*गुणाः गुणज्ञेषु गुणा: भवन्ति ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।*
*आस्व्याद्य तोयाः प्रवहन्ति नद्यः समुद्रमासाद्य भवत्यपेयाः।।*
गुण विद्वान और गुणी व्यक्तियों के पास गुण के ही रूप में सुरक्षित रहते हैं परन्तु वे ही गुण गुणहीन और नीच व्यक्तियों के संसर्ग से दूषित हो कर दोषों में परिणित हो जाते हैं। उदाहरणार्थ नदियों में अच्छे स्वाद वाला पीने योग्य जल प्रवाहित होता है परन्तु वही जल समुद्र के जल से मिल कर अशुद्ध हो कर खारा हो जाता है और पीने के योग्य नहीं रहता है।
Virtues and qualities are reserved with the scholars and virtuous persons as well as in the form of virtues, but those qualities become contaminated while with lowly persons and result in defects. Just like, potable water with good taste flows in the rivers, but the same water becomes saline after being mixed with sea and is not able to drink.
गुणवानों के साथ रहें।
*संजीवन है घर में रहना,*
*बाहर घूमे नित कोरोना।*
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