*कहहु भगति पथ कवन प्रयासा।*
*जोग न मख जप तप उपवासा।*
*सरल सुभाव न मन कुटिलाई।*
*जथा लाभ संतोष सदाई॥*
रामचरितमानस : उत्तरकाण्ड।
भक्ति के मार्ग में परिश्रम नहीं है, इसमें न योग की आवश्यकता है, न यज्ञ, जप, तप और उपवास की। भक्ति के मार्ग में केवल सरल स्वभाव हो, मन में कुटिलता न हो और जो कुछ मिले उसी में सदा संतोष रखें।
There is no need of hard work in the path of devotion, no need for Yoga, neither Yagna, Chanting, Tapa and Fasting. Only simple nature, mind with no evil and satisfaction in whatever gets are the only requirements in this path.
*लड़ना है बस घर में रहकर,*
*हम सब के हित है यह हितकर*
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