साकार व निराकार परमात्मा के द्वंद्व को ध्यान में रखते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अंतिम काण्ड उत्तरकाण्ड में (आठ श्लोक के रुद्राष्टकम् स्तोत्र में) परम शिव की स्तुति करते हुए ईश्वर का जो व्याख्यान किया है उससे साकार व निराकार के द्वंद्व को हम जैसे मूढ़ भी आसानी से समझ कर उस परम पिता परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
रुद्राष्टकम् का प्रथम श्लोक :
*नमामि ईशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्।*
*निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशम् आकाशवासं भजेऽहम् ॥*
हे मोक्ष स्वरुप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेद स्वरुप, ईशों के ईश्वर सब के स्वामी, मैं आपको नमन करता हूँ।
हे निजस्वरूप में स्थित अर्थात माया से रहित, गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाश एवं आकाश को ही वस्त्र के रूप में धारण करने वाले दिगंबर अर्थात आकाश को भी आच्छादित करने वाले ईश्वर मैं आपको नमन करता हूँ।
महाशिवरात्रि के इस पावन पर्व पर आएँ हम उस निराकार परमात्मा के साकार शिव रूप का ध्यान एवं स्तुति करें।
*शिव एवं सती के महामिलन के पर्व महाशिवरात्रि की कोटि कोटि शुभकामनाएँ।*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
3 comments:
Har Har Mahadev
Mahadev
Mahadev
Post a Comment