Monday, May 11, 2020

मूल

*अमंत्रं अक्षरं नास्ति, नास्ति मूलं अनौषधः।*
*अयोग्यः पुरूषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभः।।*

संसार में कोई ऐसा अक्षर नहीं है जिससे कोई मंत्र न शुरू होता हो। कोई ऐसा मूल (जड़) नहीं जो किसी रोग की औषधि नहीं है, तथा दुनिया में कोई भी व्यक्ति पूर्णतः अयोग्य नहीं है जो किसी काम न आ सके। 
किन्तु उक्त तीनों का (मंत्र, औषधि और व्यक्ति का) समुचित प्रयोग करने वाले योजक कठिनता से मिलते हैं।

There is no letter in the world that starts no mantra. There is no such root which is not the medicine of any disease, and no one in the world is completely disqualified who can not do any work.
But the one who uses of the said three (mantra, medicine and person) is rare.

*जीवन अपना सभी बचाएँ,*
*घर पर ही कुछ दिन रह जाएँ*
*अपनी शक्ति और बढ़ाएँ,*
*कोरोना से क्यों घबराएँ।*

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Sunday, May 10, 2020

प्रेम

*प्रेम हरि को रुप है, त्यौं हरि प्रेमस्वरुप।*
*एक होई है यों लसै, ज्यों सूरज औ धूप।*

प्रेम को हरि अर्थात परम तत्व के समान बताते हुए रसखान ने प्रेम एवं परम को एक दूजे का रूप कहा है। प्रेम और परम ऐसे सम्बद्ध हैं जैसे सूरज एवं धूप।

Love is God and God is Love. Both are so close as Sun and sunlight.

*सब पर मन में प्रेम रखें,*
*दूरभाष से सब बात करें,*
*चित्र नाद निज रूप भरें,*
*किन्तु न बाहर पैर धरें।*

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Saturday, May 9, 2020

एकल तपस्या

*एकाकिनो  तपो  द्वाभ्यां  पठनं  गायनं  त्रिभिः।*

तपस्या अकेले ही की जाती है, विद्याध्ययन के लिए दो व्यक्ति (गुरु और शिष्य) आवश्यक होते हैं। गायन के लिए तीन व्यक्तियों (गायक, संगति करने वाला और श्रोता) अवश्य होने चाहिए। 

Asceticism is to be practiced alone by a person, and for studying at least two persons (teacher and the student) are essential. For singing at least three persons (the singer, the accompanist and the listener) are required.

*रहें अकेले तप करने को*
*मन में शक्ति नयी भरने को*

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Friday, May 8, 2020

बुद्धिमत्ता

*प्रस्तावसदृशं वाक्यं प्रभावसदृशं प्रियम्।*
*आत्मशक्तिसमं कोपं यो जानाति स पंडित:॥*

The wise person talks according to the occasion, speaks in accordance with dignity, and becomes furious  according to his power.

अवसर के अनुकूल बात करने वाला अपनी सामर्थ्य गरिमा के अनुरूप भाषण करने वाला तथा अपनी शक्ति के अनुरूप क्रोध करनेवाला व्यक्ति ही बुध्दिमान कहलाता है।

*संकट समझें तनिक विचारें*
*घर में ही ये दिवस गुजारें*

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Thursday, May 7, 2020

प्रेम

*प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। *
*राजा परजा जेहि रुचै, सीस देइ ले जाय।।*

प्रेम न तो खेत में उगता है और न ही बाजार में बिकता है। प्रेम के लिए विनम्रता आवश्यक है, चाहे राजा हो या कोई सामान्य व्यक्ति। जिसे झुकना आता है उसे यह सहज उपलब्ध है।

Love does not grow in the fields nor be sold in the market. Humility is necessary for love, whether it be a king or an ordinary person. It is easily accessible to anyone who bows down.

*प्रेम रखें हम बहुत जरूरी,*
*पर उसमें भी दो ग़ज़ दूरी,*
*समय विकट है भजें परम को,*
*छोड़ें सारे वहम अहम को।*

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Wednesday, May 6, 2020

बुद्ध पूर्णिमा

*अप्प दीपो भव।*

स्वयं प्रकाशित हों, अर्थात स्वप्रेरित बनें।

Be self motivated.

भगवान बुद्ध के जन्मदिवस पर हम स्वप्रेरित होने का संकल्प लें।

तथागत भगवान बुद्ध के जन्मदिवस *बुद्ध पूर्णिमा* की शुभकामनाएँ।

*आज तथागत बुद्ध हुए थे*
*निज पर विजय सिद्ध हुए थे*
*आएँ हम भी निज को साधें*
*घर की मर्यादा न लांघें।*

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Tuesday, May 5, 2020

संगत

*असतां सङ्गदोषेण साधवो यान्ति विक्रियाम्।*
*दुर्योधन प्रसङ्गेन भीष्मो गोहरणे  गतः॥*

झूठे और नीच व्यक्तियों के संपर्क में रहने से सज्जन और महान व्यक्तियों की गरिमा और प्रतिष्ठा को भी बहुत अधिक हानि पहुंचती है।

By keeping the company of untrue and evil minded persons, the fame and status of even the most honourable and righteous persons is put to harm.

कुसंगति से बचें।

*मिलो नहीं अनजानों से,*
*कम मिलना पहचानों से,*
*यही अभी बस एक उपाय,*
*अपना जीवन स्वस्थ बनाय*

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Monday, May 4, 2020

अहम का त्याग

*अहं कर्तेत्यहंमानमहाकृष्णा हि दन्शितः।*
*नाहं कर्तेति विश्वासामृतं पीत्वा सुखी भव।।*
अष्टावक्र गीता : अध्याय १, श्लोक ८।

*मैं कर्ता हूँ* इस अहं रूपी सर्प के दंश से हम सभी पीड़ित हैं अतः *मैं कर्ता नहीं हूँ* इस अमृत का पान करें एवम् सुखी हो जाएँ।

*I am the doer*, we all have been suffering from this ego, so take the nectar of *I am not the doer* and be happy.

अहम् को त्यागें।

*मुझे नहीं होगा कोरोना,*
*इसी अहम का मन में होना,*
*घातक है यह इसको छोड़ें,*
*घर की सीमा अभी न तोड़ें।*

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Sunday, May 3, 2020

स्वयंभू

*मुक्ताभिमानी मुक्तो हि बद्धो बद्धाभिमान्यपि।*
*किवदन्तीह सत्येयं या मतिः सा गतिर्भवेत्॥१-११॥*
अष्टावक्र गीता

स्वयं को मुक्त मानने वाला मुक्त ही है और बद्ध मानने वाला बंधा हुआ ही है, यह कहावत सत्य है कि जैसी बुद्धि होती है वैसी ही गति होती है।

If you think you are free you are free. If you think you are bound you are bound. It is rightly said: You become what you think.

*आएँ मुक्त स्वयं को समझें,*
*किन्तु घर से अभी न निकलें।*

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Saturday, May 2, 2020

आनंद

*औषधेष्वपि सर्वेषु हास्यं श्रेष्ठ वदन्ति  ह।*
*स्वाधीनं सुलभं चापि आरोग्यानन्दवर्धनम्।।*

कहा गया है कि सभी औषधियों में निश्चय ही हंसना सबसे श्रेष्ठ औषधि है क्योंकि यह आसानी से बिना मूल्य के उपलब्ध हो जाती है तथा स्वास्थ्य और आनन्द की वृद्धि करती है।

It is truly said that among all the medicines laughter is the best medicine, because it is free and easy to obtain and it results in increase of happiness and health.

मुस्कुराते रहिये।

*हँसो स्वयं भी और हँसाओ*
*नीरसता को दूर भगाओ*

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