Monday, July 18, 2022

बुद्धि

*मुक्ताभिमानी मुक्तो हि बद्धो बद्धाभिमान्यपि।*
*किवदन्तीह सत्येयं या मतिः सा गतिर्भवेत्॥१-११॥*
अष्टावक्र गीता

स्वयं को मुक्त मानने वाला मुक्त ही है और बद्ध मानने वाला बंधा हुआ ही है, यह कहावत सत्य है कि जैसी बुद्धि होती है वैसी ही गति होती है।

If you think you are free you are free. If you think you are bound you are bound. It is rightly said: You become what you think.

*पुत्र परम के हम मानें हम,*
*निज मन भी पहचानें हम,*
*मुक्त स्वयं को समझें हम,*
*स्वयं स्वयं को जानें हम।*

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Friday, July 15, 2022

महिमा

*अयि मलयजमहिमाऽयं कस्य गिरामस्तु  विषयस्ते।*
*उद्गिरतो यद्गरलं फणिनः पुष्णासि परिमलोद्गारैः।।*

हे प्रिय चन्दन के वृक्ष! तुम्हारी महिमा सभी लोगों में प्रसंशा और चर्चा का विषय है, क्योंकि तुम्हारी शाखाओं और जड़ों में रहने वाले सर्पों द्वारा तुम पर विष वमन करने पर भी तुम सर्वत्र अपनी सुगन्ध बढ़ा-चढ़ा कर फैला रहे हो।

इसी तथ्य को रहीम जी ने भी  कहा है,
*जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग*
*चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग*

O dear Sandalwood tree! your greatness is the subject matter of praise by people every where,  because in spite of very poisonous snakes dwelling in your branches and roots and spitting poison here and there, you continue to spread more and more fragrance all around.

श्रेष्ठ रहें हम उत्कृष्ट बनें,
सज्जन हों हम स्वस्थ रहें।

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Wednesday, July 13, 2022

हर हर महादेव

*आचारः प्रथमो  धर्मः इत्येतद्विदुषां  वचः।*
*तस्माद्र्रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्य अपि विशेषतः।।*
                       
दूसरों के प्रति अच्छा आचरण करना हमारा सर्व प्रथम धर्म (कर्तव्य) है, ऐसा विद्वज्ज्नों का कहना है। अतः सदाचार की रक्षा (अनुपालन) हमें अपने प्राणों से भी अधिक करनी चाहिए।

Noble and learned persons have proclaimed that good conduct towards others is our first and foremost duty. Therefore, we should  adhere to our good conduct even more than our life.

*अहम त्याग दें, मास अहम है,*
*सावन में शिव शक्ति परम है,*
*गुरु की शिक्षा साथ सदा हो,*
*संचित कर लें जो भी कम है।*

आज से प्रारम्भ शिव आराधना के श्रावण मास में स्वास्थ्य साधना करें।

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Monday, July 11, 2022

मोह / अहम

*मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला।*
*तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥*
रामचरितमानस : उत्तर काण्ड।

मोह (सब कुछ मेरा होने का अहम) ही सब रोगों की जड़ है। इस एक से ही और बहुत से शूल (व्याधि) उत्पन्न होते हैं।

Moh (the ego that everything is mine) is the root of all miseries. This only produces many other diseases.

रहे कमल ज्यों ऊपर जल में,
हम जग में निर्लिप्त रहें,
*मोह मूल है हर व्याधि का,*
*मोह तजें हम स्वस्थ रहें।*

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Tuesday, July 5, 2022

भक्ति

*जातें बेगि द्रवउँ मैं भाई।*
*सो मम भगति भगत सुखदाई॥*
रामचरितमानस : अरण्य कांड।

श्री राम लक्ष्मण को भक्ति की महिमा बताते हुए कहते हैं, हे भाई! जिससे मैं शीघ्र ही प्रसन्न होता हूँ, वह मेरी भक्ति है जो भक्तों को सुख देने वाली है।

Describing the importance of devotion to Lakshmana, Shri Ram says, O brother! By which I am soon pleased, it is devotion to me. The devotion to me gives happiness to the devotees.

राम चरण अनुराग रखें हम,
सुख पाएँ सन्मार्ग चलें हम।
योग ध्यान से स्वस्थ रहें हम।

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Tuesday, June 28, 2022

कामना

*अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदाः।*
*मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवताः॥*

निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और चौपाये अर्थात पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं। मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करता है और स्वर्ग में रहने वाले देवता मोक्ष-प्राप्ति की इच्छा करते हैं। इस प्रकार जो प्राप्त है, सभी उससे आगे की कामना करते हैं।

A poor wishes for wealth, an animal wishes if it could speak. Man desires heaven while the deities living in heaven desire salvation. Thus everyone wishes beyond what he has.

*सदा आगे बढेंगें हम,*
*यही बस लक्ष्य लेंगें हम,*
*सहायक दूसरों के हित,*
*नयी आशा बनेंगें हम।*

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Monday, June 27, 2022

सदैव शुभ

*एहि तन कर फल बिषय न भाई।*
*स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥*
*नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं।*
*पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥*

रामचरित मानस : उत्तरकांड।

मानव शरीर मिलने का उद्देश्य विषयभोग नहीं है, स्वर्ग का भोग भी थोड़ा लगता है और अंत में दुःख देने लगता है। अतः यदि मनुष्य शरीर पाकर भी विषयों में मन लगाने वाले, किसी मूर्ख के समान अमृत के बदले विष लेने के समान है।

The cause to the human birth is not to be indulged in material things/ pleasures, even pleasure of heaven may seem insufficient and later caused sufferings only. Hence if a human indulge in material things/ pleasures is like a fool who takes venom against nector.

*मिला मनुज तन गर्व करें हम,*
*विषय भोग में क्यों उलझें हम,*
*सत्कर्मों में व्यस्त रहें हम,*
*यह उद्देश्य पूर्ण करें हम।*

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Friday, June 24, 2022

स्वभाव

*स्वभावं न जहात्येव साधुरापदतोsपि  सन्*
*कर्पूरः पावकस्पृस्तिः सौरभं लभतेतराम् ।*

सज्जन व्यक्ति अपना नैसर्गिक अच्छा स्वभाव किसी बडी आपदा के उपस्थित होने पर भी उसी प्रकार नहीं त्यागते जैसा कि कपूर आग के संपर्क में आ कर जल जाने पर और भी अधिक सुगन्ध देने लगता है।

Noble persons do not shed their inherent good nature even while facing a calamity just like the Camphor, which on coming into contact with fire and while burning emits even more fragrance.

स्वस्थ रहें हम व्यस्त रहें हम,
*श्रेष्ठ बनें मानव बन जाएँ।*

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Monday, June 20, 2022

योग दिवस

*सुनहु उमा ते लोग अभागी।*
*हरि तजि होहिं बिषय अनुरागी॥*
रामचरित मानस : अरण्यकांड।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान शिव के माध्यम से कहा;, हे पार्वती ! सुनो, वे लोग अभागे हैं, जो ईश्वर को छोड़कर विषयों से अनुराग करते हैं।

Goswami Tulsidas ji told through Lord Shiva, O Parvati! Listen, those people are unfortunate, who love worldly things other than God.

*योग करें हम, योग करें हम,*
*स्वस्थ रहें हम, स्वस्थ रहें हम।*

आज 8वें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर आएँ योग द्वारा एक स्वस्थ जीवन का संकल्प लें।

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Friday, June 17, 2022

क्रोध

*क्रोधः सुदुर्जयः शत्रुः लोभो व्याधिरनन्तकः।।*

मनुष्य के स्वभाव में क्रोध एक ऐसे शत्रु के समान है जिस पर विजय प्राप्त करना बहुत कठिन होता है, तथा लोभ एक कभी दूर न होने वाली बीमारी के समान होता है।

Anger in a person is like an enemy very difficult to conquer or overcome, and greed is like an endless disease.

*क्रोध लोभ से बचना है,*
*योग नित्य ही करना है,*
*स्वस्थ हमेशा रहना है,*
*सदा सुखी अब बनना है।*

8वें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस में 3 दिन शेष हैं।

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