*सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा।* *गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा॥*
*अगुन अरूप अलख अज जोई।* *भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥*
रामचरितमानस में परम सत्ता के सगुण और निर्गुण (निराकार एवं साकार) रूप में कोई भेद नहीं बताया है।
परम सत्ता, जो निर्गुण, अरूप (निराकार), अलख (अव्यक्त) और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण रूप धारण करती है।
अर्थात् भावना की प्रखरता सूक्ष्म चेतना को स्थूल स्वरूप में अवतरित कर देती है।
In the form of saguna and nirguna (formless and true) of supreme power, there is not described any distinction.
The supreme power, which is Nirguna, Arup (formless), Alakh (latent) and unborn, holds the Saguna form due to love for the devotees.
*The intensity of the perception and belief transforms the subtle consciousness into a gross form.*
शुभ दिन हो।
🌺🌸💐🙏🏼
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