह पता चलता है कि दुनिया में कौन हमारा हित या अनहित सोचता है।

It is good in life to be bad time for a while because it distinguishes our well-wishers and others.

*सीखें जप तप योग अरु ध्याना,*
*घर से बाहर क्यों कर जाना*

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