Wednesday, April 22, 2020

दान

*अति साहसमतिदुष्करमत्याश्चर्यं  च दानमर्थानाम्।*
*योऽपि ददाति शरीरं न ददाति स वित्तलेशमपि।।*

समाज की सेवा और उन्नति के लिये धन संपत्ति का दान करना एक अत्यन्त कठिन, साहसिक तथा प्रशंसनीय कार्य है। परन्तु कुछ (लोभी और कंजूस) व्यक्ति चाहे अपनी जान दे देंगे लेकिन अपनी संपत्ति का लेशमात्र अंश भी दान नहीं करते हैं।

Giving away wealth as charity for social purposes is a very arduous, difficult and a wonderful act. But some people (misers and greedy persons) will rather give up their life but will not spare even a very little portion of their wealth as charity.

*दान धर्म जप नियम निभाएँ,*
*किन्तु न घर से बाहर जाएँ,*

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Tuesday, April 21, 2020

ज्ञान

*कर्मणा रहितं ज्ञानं पंगुना सदृशं  भवेत्।*
*न तेन प्राप्यते किन्चिन्न च किंचित्प्रसाध्यते।।*

यदि कोई व्यक्ति ज्ञानवान हो कर भी तदनुसार कर्म (ज्ञान का उपयोग) नहीं करता है तो उसकी स्थिति एक पंगु (चलने फिरने में असमर्थ) व्यक्ति के समान होती है। वह न तो उस ज्ञान से थोड़ा भी लाभ ले सकता है और न ही उस विषय में कोई उपलब्धि प्राप्त कर सकता है।

If a knowledgeable person does not use his knowledge by taking appropriate action, his position is like that of a crippled person. He can neither obtain even a little benefit out of such knowledge, nor any accomplishment in the field of his knowledge.

*धर्म यही कर्तव्य यही है,*
*घर में रहना बहुत सही है।*

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Monday, April 20, 2020

संयम

*आपत्सु किं विषादेन सम्पतौ विस्मयेन किं।*
*भवितव्यं भवत्येव कर्मणामेष निश्चयः।।*

आपदा (दुर्भाग्य) के आने पर विषाद करने से और धन संपत्ति प्राप्त होने पर हर्ष एवं आश्चर्य करने से कुछ नहीं होगा क्योंकि जैसे कर्म (अच्छे या बुरे) किये गये होंगे, उनके अनुसार ही जो होना होता है, वह अवश्य ही घटित होगा।

It is futile to grieve while facing adversity or misfortune and also marveling at acquisition of wealth, because whatever is destined will definitely happen according to the deeds (good or bad).

*स्वयं संयमित हो सबको बोलें,*
*नियम एक बाहर मत डोलें।*
*नहीं काम आवश्यक जब तक,*
*बाहर व्यर्थ न शक्ति टटोलें।*

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Sunday, April 19, 2020

कर्म

*जनम मरन सब दुख सुख भोगा।*
*हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा॥*
*काल करम बस होहिं गोसाईं।* 
*बरबस राति दिवस की नाईं॥*
रामचरितमानस : अयोध्या काण्ड।

जन्म-मरण, सुख-दुःख के भोग, हानि-लाभ, प्रियजनों का मिलना-बिछुड़ना, ये सब कर्म एवं समय के अधीन हैं एवं रात और दिन की तरह नियमित बरबस होते रहते हैं।

Birth & Death, Joy & Sorrow, Profit & Loss and Meeting & Separating of Dears; these all events necessarily take place depending on time & karma like days and nights.

*रहें दिवस कुछ निज गृह हम सब,*
*मिटें शूल संकट निश्चित तब।*

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Saturday, April 18, 2020

प्रभाव

*जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं,*
*गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।*

जिस प्रकार श्री कृष्ण जिन्होनें पर्वत को अपनी कनिष्ठा पर उठा लिया था एवं गिरधर कहाये थे, को मुरलीधर कह देने से कोई दुःख नहीं अर्थात कोई बुरा मानने की बात नहीं है, उसी प्रकार किसी सम्मानित एवं बड़े व्यक्ति को छोटा कह देने से उसकी कोई हानि नहीं होती है।

As _Krishna_ who picked a hill on his little finger and called _Girdhar_ won't be affected by calling him _Murlidhar_, a noble and saint person won't be affected by calling him lowly.

निंदा से प्रभावित न हों।

*हम समझें बात प्रधान की,*
*घर में रहना रक्षा प्राण की।*

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Friday, April 17, 2020

विवेक

*यस्य नास्ति स्वयंप्रज्ञा, शास्त्रंतस्य करोति किम्।*
*लोचनाभ्यांविहीनस्य, दर्पणः किं करिष्यति।।*

जिस प्रकार एक दृष्टिहीन व्यक्ति के लिए दर्पण कुछ नहीं कर सकता, उसी प्रकार जिसके पास प्रज्ञा (स्वविवेक) नहीं है, समस्त वेद और शास्त्र मिलकर भी उस व्यक्ति को सन्मार्ग की ओर नहीं ले जा सकते।

A mirror can not be useful for a blind person, similarly, where there is no prudence, all the Vedas and the scriptures can not even lead that person towards the right path.

*घर में रहें, दायित्व यही है,*
*स्वस्थ रहें, महत्व यही है।*

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Thursday, April 16, 2020

गुण

*गुणाः गुणज्ञेषु गुणा: भवन्ति ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।*
*आस्व्याद्य  तोयाः प्रवहन्ति नद्यः समुद्रमासाद्य भवत्यपेयाः।।*

गुण विद्वान और गुणी व्यक्तियों के पास गुण के ही रूप में सुरक्षित रहते हैं परन्तु वे ही गुण गुणहीन और नीच व्यक्तियों के संसर्ग से दूषित हो कर दोषों में परिणित हो जाते हैं। उदाहरणार्थ नदियों में अच्छे स्वाद वाला पीने योग्य जल प्रवाहित होता है परन्तु वही जल समुद्र के जल से मिल कर अशुद्ध हो कर खारा हो जाता है और  पीने के योग्य नहीं रहता है।

Virtues and qualities are reserved with the scholars and virtuous persons as well as in the form of virtues, but those qualities become contaminated while with lowly persons and result in defects. Just like, potable water with good taste flows in the rivers, but the same water becomes saline after being mixed with sea and  is not able to drink.

गुणवानों के साथ रहें।

*संजीवन है घर में रहना,*
*बाहर घूमे नित कोरोना।*

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Wednesday, April 15, 2020

आचरण

*कृते प्रतिकृतं कुर्याद्धिंसिते प्रतिहिंसितम्।*
*तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत्।।*

विदुर नीति कहती है, किसी भी क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। हिंसा के बाद प्रति हिंसा होती है। उसमें कोई दोष भी नहीं है क्योंकि दुष्ट के साथ दुष्टता का आचरण उचित है।

There is a reaction to any action. Violence occurs after violence. There is no wrong in it, because evil conduct is right with the wicked.

*सेवा करते जो हम सबकी,*
*उनकी रक्षा बहुत जरूरी।*
*हम अपना कर्तव्य निभाएँ*
*घर से बाहर अभी न जाएँ।*

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Tuesday, April 14, 2020

योग एवं चिंतन

*अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते।*
*तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।।*
गीता : अध्याय ९, श्लोक २२।

परमात्मा इस श्लोक के माध्यम से अपने सभी अनन्य भक्तों को, जो निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से भजते हैं, निश्चिन्त करते हुए कहते हैं कि नित्य-निरन्तर मेरा चिन्तन करने वालों का योग क्षेम _(अप्राप्य उपलब्ध कराना (योग) एवं प्राप्य की रक्षा (क्षेम))_ मैं स्वयं वहन करता हूँ।

The Almighty assure those who are loving no one else constantly and worship thou in a disinterested spirit, to those ever united in thought with thy, the Almighty bring full security and personally attend to their needs.

ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखें।

*21 दिवस के साधना काल को बढ़ा कर 40 दिवस का कर दिया गया है, शक्ति संचय करें।*

*घर पर रह कर साधना, प्रभु सुमिरन इक काम,*
 *जीत हमारी निश्चित है, कोरोना संग्राम।*

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Monday, April 13, 2020

विचार

*दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते।*
*यदन्नं भक्ष्यते नित्यं जायते तादृशी प्रजा॥*

जिस प्रकार दीपक अंधकार का भक्षण कर काला धुँआ/ काजल उत्पन्न करता है,
वैसे ही हम जिस प्रकार से उपार्जित अन्न ग्रहण करते हैं, हमारे विचार भी क्रमशः वैसे ही बन जाते हैं।

A lamp removes (eats) darkness and produces smoke side by side. Similarly money earned through deceptive/ sinful/ corrupt/unlawful means by an individual makes his mentality alike. 

जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन। 


*बीस दिवस पूरे हुए, नहीं हुआ रिपु मंद,*
*अब प्रहार भीषण करें, रहें चाक चौबंद।*

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