*सुख हरषहिं जड़ दु:ख बिलखाहीं।*
*दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं॥*
*धीरज धरहु बिबेकु बिचारी।*
*छाड़िअ सोच सकल हितकारी॥*
रामचरित मानस : अयोध्या काण्ड।
सुख में हर्षित होना और दुःख में रोना, जड़मति अर्थात मूर्ख जन करते हैं, परन्तु धीर पुरुष अपने मन में दोनों को समान समझते हैं।
विवेक पूर्ण विचार कर धीरज रख कर चिंता का त्याग सभी प्रकार से हितकारी होता है।
To be happy in joy and crying in sorrow, is foolish, but the men who are patient consider both joy and sorrow equal in their mind.
Considering with patience in all situations and avoiding anxiety is beneficial in all respects.
धीरज रखें।
शुभ दिन हो।
🌹🌺💐🙏🏼
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