Wednesday, October 27, 2021

स्वयं

*मुक्ताभिमानी मुक्तो हि बद्धो बद्धाभिमान्यपि।*
*किवदन्तीह सत्येयं या मतिः सा गतिर्भवेत्॥१-११॥*
अष्टावक्र गीता

स्वयं को मुक्त मानने वाला मुक्त ही है और बद्ध मानने वाला बंधा हुआ ही है, यह कहावत सत्य है कि जैसी बुद्धि होती है वैसी ही गति होती है।

If you think you are free you are free. If you think you are bound you are bound. It is rightly said: You become what you think.

*ईश पुत्र हम मानें हम,*
*निज मन को पहचानें हम,*
*मुक्त स्वयं को समझें हम,*
*स्वयं स्वयं को जानें हम।*

आज *अहोई अष्टमी* पर सभी संतानों के स्वास्थ्य की रक्षा हो एवं व्रतधारिणी माताओं के अभीष्ट पूर्ण हों।

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Tuesday, October 26, 2021

आचरण

*आचाराल्लभते आयु: आचारादीप्सिता: प्राजा:,*
*आचाराद्धनमक्षय्यम् आचारो हन्त्यलक्षणम्।।*

अच्छे आचरण अर्थात सदव्यवहार से दीर्घ आयु, श्रेष्ठ सन्तति, चिर समृद्धि प्राप्त होती है, तथा अपने दोषों का भी नाश होता है। प्रत्येक परिस्थिति हमारे हाथ में नहीं किन्तु हमारा आचरण हमारे वश में है।

Good conduct means good behavior, gives longevity, great progeny, everlasting prosperity, and also destroys one's own faults. Every situation is not in our hands but our conduct is under our control.

*व्यवहार हमारा अच्छा हो,*
*व्यवहार हमारा सच्चा हो,*
*हम स्वच्छ रहें हम स्वस्थ रहें,*
*हम व्यस्त रहें हम मस्त रहें।*

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Monday, October 25, 2021

अहम से बचे

*प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश:।*
*अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते।।*
गीता : अध्याय ३, श्लोक २७।

वास्तव में सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते हैं तथापि जिसका अन्त:करण अहंकार से मोहित हो रहा है, ऐसा अज्ञानी 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मानता है।

All actions are being performed by the modes of nature (Primordial matter). The foolish, whose mind is deluded by egoism, thinks: “I am the doer".

अहम से बचें, परम को समझें,
मैं करता हूँ, यह न समझें,
स्व में स्थित स्वस्थ रहें।

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Saturday, October 23, 2021

करवा चौथ

रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने शक्ति स्वरूपा नारी को नमन करते हुए कहा है:

*उद्भवस्थितिसंहारकारिणी क्लेशहरिणीम्।*
*सर्वश्रेयस्कारीं सीता नतोऽहं रामवल्लभाम्।।*

उत्पत्ति, स्थिति (पालन) और संहार करने वाली, क्लेशों को हरने वाली तथा समस्त कल्याणों को करने वाली स्वयम् भगवन को प्रिय नारी शक्ति को मैं नमन करता हूँ।

I salute the woman, symbol of power of creation, adherence and destruction, defeating afflictions and doing all the welfare. At last GOD's love, o woman! I bow myself to you.

अपने जीवनसाथी की स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन हेतु एक नारी निर्जल कठोर तप करती है, आज *करवा चौथ* व्रतधारी सभी नारियों की मनोकामना माँ भवानी पूर्ण करे एवं उन्हें भी स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन प्रदान करें।

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Friday, October 22, 2021

परम सत्ता

*सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा।* *गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा॥*
*अगुन अरूप अलख अज जोई।* *भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥*

रामचरितमानस में परम सत्ता के सगुण और निर्गुण (निराकार एवं साकार) रूप में कोई भेद नहीं बताया है।
परम सत्ता, जो निर्गुण, अरूप (निराकार), अलख (अव्यक्त) और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण रूप धारण करती है। 
अर्थात् भावना की प्रखरता सूक्ष्म चेतना को स्थूल स्वरूप में अवतरित कर देती है।

In the form of saguna and nirguna (formless and true) of supreme power, there is not described any distinction.

The supreme power, which is Nirguna, Arup (formless), Alakh (latent) and unborn, holds the Saguna form due to love for the devotees. 
*The intensity of the perception and belief transforms the subtle consciousness into a gross form.*

स्वस्थ रहें।

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Thursday, October 21, 2021

माँ तुलसी की महिमा

🔸कार्तिक मास में तुलसी की महिमा🔸

          ब्रह्मा जी कहे हैं कि कार्तिक मास में जो भक्त प्रातः काल स्नान करके पवित्र हो कोमल तुलसी दल से भगवान् दामोदर की पूजा करते हैं, वह निश्चय ही मोक्ष पाते हैं। पूर्वकाल में भक्त विष्णुदास भक्तिपूर्वक तुलसी पूजन से शीघ्र ही भगवान् के धाम को चला गया और राजा चोल उसकी तुलना में गौण हो गए। तुलसी से भगवान् की पूजा, पाप का नाश और पुण्य की वृद्धि करने वाली है। अपनी लगाई हुई तुलसी जितना ही अपने मूल का विस्तार करती है, उतने ही सहस्रयुगों तक मनुष्य ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित रहता है। यदि कोई तुलसी संयुत जल में स्नान करता है तो वह पापमुक्त हो आनन्द का अनुभव करता है। जिसके घर में तुलसी का पौधा विद्यमान है, उसका घर तीर्थ के समान है, वहाँ यमराज के दूत नहीं जाते। जो मनुष्य तुलसी काष्ठ संयुक्त गंध धारण करता है, क्रियामाण पाप उसके शरीर का स्पर्श नहीं करते। जहाँ तुलसी वन की छाया हो वहीं पर पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिसके कान में, मुख में और मस्तक पर तुलसी का पत्ता दिखाई देता है, उसके ऊपर यमराज दृष्टि नहीं डाल सकते।
          प्राचीन काल में हरिमेधा और सुमेधा नामक दो ब्राह्मण थे। वह जाते-जाते किसी दुर्गम वन में परिश्रम से व्याकुल हो गए, वहाँ उन्होंने एक स्थान पर तुलसी दल देखा। सुमेधा ने तुलसी का महान् वन देखकर उसकी परिक्रमा की और भक्ति पूर्वक प्रणाम किया। यह देख हरिमेधा ने पूछा कि 'तुमने अन्य सभी देवताओं व तीर्थ-व्रतों के रहते तुलसी वन को प्रणाम क्यों किया ?' तो सुमेधा ने बताया कि 'प्राचीन काल में जब दुर्वासा के शाप से इन्द्र का ऐश्वर्य छिन गया तब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मन्थन किया तो धनवंतरि रूप भगवान् श्री हरि और दिव्य औषधियाँ प्रकट हुईं। उन दिव्य औषधियों में मण्डलाकार तुलसी उत्पन्न हुई, जिसे ब्रह्मा आदि देवताओं ने श्री हरि को समर्पित किया और भगवान् ने उसे ग्रहण कर लिया। भगवान् नारायण संसार के रक्षक और तुलसी उनकी प्रियतमा है। इसलिए मैंने उन्हें प्रणाम किया है।'
          सुमेधा इस प्रकार कह ही रहे थे कि सूर्य के समान अत्यंत तेजस्वी विशाल विमान उनके निकट उतरा। उन दोनों के समक्ष वहाँ एक बरगद का वृक्ष गिर पड़ा और उसमें से दो दिव्य पुरुष प्रकट हुए। उन दोनों ने हरिमेधा और सुमेधा को प्रणाम किया। दोनों ब्राह्मणों ने उनसे पूछा कि आप कौन हैं ? तब उनमें से जो बड़ा था वह बोला, मेरा नाम आस्तिक है। एक दिन मैं नन्दन वन में पर्वत पर क्रीड़ा करने गया था तो देवांगनाओं ने मेरे साथ इच्छानुसार विहार किया। उस समय उन युवतियों के हार के मोती टूटकर तपस्या करते हुए लोमश ऋषि पर गिर पड़े। यह देखकर मुनि को क्रोध आया। उन्होंने सोचा कि स्त्रियाँ तो परतंत्र होती हैं। अत: यह उनका अपराध नहीं, दुराचारी आस्तिक ही शाप के योग्य है। ऐसा सोचकर उन्होंने मुझे शापित किया - "अरे तू ब्रह्म राक्षस होकर बरगद के पेड़ पर निवास कर।" जब मैंने विनती से उन्हें प्रसन्न किया तो उन्होंने शाप से मुक्ति की विधि सुनिश्चित कर दी कि जब तू किसी ब्राह्मण के मुख से तुलसी दल की महिमा सुनेगा तो तत्काल तुझे उत्तम मोक्ष प्राप्त होगा। इस प्रकार मुक्ति का शाप पाकर मैं चिरकाल से इस वट वृक्ष पर निवास कर रहा था। आज दैववश आपके दर्शन से मेरा छुटकारा हुआ है।
          तत्पश्चात् वे दोनों श्रेष्ठ ब्राह्मण परस्पर पुण्यमयी तुलसी की प्रशंसा करते हुए तीर्थ यात्रा को चल दिए। इसलिए भगवान् विष्णु को प्रसन्नता देने वाले इस कार्तिक मास में तुलसी की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
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   "जय  श्री कृष्णा राधे राधे 🙏

परिणाम

*एकवापीभवं  तोयं   पात्रापात्र  विशेषतः।*
*आम्रे मधुरतामेति  निम्बे कटुकतामपि।।*

एक ही तालाब का जल, विशेषतः योग्य तथा अयोग्य प्राप्तकर्ताओं  के द्वारा प्रयुक्त हो कर ,अलग अलग परिणाम देता है। उदाहरण स्वरूप आम के वृक्ष को सिंचित करने  से उसके फलों में मिठास उत्पन्न होती है  परन्तु नीम के वृक्ष में कटुकता ही उत्पन्न होती है।

एक ही साधन का सज्जन व्यक्ति सदुपयोग करते हैं और दुर्जन दुरुपयोग करते हैं और उसके परिणाम भी तदनुसार अच्छे और बुरे होते हैं।

Water from the same pond used for irrigation purposes produces different results depending upon the  competence
or incompetence of the recipients, e.g while the Mango tree produces sweet fruits, all the products of Neem tree  are bitter in taste."

The competent persons put to good use the resources available to them and the same resources are misused by incompetent persons producing bad results.

स्वस्थ रहें।

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Tuesday, October 19, 2021

बाल्मीकि जयंती

*मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शास्वती समा।*
*यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्।।*

हे निषाद। तुझे कभी भी शान्ति न मिले, क्योंकि तूने इस काम से मोहित क्रौंच के जोड़े में से एक की बिना किसी अपराध के ही हत्या कर डाली।

आदि कवि वाल्मीकि जी ने करुणा से भरकर इस प्रथम श्लोक की रचना की एवं तत्पश्चात *रामायण* की रचना की।

एक दस्यु से महर्षि बने *वाल्मीकि* की जयंती पर हम सदैव उत्कृष्टता की ओर बढ़ने का संकल्प लें।

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Monday, October 18, 2021

जय श्री राम

*फूलइ फरइ न बेत, जदपि सुधा बरषहिं जलद।*
*मूरुख हृदयँ न चेत, जौं गुर मिलहिं बिरंचि सम॥*

रामचरितमानस : लंका काण्ड।

मंदोदरी के समझाने पर भी मदान्ध रावण के न समझने पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने बेंत (बाँस) का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि
यद्यपि बादल अमृत-सा जल बरसाते हैं तथापि बेत फूलता-फलता नहीं। इसी प्रकार ब्रह्मा के समान ज्ञानी गुरु मिलने पर भी मूर्ख के हृदय में चेत (ज्ञान) नहीं होता॥

Despite good rain like nectar, the bamboo does not flourish. Similarly, even after getting a knowledgeable mentor like Brahma, the fool hearted can't attain perception (intellect).

*व्यर्थ नहीं अभिमान करें,*
*सोचें तनिक विचार करें,*
व्यस्त रहें हम स्वस्थ रहें।

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Sunday, October 17, 2021

सत्कर्म

*नाम्भोधिरर्थितामेति सदाम्भोभिश्च पूर्यते।*
*आत्मा तु पात्रतां नेयः पात्रमायान्ति संपदः।।*
       
यद्यपि समुद्र ने जल की कभी कामना नहीं की और न ही किसी से इस हेतु संपर्क किया परन्तु फिर भी वह सदा जल से भरा ही रहता है। इसी तरह यदि कोई व्यक्ति धर्म का पालन कर अपने को सुयोग्य बना ले तो उसे सुपात्र जान कर धन संपत्ति स्वयं ही उसके पास आ जाती है।

{इसी भावना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने 'रामचरितमानस' में भी व्यक्त किया है: 
जिमि सरिता सागर मंहुं जाहीं।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं। 
तिमि सुख संपति बिनहिं बुलाये। धर्मशील पहिं जाहिं सुभाये।। (बालकाण्ड पद २९४ ) }

The ocean neither desires nor approaches any one for water, but still it always remains full with water. Similarly, if a person makes himself worthy through performing his duties well with religious austerity, then considering him as a proper recipient, wealth itself favours him, although he may not desire it.

*हम अपना कर्तव्य निभाएँ,*
*जीवन सुख से भरा बनाएँ।*

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