*एकाकी चिन्तयेन्नित्यं विविक्ते हितं आत्मनः।*
*एकाकी चिन्तयानो हि परं श्रेयोऽधिगच्छति।।*
मनुस्मृति : 4/258
मनुष्य को नित्यप्रति एकान्त स्थान में एकाकी बैठकर आत्म-हित का चिन्तन करना चाहिए। एकाकी आत्म-चिन्तन करने वाला मनुष्य परम कल्याण को प्राप्त होता है।
One should think of self-interest by sitting alone in a secluded place every day. A man who contemplates alone attains supreme welfare.
*नित्य अकेले बैठ मनन हो,*
*आत्म निरीक्षण पर चिन्तन हो,*
*स्व में स्थित स्वस्थ रहें हम,*
*सुरभित विकसित तब जीवन हो।*
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