*यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।*
*तस्याहं न प्रणश्यामि स च में न प्रणश्यति।।*
गीता : अध्याय ६, श्लोक ३०।
भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि जो सम्पूर्ण भूतों में अर्थात् सर्वत्र एवं सबके आत्म रूप मुझ वासुदेव को ही अर्थात परमात्मा को देखता है एवं परमात्मा के अन्तर्गत देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता। अर्थात स्वयं परमात्मा उनका ध्यान रखते हैं।
He who sees Me (the universal self) present in all beings, and all beings existing within Me, never loses sight of Me, and I never lose sight of him.
सर्वत्र परमशक्ति को अनुभव करें।
शुभ दिन हो।
🌺🌸💐🙏🏻
No comments:
Post a Comment