Thursday, October 7, 2021

ब्रह्मचारिणी स्वरूप

*दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।*
*दारिद्र्य दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥*

हे माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। 
दु:ख, दरिद्रता और भय हरने वाला आपके अतिरिक्त  दूसरा कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही आर्द्र रहता हो।

He Maa Durga! On remembering you, you take away the fear of all beings, and on contemplation by healthy men, you bestow them with supremely beneficial intelligence.
Who is the one who removes sorrow, poverty and fear other than you, whose heart is always moist to do everyone's favour.

आज शारदीय नवरात्रि पर्व के द्वितीय दिवस पर माँ आदि शक्ति के ब्रह्मचारिणी स्वरूप से प्रार्थना।

*शक्ति संचय करें।*

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Wednesday, October 6, 2021

आदि शक्ति

*रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।*

माँ आदि शक्ति से प्रार्थना:
हमें आध्यात्मिक रूप प्रदान कीजिये,
आध्यात्मिक विजय प्रदान कीजिये,
आध्यात्मिक यश प्रदान कीजिये एवं हमारे अंतस की बुराइयों को मिटा दीजिये।

Grant us Spiritual Beauty, 
Grant us Spiritual Victory, Grant us Spiritual Glory and Please Destroy our Inner Enemies.

*शक्ति संचयन के महापर्व शारदीय नौरात्रि में माँ आदिशक्ति के नौ स्वरूपों का पूजन अर्चन कर हम अपनी शक्तियों को संचित करें। माँ हम सभी को स्वास्थ्य, शक्ति एवं समृद्धि प्रदान करे।*

*माँ आदिशक्ति के शैलपुत्री स्वरूप को नमन।*

*आदर्श समाजवाद के प्रणेता अग्रसेन महाराज की 5145वीं जयन्ती पर समाज को संगठित एवं सामर्थ्यवान बनाने का संकल्प लें।*

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Tuesday, October 5, 2021

सदैव शुभ

*वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।*
*तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।*
गीता : अध्याय २, श्लोक २२।

जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर दूसरे नये शरीर को धारण करती है।

Just like people shed worn-out clothes and wear new ones, our soul casts off its worn-out body and enters a new one.

आज *सर्वपितृ अमावस्या* पर अपने पूर्वजों के स्वर्ग में अथवा इस पृथ्वी पर किसी और शरीर में होने के विश्वास को दृढ़ करते हुए, उनके आशीर्वाद को अनुभव करें। 

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जय श्री राम

*समै समै सुंदर सबै, रूप कुरूप न कोय।*
*मन की रुचि जेत जितै, तित तेती रुचि होय।*
बिहारी सतसई

समय-समय पर सभी सुन्दर हैं, कोई सुन्दर और कोई कुरूप नहीं है। मन की प्रवृत्ति जिधर जितनी होती है, उधर उतनी ही आसक्ति होती है।

All are beautiful at times, nothing is beautiful ugly. Wherever there is tendency of the mind, there will be more attachment.

एक परम में ध्यान धरें,
व्यस्त रहें हम स्वस्थ रहें।

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Saturday, October 2, 2021

गुण अवगुण

*भलेउ पोच सब बिधि उपजाये।*
*गनि गुन दोष बेद बिलगाये॥*
*कहहिं बेद इतिहास पुराना।*
*बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना॥*
रामचरित मानस : बालकाण्ड।

भला अथवा बुरा, सभी प्रकृति जनित हैं, किन्तु गुण और दोषों को विचार कर वेदों ने उनको अलग-अलग कर दिया है। वेद, इतिहास और पुराण कहते हैं कि यह सृष्टि गुण एवं अवगुण दोनों से भरी हुई है॥

All the Good and Evil is created by spreme power Nature and can be distinguished by their characteristics. It is well known truth that this world is full of Good and Bad both.

तुलसीदास जी ने आगे की चौपाइयों में अच्छे एवं बुरे के कई उदाहरण देते हुए इस कथन की पुष्टि की है।

दुख सुख पाप पुन्य दिन राती।
साधु असाधु सुजाति कुजाती।।
दानव देव ऊँच अरु नीचू। 
अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू।।
माया ब्रह्म जीव जगदीसा।
लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा।।
कासी मग सुरसरि क्रमनासा।
मरु मारव महिदेव गवासा।।
सरग नरक अनुराग बिरागा।
निगमागम गुन दोष बिभागा।।

*ज्यों काँटों की चुभन मिली, फूलों की मुस्कान को,*
*भला बुरा दोनों है जग में, मानें परम विधान को,*
*भेद करें हम, भले बुरे में, समझें निज कल्याण को,*
*है आवश्यक सामंजस्य, जीवन में उत्थान को।*

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Friday, October 1, 2021

आत्म सन्तोष

*असन्तोषः परं दुःखं सतोषः परमं सुखं।*
*सुखार्थी पुरुषस्तस्यात्सन्तुष्टः सततं भवेत् ।।*

जो व्यक्ति संतोषी नहीं होता है वह सदैव ही अत्यन्त दुःखी रहता है और जो व्यक्ति संतोषी होता है वह परम सुख का अनुभव करता है। अतएव सुख की कामना करने वाले व्यक्ति को सदैव संतुष्ट रहना चाहिए।

The person who is not satisfied is always very unhappy and the person who is content feels the ultimate happiness. Therefore a person who desires happiness should always be satisfied.

*आज महात्मा गाँधी एवं लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिन पर हम सभी अपने राष्ट्र हेतु समर्पित होने का संकल्प लें।*

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Wednesday, September 29, 2021

उत्साह

*उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्।*
*सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्॥*
वाल्मीकि रामायण : किष्किन्धा काण्ड ; १/१२१

उत्साह पुरुषों का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है। उत्साहित व्यक्ति के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। 

Enthusiasm is the power of men. Nothing is as powerful as enthusiasm. Nothing is difficult in this world for an enthusiastic person.

स्वस्थ रहें।

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Monday, September 20, 2021

कर्म

*यथा  धेनु  सहस्रेषु  वत्सो गच्छति  मातरम्|*
*तथा  यच्च  कृतं  कर्म  कर्तारमनुगच्छति||*
चाणक्य नीति (१३/१५)

जिस प्रकार हजारों गायों के एक समूह में उनके बछडे अपनी अपनी माताओं को ढूढ कर उनके पास चले जाते हैं, उसी प्रकार किसी व्यक्ति द्वारा किये गये कर्म भी उस के पीछे पीछे उस का अनुसरण करते हैं, अर्थात किये गये अच्छे या बुरे कर्मों के परिणाम उसी को ही भोगने पडते हैं।

In a herd of thousands of cows their calves recognise their respective mothers and then follow
them, in the same manner the deeds done by a person follow him thereby implying that ultimately he has to face the consequences of good or bad deeds done by him.

कर्मों का फल नहीं टरे,
निज कर्मों का ध्यान करें।

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Sunday, September 19, 2021

गणपति बप्पा मोरया

*यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्।*
*इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च॥*

पिछले 10 दिवस के भगवान गणेश के सामीप्य एवं आतिथ्य के आनंद को सम्पूर्णता देते हुए भावपूर्ण विसर्जन कर अगले बरस फिर आने की विनम्र प्रार्थना करते हैं।

*अनंत चतुर्दशी पर विघ्नहर्ता गणेश हम सभी के विघ्न दूर करें एवं जीवन को मंगलमय बनाए।*

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Wednesday, September 15, 2021

ॐ नमो भगवते वासुदेव

*योगस्थ: कुरु कर्माणि संग्ङंत्यक्त्वा धनंजय।*
*सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥*
गीता अध्याय २ श्लोक ४८

परमयोगीश्वर भगवान कृष्ण समझा रहे हैं कि
हे धनंजय। कर्म न करने का आग्रह त्यागकर, सफलता असफलता, यश-अपयश के विषय में समबुद्धि होकर योग युक्त होकर, कर्म कर, (क्योंकि) समत्व को ही योग कहते हैं।

We should perform
our duties established in Yoga, renouncing attachment, and eventempered in success and failure; Envenness of temper is called yoga.

*कर्तव्य सदा निर्वाह करें,*
*व्यस्त रहें हम स्वस्थ रहें।*

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