Saturday, June 5, 2021

विश्व पर्यावरण दिवस

*पत्रपुष्पफलच्छायामूलवल्कलदारुभिः।*
*धन्यामहीरुहा येभ्यो निराशा यान्ति नाऽर्थिनः।।*
                                             
धन्य हैं वे वृक्ष जो अपने पत्तों, फूलों, फलों, जड़ों, छाल, लकड़ी और छाया से प्राणिमात्र की सहायता करते हैं और उनके पास से कोई भी याचक निराश नहीं लौटता है।

Blessed are the trees, who help all the living beings by providing their leaves, flowers, fruits, roots, bark and cool shade, and nobody  returns with empty hands.

वृक्षों से हम देना सीखें,
वृक्षों को पालें हम सींचें।

*विश्व पर्यावरण दिवस पर आएँ हम अधिकाधिक वृक्ष लगाने का सङ्कल्प लें।*

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Wednesday, June 2, 2021

एकांतचित्त

*एकाकी चिन्तयेन्नित्यं विविक्ते हितं आत्मनः।*
*एकाकी चिन्तयानो हि परं श्रेयोऽधिगच्छति।।*
मनुस्मृति : 4/258

मनुष्य को नित्यप्रति एकान्त स्थान में एकाकी बैठकर आत्म-हित का चिन्तन करना चाहिए। एकाकी आत्म-चिन्तन करने वाला मनुष्य परम कल्याण को प्राप्त होता है।

One should think of self-interest by sitting alone in a secluded place every day. A man who contemplates alone attains supreme welfare.

*नित्य अकेले बैठ मनन हो,*
*आत्म निरीक्षण पर चिन्तन हो,*
*स्व में स्थित स्वस्थ रहें हम,*
*सुरभित विकसित तब जीवन हो।*

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Sunday, May 30, 2021

कर्म

*न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।*
*इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते।।*

गीता : अध्याय 4, श्लोक 14।

कर्मों की दिव्यता महत्त्व बतलाते हुए भगवान श्री कृष्ण निष्काम भाव से कर्म करने के लिये अर्जुन को आज्ञा देते हैं-
कर्मों के फल में मेरी स्पृहा नहीं है, इसलिए मुझे कर्म लिप्त नहीं करते– इस प्रकार जो मुझे तत्त्व से जान लेता है, वह भी कर्मों से नहीं बँधता।

Since I have no craving for the fruit of acions; actions do not contaminate Me, Even he who thus knows Me in reality is not bound by actions.

हम कर्मों से डरें नहीं,
पर कर्मों से बँधे नहीं,
कर्म हमारे वश में हैं,
फल प्रभु के वश में हैं।

स्वस्थ रहें।

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Thursday, May 27, 2021

जय माँ

*उच्छिद्यते धर्मवृतं अधर्मो विद्यते महान्।*
*भयमाहुर्दिवारात्रं यदा  पापो  न वार्यते।।*

समाज में जब पापकर्मों (बुरे और निषिद्ध कार्यों) पर किसी प्रकार का नियन्त्रण  और प्रतिबन्ध नहीं होता है  तब लोगों के धार्मिक आचरण में न्यूनता (कमी) होने लगती है और अधर्म (बुरे और निषिद्ध कर्मों) में वृद्धि होने से रात दिन सर्वत्र भय व्याप्त हो जाता है।
 
In a society where there is no control over sinful and illegal deeds, there is a steep decline in the  religious austerity of the people, and  as a result  there is abnormal  increase in immorality, and an environment of fear is built up everywhere at all times.

धर्म अडिग हो धर्म अटल हो,
करुणा से पूरित हर पल हो,
आज अगर हम धर्म निभाएँ,
तभी सुरक्षित अपना कल हो।

स्वस्थ रहें।

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Monday, May 24, 2021

जय श्री हरि

*ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।*
*नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्॥*

 हे उग्र एवं शूर-वीर महाविष्णु, आपका तेज एवं ताप चतुर्दिक फैला हुआ है। हे नरसिंह भगवान, आप सर्वव्यापी भद्र हैं, आप मृत्यु के भी यम हैं। मैं आपको नमन करता हूँ।

आज *भगवान नृसिंह प्राकट्य दिवस* (नरसिंह चतुर्दशी) पर भगवान के इस उग्र रूप से पृथ्वी पर आये महामारी रूपी संकट को मिटाने की प्रार्थना करते हैं।

व्याधियाँ इतनी बढ़ी है,
हर किसी के सर चढ़ी है,
दीप करता प्रार्थना है,
धैर्य रखने की घड़ी है।

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Sunday, May 23, 2021

प्रभु स्मरण

*ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।*
*मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।*

गीता : अध्याय ४, श्लोक ११।

श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं अर्थात् स्मरण करते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ। हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का ही अनुगमन करता है।

As all surrender or pray unto the Krishna, Krishna reward them accordingly. Everyone follows his path in all respects.

आएँ भज लें नित्य परम् को,
त्याग झूठ के भरम अहम को,
मार्ग सभी उस तक ही जाते,
ऐसा स्वयं कृष्ण बतलाते।

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Wednesday, May 19, 2021

स्वयं का आकलन

*मणिर्लुटति पादेन काच शिरसि धार्यते।*
*यथैवास्तु तथैवास्तु काचः काचो मणिर्मणि:॥*

मणि चाहे पैरों में पहनी हो और काँच के टुकड़े को सिर पर धारण किया हो तब भी मणि मणि रहती है एवम् काँच काँच।

A gem is trodden under foot and a glass is worn on the head. Even in that state a glass is glass and a gem is a gem. 


मूल्य स्वयं का जानें हम,
स्वयं स्वयं पहचानें हम,
परम् तत्व है अपने भीतर,
सत्य यही है मानें हम।


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Tuesday, May 18, 2021

इच्छा

*अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदाः।*
*मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवताः॥*

निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और चौपाये अर्थात पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं। मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करता है और स्वर्ग में रहने वाले देवता मोक्ष-प्राप्ति की इच्छा करते हैं। इस प्रकार जो प्राप्त है, सभी उससे आगे की कामना करते हैं।

A poor wishes for wealth, an animal wishes if it could speak. Man desires heaven while the deities living in heaven desire salvation. Thus everyone wishes beyond what he has.

*सदा आगे बढेंगें हम,*
*यही बस लक्ष्य लेंगें हम,*
*सहायक दूसरों के हित,*
*नयी आशा बनेंगें हम।*

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Monday, May 17, 2021

अधिकार एवम कर्म

*कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।*
*मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।*
गीता : अध्याय 2 श्लोक 47

*निज कर क्रिया रहीम कहि, सिधि भावी के हाथ। *
*पांसे अपने हाथ में, दांव न अपने हाथ॥*

मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में ही है, उसके परिणामों में कभी नहीं। 
अतः हम कर्मों के परिणाम का हेतु न बनें तथा हमारी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो।

A MAN has right to work only, but never to the result thereof. 
So be not instrumental in making our actions bear results, nor let our attachment be to inaction.

स्वस्थ रहें।

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Saturday, May 15, 2021

यश व अपयश

*समप्रकास तम पाख दुहु, नाम भेद बिधि कीन्ह।*
*ससि सोषक पोषक समुझि, जग जस अपजस दीन्ह॥*
रामचरित मानस : बालकाण्ड।

एक माह के दो पक्षों (शुक्ल एवं कृष्ण) में प्रकाश एवं अंधकार समान होता है किंतु दोनों की प्रकृति भिन्न है। एक चन्द्रमा को क्रमशः बढ़ाता जाता है और दूसरा घटाता जाता है, इसी कारण एक को यह जग यश देता है जबकि दूसरे को अपयश देता है।

Two fortnights of a month _Shukla_ and _Krishna_ are having same brightness and darkness, but are separated by the nature of both. One increases the moon gradually and other decreases, that is why the world praises one but condemn other.

*स्वस्थ रहें।*

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