Monday, July 11, 2022

मोह / अहम

*मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला।*
*तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥*
रामचरितमानस : उत्तर काण्ड।

मोह (सब कुछ मेरा होने का अहम) ही सब रोगों की जड़ है। इस एक से ही और बहुत से शूल (व्याधि) उत्पन्न होते हैं।

Moh (the ego that everything is mine) is the root of all miseries. This only produces many other diseases.

रहे कमल ज्यों ऊपर जल में,
हम जग में निर्लिप्त रहें,
*मोह मूल है हर व्याधि का,*
*मोह तजें हम स्वस्थ रहें।*

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